NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antara Chapter 12: Samvadiya give full explanation about the literary aspect and cultural perspective of the chapter. This is fundamentally a text that deals with traditional themes and narration according to old patterns. Therefore, it is a rich tapestry of cultural narratives, reflecting the socio-cultural environment of the time. These solutions work in a way to give insight into the narrative structure, the development of character, and thematic concerns that are inferred in the chapter. Taking the aid of such solutions, students can enhance their comprehension and appreciation of Hindi literature's diverse styles and genres.
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संवदिया की क्या विशेषताएँ हैं और गाँव वालों के मन में संवदिया की क्या अवधारणा है ?
संवदिया की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
संवदिया का अर्थ है- संवाद या संदेश ले जाने वाला। यह काम सब नहीं कर सकते।
संवदिया गुप्त समाचार को इस प्रकार ले जाता है कि पक्षी तक को उसके बारे में पता नहीं चलता।
संवदिया को संवाद का प्रत्येक शब्द याद रखना पड़ता है।
संवदिया संवाद को उसी लहजे और सुर में सुनाता है जैसा उसे सुनाया जाता है।
संवदिया के बारे में गाँव वालों की धारणा :
वह कामचोर, निठल्ला और पेटू किस्म का आदमी होता है।
वह औरतों की गुलामी करता है। वह औरतों की मीठी बोली सुनकर नशे में आ जाता है।
वह बिना मजदूरी लिए काम करता है।
बड़ी हवेली से बुलावा आने पर हरगोबिन के मन में किस प्रकार की आशंका हुई ?
बड़ी हवेली से हरगोबिन (संवदिया) को बुलावा आया। इसे सुनकर हरगोबिन को अचरज हुआ। उसे कई प्रकार की आशंकाएँ हुई। वह सोचने लगा कि क्या अब के जमाने में भी उसकी जरूरत पड़ सकती है जबकि अब तो गाँव-गाँव में डाकघर खुल गए हैं। डाक के द्वारा संदेश भेजा जा सकता है। आज तो आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज सकता है और वहाँ का कुशल संवाद मँगवा सकता है, तो फिर उसे क्यों बुलाया गया है? उसे तो तभी याद किया जाता है, जब कोई अत्यंत गोपनीय समाचार कहीं भिजवाना हो। कोई ऐसा समाचार जो चाँद-सूरज को भी मालूम न हो, परेवा-पंछी तक नहीं जाने। हरगोबिन बड़ी हवेली की दशा से भली-भाँति परिचित था। हवेली में बड़ी बहुरिया की स्थिति का भी उसे ज्ञान था। अतः मन में कई आशंकाएँ हुई।
बड़ी बहुरिया अपने मायके संदेश क्यों भेजना चाहती थी ?
बड़ी बहुरिया अपनी बड़ी हवेली (जो अब नाममात्र को ही बड़ी थी) में एकाकी और घोर दरिद्रता का जीवन बिता रही थी। कभी वह इस हवेली में राज करती थी, पर अब दाने-दाने को मोहताज है। वह बथुआ-साग खाकर पेट भर रही है। उधार न चुका पाने के लिए उसे बहुत सुनना पड़ता है। देवर-देवरानी उससे कोई वास्ता नहीं रखते। अब उसे मायके का ही भरोसा है। वह वहाँ रहकर भाई-भाभियों की नौकरी कर लेगी, बच्चों की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहेगी, पर इस यातना से तो छुटकारा पा जाएगी। इसीलिए बड़ी बहुरिया मायके संदेश भिजवाना चाहती है।
हरगोबिन बड़ी हवेली में पहुँचकर अतीत की किन स्मृतियों में खो जाता है ?
हरगोबिन बड़ी हवेली में पहुँचकर अतीत की स्मृतियों में खो जाता है। तब इस हवेली में दिन-रात नौकर-नौकरानियों और जन-मजदूरों की भीड़ लगी रहती थी। जहाँ आज हवेली की बड़ी बहुरिया अपने हाथ से सूप में अनाज लेकर फटक रही है, वहीं कभी इन हाथों में सिर्फ मेहंदी लगाकर ही गाँव की नाइन परिवार पालती थी। वे सब दिन न जाने कहाँ चले गए। बड़े भैया के मरने के बाद ही जैसे सब खेल खत्म हो गया। तीनों भाइयों ने लड़ाई-झगड़ा कर सब चीजों का बँंवारा कर लिया। बड़ी बहुरिया के शरीर के जेवर और बनारसी साड़ी तक का बँटवारा किया गया।
संवाद कहते वक्त बड़ी बहुरिया की आँखें क्यों छलछला आईं ?
संवाद कहते वक्त बड़ी बहुरिया की आँखें इसलिए छलछला आई क्योंकि वह अपनी वर्तमान दशा से अत्यंत व्याकुल थी। वह तो आत्महत्या तक करने पर उतारू थी। न उसके खाने-पीने का कोई प्रबंध न था, न उसका दुःख बाँटने वाला कोई था। वह भाई-भाभियों की नौकरी तक करने को तैयार थी। उसके जीने की इच्छा मंरती जा रही थी। उसके मन की व्यथा आँसुओं की राह बह रही थी। वह दुखी थी। उसके पास खाने-पीने की चीजों का उधार तक चुकाने की सामर्ध्य नहीं रह गई थी। अपनी इस दुर्दशा को देखकर उसकी आँखें छलछला आईं थी।
गाड़ी पर सवार होने के बाद संवदिया के मन में काँटे की चुभन का अनुभव क्यों हो रहा था ? उससे छुटकारा पाने के लिए उसने क्या उपाय सोचा ?
गाड़ी पर सवार होने के बाद संवदिया के मन में बड़ी बहुरिया के संवाद का प्रत्येक शब्द काँटे की तरह चुभ रहा था। उसका यह कहना-” किसके भरोसे यहाँ रहूँगी ? एक नौकर था, वह भी कल भाग गया। गाय खूँटे से बँधी भूखी-प्यासी हिकर रही है। मैं किसके लिए इतना दुःख झेलूँ ?”-ये सब बातें संवदिया के मन को पीड़ित कर रही थीं। उसने इस मनःस्थिति से छुटकारा पाने के लिए अपने पास बैठे यात्री से बातचीत कर मन बहलाने का उपाय सोचा पर वह आदमी चिड़चिड़े स्वभाव का लगा।
बड़ी बहुरिया का संवाद हरगोबिन क्यों नहीं सुना सका ?
बड़ी बहुरिया ने जो कुछ संवाद दिया था, उसे हरगोबिन उसके मायके में नहीं सुना पाया। वह बड़ी बहुरिया के संवाद को सुनाने की हिम्मत जुटा ही नहीं पाया। उसे लगा कि यह तो उसके गाँव का अपमान है कि वह अपनी लक्ष्मी को सँभालकर नहीं रख पाया। उसके जाने के बाद गाँव में क्या रह जाएगा ? गाँव की लक्ष्मी ही गाँव छोड़कर चली जावेगी। वह बूढ़ी माता को बड़ी बहुरिया की वास्तविक दशा बताकर और व्यथित नहीं करना चाहता था। वह मायके में बड़ी बहुरिया के भावी दशा की आशंका को भी भाँप गया था कि यहाँ वह भाई-भाभियों की नौकरी कैसे कर पाएगी ? यही सब सोचकर वह बड़ी बहुरिया का संवाद उसके मायके में नहीं सुना सका।
‘संवदिया डटकर खाता है और अफर कर सोता है’ से क्या आशय है ?
इस कथन का यह आशय है कि संवदिया खाऊ-पेटू किस्म का व्यक्ति होता है। उसे किसी प्रकार की चिंता-फिक्र नहीं होती। वह संवेदनशील होता है। उसका बस एक ही काम है-खूब डटकर खाना और फिर पेट अफर जाने पर तानकर सोना। वह जहाँ भी संदेश लेकर जाता है, वहाँ उसकी खूब-खातिरदारी होती है। उसे खाने को बढ़िया-बढ़िया पकवान मिलते हैं। वह खाने पर टूट पड़ता है और भूख से ज्यादा खा जाता है। इससे उसका पेट अफर जाता है तथा आलस्य घेर लेता है। फिर वह तानकर सो जाता है। पर, हरगोबिन इसका अपवाद है। वह एक संवेदनशील प्राणी है।
जलालगढ़ पहुँचने के बाद बड़ी बहुरिया के सामने हरगोबिन ने क्या संकल्प लिया ?
हरगोबिन वापस जलालगढ़ लौट आया। जब वह लौटा तो पूरे होश-हवास में नहीं था क्योंकि वह 20 कोस पैदल चलकर आया था। वहाँ लेटकर तथा बड़ी बहुरिया के हाथ से दूध पीकर उसकी चेतना लौटी। तब उसने बड़ी बहुरिया के सामने यह संकल्प लिया-“ैं तुमको कोई कष्ट नहीं होने दूँगा। मैं तुम्हारा बेटा हूँ। बड़ी बहुरिया, तुम मेरी माँ हो, सारे गाँव की माँ हो। मैं अब निठल्ला बैठा नहीं रहूँगा। तुम्हारा सब काम करूँगा।” इस संकल्प के बाद उसने बड़ी बहुरिया से प्रार्थना की कि वह गाँव छोड़कर नहीं जाए।
इन पंक्तियों की व्याख्या कीजिए :
(क) बड़ी हवेली अब नाममात्र को ही बड़ी हवेली है।
(ख) हरगोबिन ने देखी अपनी आँखों से द्रौपदी की चीरहरण लीला।
(ग) बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ ?
(घ) किस मुँह से वह ऐंसा संवाद सुनाएगा।
(क) बड़ी हवेली अब पहली जैसी शान-शौकत वाली नहीं रह गई थी। अब तो केवल नाम ही बचा था। वैसे भी टूट-फूट गई थी। उसमें अब बड़प्पन का कोई चिह्न शेष न था।
(ख) हरगोबिन उस अवसर का साक्षी था जब बड़ी बहुरिया की बनारसी साड़ी तक का बँटवारा करने के लिए उसे तीन भागों में काटा गया था। यह एक प्रकार से द्रौपदी (बड़ी बहूरानी) की चीरहरण लीला ही तो थी जो उसके दुशासनों (देवरों) ने की थी।
(ग) बड़ी बहूरानी को खाने-पीने की चीजों तक का अकाल पड़ गया था। वह बथुआ-साग (सामान्य सब्जी) खाकर गुजारा चलाने को विवश थी। भला यह स्थिति कब तक चल सकती थी।
(घ) हरगोबिन बड़ी बहूरानी के दर्दनाक संवाद को उसके मायके में सुनाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहा था। उसका मुँह ही नहीं पड़ रहा था कि वह ऐसा संवाद सुनाए।
इन शब्दों का अर्थ समझिए :
काबुली – कायदा
काबुल के लोगों का तरीका-मारपीट कर पैसा वसूल करना – रोम रोम कलपने लगा
पूरी तरह से दु:खी हो गया – अगहनी धान
अगहन मास में आने वाला चावल
पाठ से प्रश्नवाचक वाक्यों को छाँटिए और संदर्भ के साथ उन पर टिप्पणी लिखिए।
प्रश्नवाचक वाक्य –
(क) फिर उसकी बुलाहट क्यों हुई ?
(ख) कहाँ गए वे दिन ?
(ग) और कितना दिल कड़ा करूँ ?
(घ) मैं किसके लिए दु:ख झेलूँथ?
(ङ) दीदी कैसी है ?
(क) जब हरगोबिन को बड़ी हवेली से बुलावा आया तब उसने ऐसा सोचा।
(ख) हरगोबिन बड़ी हवेली के अच्छे दिनों का स्मरण करता है और विचारता है कि अब वे दिन कहाँ चले गए।
(ग) जब बड़ी बहुरिया संवाद कहते-कहते रो पड़ती है तब हरगोबिन उसे दिल कड़ा करने को कहता है। तभी बहुरिया उससे यह पूछती है।
(घ) बड़ी बहुरिया हरगोबिन के सामने अपने मन की व्यथा और एकाकीपन को इस वाक्य में उँडेलती जान पड़ती है।
(ङ) जब हरगोबिन बड़ी बहुरिया के गाँव में पहुँचता है तब उत्सुकतावश उसका बड़ा भाई अपनी दीदी का हालचाल पूछता है।
संवदिया की भूमिका आपको मिले तो क्या करेंगे? संवदिया बनने के लिए किन बातों का ध्यान रखना पड़ता है ?
संवदिया की विशेषताओं वाला उत्तर देखें।
इस कहानी का नाट्य रूपांतरण कर विद्यालय के मंच पर प्रस्तुत कीजिए।
विद्यार्थी इसे मंच पर प्रस्तुत करें।
‘संवदिया’ कहानी का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
‘संवदिया’ कहानी फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ द्वारा रचित है। इस कहानी में लेखक ने मानवीय संवदेना की गहन और विलक्षण पहचान प्रस्तुत की है। इस कहानी में बड़ी बहुरिया के माध्यम से एक असहाय और सहनशील नारी-मन के कोमल तंतु की अभिव्यक्ति हुई है। उसकी करुणा पीड़ा और यातना की सूक्ष्म पकड़ कहानीकार ‘ रेणु’ ने की है। हरगोबिन संवदिया की तरह अपने अंचल के दुखी, बेसहारा बड़ी बहुरिया जैसे पात्रों का संवाद लेकर लेखक पाठकों के सम्मुख उपस्थित हुआ है। लेखक ने बड़ी बहुरिया की पीड़ा को, उसके भीतर के हाहाकार को संवदिया के माध्यम से अपनी पूरी सहानुभूति प्रदान की है।
बिंहपुर स्टेशन पर पहुँचने के बाद हरगोबिन की मानसिक दशा कैसी थी?
थाना बिंहपुर स्टेशन पर गाड़ी पहुँची तो हरगोबिन का जी भारी हो गया। इसके पहले भी कई भला-बुरा संवाद लेकर वह इस गाँव में आया है, कभी ऐसा नहीं हुआ। उसके पैर गाँव की ओर बढ़ ही नहीं रहे थे। इसी पगडंडी से बड़ी बहुरिया अपने मैके लौट आवेगी। गाँव छोड़कर चली जावेगी। फिर कभी नहीं आवेगी! उसका मन कलपने लगा तब गाँव में क्या रह जावेगा? गाँव की लक्ष्मी ही गाँव छोड़कर जावेगी! किस मुँह से वह ऐसा संवाद सुनाएगा? कैसे कहेगा कि बड़ी बहुरिया बथुआ-साग खाकर गुज़ारा कर रही है? सुनने वाले हरगोबिन के गाँव का नाम लेकर थूकेंगे। हरगोबिन ने अनिच्छापर्वक गाँव में प्रवेश किया।
हरगोबिन ने बड़ी बहू की माँ को क्या संदेश दिया?
हरगोबिन ने बड़ी बहू की माँ को कहा कि दशहरे के समय बड़ी बहू गंगा जी के मेले में आकर माँ से मुलाकात कर जाएगी। वह आ भी नहीं सकती, क्योंकि सारी गृहस्थी का भार उस पर ही है। वह गाँव की लक्ष्मी है।
‘संवदिया’ कहानी की क्या विशेषता है ?
अथवा
‘संवदिया’ कहानी की मूल संवेदना पर प्रकाश डालिए।
‘संवदिया’ कहानी में मानवीय संवेदना की गहन एवं विलक्षण पहचान प्रस्तुत हुई है। असहाय और सहनशील नारी मन के कोमल तंतु की, उसके दुख और करुणा की, पीड़ा तथा यातना की ऐसी सूक्ष्म पकड़ रेणु जैसे ‘आत्मा के शिल्पी ‘ द्वारा ही संभव है। हरगोबिन संवदिया की तरह अपने अंचल के दुखी. विपन्न बेसहारा बड़ी बहुरिया जैसे पात्रों का संवाद लेकर रेणु पाठकों के सम्मुख उपस्थित होते हैं। रेणु ने बड़ी बहुरिया की पीड़ा को तथा उसके भीतर के हा-हाकार को संवदिया के माध्यम से अपनी पूरी सहानुभूति प्रदान की है। लोक भाषा की नींव पर खड़ी ‘संवदिया’ कहानी पहाड़ी झरने की तरह गतिमान है। उसकी गति, लय. प्रवाह, संवाद और संगीत पढ़ने वाले के रोम-रोम में झंकृत होने लगता है।
बड़ी बहुरिया के मायके के गाँव में जलपान करते समय हरगोबिन को क्या अनुभव हुआ ?
वहाँ जलपान करते समय हरगोबिन को लगा, बड़ी बहुरिया दालान पर बैठी उसकी राह देख रही है-भूखी-प्यासी…। रात में भोजन करते समय भी बड़ी बहुरिया मानो सामने आकर बैठ गई…और कह रही हो कि कर्ज-उधार अब कोई देता नहीं। …एक पेट तो कुत्ता भी पालता है, लेकिन मैं ?…माँ से कहना…! हरगोबिन ने थाली की ओर देखा-दाल-भात, तीन किस्म की भाजी, घी, पापड़, अचार।…बड़ी बहुरिया बथुआ-साग उबालकर खा रही होगी।
हरगोबिन जलालगढ़ पैदल क्यों गया?
हरगोबिन के पास जितने पैसे थे, उनसे कटिहार तक का टिकट खरीदा जा सकता था। यदि उसकी चौअन्नी नकली निकली तो सैमापुर तक ही का टिकट ले पाएगा। वह बिना टिकट एक स्टेशन आगे नहीं जा सकता। इसलिए उसने बीस कोस पैदल चलने का फैसला किया।
‘संवदिया’ कहानी की मूल संवेदना क्या है? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
‘संवदिया’ कहानी में मानवीय संवेदना की गहन, विलक्षण एवं अद्भुत पहचान की अभिव्यक्ति हुई है। लेखक ‘फणीश्वरनाथ रेणु’ ने असहाय और अत्यंत सहनशील मन के कोमल तंतुओं, उसके दुख, करूणा, व्यथा और यातना को अत्यंत हृदयस्पर्शीं ढंग से प्रस्तुत किया है जो पाठक मन को द्रवीभूत कर जाता है। हरगोबिन संवदिया और अपने अंचल की दुखी बेसहारा पात्रा बड़ी बहुरिया जैसे पात्रों के माध्यम से नारी मन के व्यथित हृदय के हाहाकार को सहानुभूति प्रदान की है। कहानी में लोक भाषा के शब्दों के प्रयोग से आँचलिकता मुखरित हो उठी है जो पाठक मन को झंकृत कर जाती है।
‘संवदिया’ कहानी में बड़ी बहुरिया अपने मायके क्या संदेश भेजना चाहती थी और क्यों ? संदेश भेजने के बाद उसकी मन:स्थिति कैसी हो गई ?
बड़ी बहुरिया अपनी बड़ी हवेली (जो अब नाममात्र को ही बड़ी थी) में एकाकी और घोर दरिद्रता का जीवन बिता रही थी। कभी वह इस हवेली में राज करती थी, पर अब दाने-दाने को मोहताज है। वह बथुआ-साग खाकर पेट भर रही है। उधार न चुका पाने के लिए उसे बहुत सुनना पड़ता है। देवर-देवरानी उसकी परवाह नहीं करते। संवाद कहते वक्त बड़ी बहुरिया की आँखें छलछला आई क्योंकि वह अपनी वर्तमान दशा से अत्यंत व्याकुल थी। वह तो आत्महत्या तक करने पर उतारू थी। न उसके खाने-पीने का कोई प्रबंध था, न उसका दु:ख बाँटने वाला कोई था। वह भाई-भाभियों की नौकरी तक करने को तैयार थी। उसके जीने की इच्छा मरती जा रही थी। उसके मन की व्यथा आँसुओं की राह बह रही थी।
बड़ी बहू के देवर-देवरानियों के लिए हरगोबिन क्या भावना रखता था?
बड़ी बहू का दुख सुनकर हरगोबिन का रोम-रोम कलपने लगा। देवर-देवरानियाँ भी बेदर्द हैं। अगहनी धान के समय बाल-बच्चों को लेकर शहर से आएँगे। दस-पंद्रह दिनों में कर्ज-उधार की ढेरी लगाकर, वापस जाते समय दो-दो मन के हिसाब से चावल-चूड़ा ले जाएँगे, फिर आम के मौसम में आकर कच्चा-पक्का आम तोड़कर बोरियों में बंद करके चले जाएँगे, फिर उलटकर कभी नहीं देखते। वह उन्हें राक्षस की संज्ञा देता है।
कटिहार जंक्शन पर पहुँचकर हरगोबिन को यह क्यों महसूस हुआ कि सचमुच सुराज आ गया है?
कटिहार जंक्शन पहुँचकर हरगोबिन ने देखा कि पंद्रह-बीस साल में बहुत कुछ बदल गया है। अब स्टेशन पर उतरकर किसी से कुछ पूछने की कोई जरूरत नहीं। गाड़ी पहुँची और तुरंत भोंपे सं आवाज अपने-आप निकलने लगी- थाना बिंहपुर, खगड़िया और बरौनी जाने वाले यात्री तीन नंबर प्लेटफार्म पर चले जाएँ। गाड़ी लगी हुई है। हरगोबिन प्रसन्न हुआ। यही मालूम होता है कि सचमुच सुराज हुआ है। इसके पहले कटिहार पहुँचकर किस गाड़ी में चढ़े और किधर जाए, इस पूछताछ में ही कितनी बार उसकी गाड़ी छूट गई है।
‘संवदिया’ कहानी के आधार पर हरगोबिन की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
एक कुशल संवदिया-हरगोबिन में एक कुशल संवदिया के सभी गुण विद्यमान हैं। वही बड़ी बहू का समाचार अत्यंत गुप्त तरीके से ले जाता है। वह संवदिया की आम धारणा के विपरीत है।
विश्वासपात्र : हरगोबिन बड़ी हवेली का विश्वासपात्र है। बड़े भैया की आकस्मिक मृत्यु के बाद भी वह बड़ी बहुरिया के प्रति विश्वास एवं निष्ठा बनाए रहता है। तभी बड़ी बहुरिया उसके सामने अपने मन की व्यथा उँड़ेल देती है।
सहुदय व्यक्ति : हरगोबिन केवल संवदिया ही नहीं है, वह एक सहृदय व्यक्ति भी है। वह बड़ी बहुरिया की दशा देखकर व्यथित होता है। इसी कारण वह बड़ी बहुरिया की माताजी को उसका दुख कह पाने में असमर्थ हो जाता है।
त्यागमय : वह बड़ी बहुरिया को इस विपन्न अवस्था में गाँव से नहीं जाने देने के लिए कटिबंद्ध हो जाता है। वह उसे विश्वास दिलाता है कि वह सारे गाँव की माँ है। अब वह उसे कोई कष्ट नहीं देगा। अब वह निठल्ला नहीं बैठेगा और उसका हर काम करेगा।
फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ ने ‘बड़ी बहुरिया की पीड़ा को, उसके भीतर के हाहाकार को संवदिया के माध्यम से अपनी पूरी सहानुभूति प्रदान की है।’ कथन के आलोक में बड़ी बहुरिया का चरित्राकंन कीजिए।
फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ ने बड़ी बहुरिया की पीड़ा को, उसके भीतर के हाहाकार को संवदिया के माध्यम से अपनी पूरी सहानुभूति प्रदान की है।
लेखक ने बड़ी बहुरिया की स्थिति का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है। वे बताते हैं कि संवदिया को संवाद सुनाते समय बड़ी बहुरिया सिसकने लगी। हरगोबिन की आँखें भी भर आई ।…… बड़ी हवेली की लक्ष्मी को पहली बार इस तरह सिसकते देखा है हरगोबिन ने। वह बोला, “बड़ी बहुरिया, दिल को कड़ा कीजिए।”
” और कितना कड़ा करूँ दिल ?….माँ से कहना, में भाई-भाभियों की नौकरी करके पेट पालूँगी। बच्चों की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी, लेकिन यहाँ अब नहीं……अब नहीं रह सकूँगी।… ..कहना, यदि माँ मुझे यहाँ से नहीं ले जाएगी तो मैं किसी दिन गले में घड़ा बाँधकर पोखरे में डूब मरूँगी।…..बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ ? किसलिए,….किसके लिए ?”
बड़ी बहुरिया के चरित्राकंन में कहा जा सकता है कि वह एक भावुक स्वभाव की स्त्री है।
वह जीवन की वास्तविकता को समझती है। बाद में वह मायके जाकर बसने के फैसले पर पुनर्विचार करती है और उस विचार को त्याग देती है।
वह परिवार के मान-सम्मान की रक्षा करती है।
संदेश भेजते समय बड़ी बहुरिया की तथा हरगोबिन की मनःस्थिति पर प्रकाश डालिए।
बड़ी बहुरिया अपने मायके संदेश भिजवाना चाहती थी कि अब उसका यहाँ रहना कठिन हो गया है और वहीं आकर रहना चाहती है।
संदेश भेजते समय बड़ी बहुरिया की आँखें छलछलाई। वह कभी इस हवेली की लक्ष्मी थी, पर अब वह सिसक रही थी। उसने संवदिया हरगोविंद से कहा कि यदि उसकी माँ उसे यहाँ से नहीं ले गई तो वह गले में घड़ा बाँधकर पोखरे में डूब मरेगी। वह बथुआ-साग खाकर भला कब तक जीए ?
हरगोबिन भी बड़ी बहुरिया की व्यथा को देखकर दुखी हो गया। उसका रोम-रोम कलपने लगा।
‘संवदिया’ कहानी में संवदिया के चरित्र के कौन-कौन से पक्ष उभर कर आए हैं ? स्पष्ट कीजिए।
संवदिया के चरित्र के विविध पक्ष :
संबदिया का अर्थ है- संवाद या संदेश ले जाने वाला। यह काम सब नहीं कर सकते।
संवदिया गुप्त समाचार को इस प्रकार ले जाता है कि पक्षी तक को उसके बारे में पता नहीं चलता।
संवदिया को संवाद का प्रत्येक शब्द याद रखना पड़ता है।
संवदिया संवाद को उसी लहजे और सुर में सुनाता है जैसा उसे सुनाया जाता है।
संवदिया के बारे में गाँव वालों की धारणा :
वह कामचोर, निठल्ला और पेटू किस्ग का आदमी होता है।
वह औरतों की गुलामी करता है। वह औरतों की मीठी बोली सुनकर नशे में आ जाता है।
वह बिना मजदूरी लिए काम करता है।
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