NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antara Chapter 5: Toro - Basant Aya

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antara Chapter 5: Toro - Basant Aya are the detailed explanation of two poems, which singly relate to the arrival of spring. Toro is a lyric poem since the liveliness and energy of spring have been vividly described with the help of a number of images and metaphors that detail the blossoming of nature. Due to the feelings of joy and rebirth associated with this season, the poem is a celebration of life and growth. Basant Aya: Basant or spring again is a symbol of hope and rejuvenation in the following poem, which gives a more subdued and introspective tone to the subject of spring. These poems are discussed in great detail in the solutions, with their literary significance and richness of themes.

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Students can access the NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antara Chapter 5: Toro - Basant Aya. Curated by experts according to the CBSE syllabus for 2023–2024, these step-by-step solutions make Hindi much easier to understand and learn for the students. These solutions can be used in practice by students to attain skills in solving problems, reinforce important learning objectives, and be well-prepared for tests.

वसंत आया –

Question 1 :

वसंत आगमन की सूचना कवि को कैसे मिली ?

Answer :

वसंत आगमन की सूचना कवि को प्रकृति में आए परिवर्तनों से मिली। बंगले के पीछे के पेड़ पर चिड़िया कुहकने लगी, सड़क के किनारे की बजरी पर पेड़ों से गिरे पीले पत्ते पाँव के नीचे आकर चरमराने लगे, सुबह छह बजे खुली ताजा गुनगुनी हवा आई और फिरकी की तरह घूमकर चली गई। फुटपाथ के चलते हुए कवि ने इन परिवर्तनों को देखा और इनके प्रभाव का अनुभव किया। उन्हीं से उसे वसंत के आगमन की सूचना मिली।

 


Question 2 :

‘कोई छः बजे सुबह’ फिरकी सी आई, चली गई’-पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

Answer :

वसंत ऋतु में प्रातःकाल छः बजे के आसपास चलने वाली हवा की अनुभूति कुछ इस प्रकार की होती है जैसे कोई युवती गरम पानी से नहाकर आई हो। हवा में गुनगुनापन होता है। तब की हवा फिरकी की तरह गोल घूम जाती है और शीघ्र चली भी जाती है अर्थात् समाप्त भी हो जाती है। उसमें हाड़ को कँपा देने वाली ठंडक नहीं रहती। उसकी शीतलता घट जाती है और हल्की गरमाहट का अहसास होने लगता है।

 


Question 3 :

‘वसंत पंचमी’ के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने क्या बताया और क्यों ?

Answer :

वसंत पंचमी के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने यह बताया कि उस दिन दफ्तर में छुट्टी थी। दफ्तर में छ्छ्टी होने से यह पता चल जाता है कि उस दिन कोई विशेष त्योहार है। वसंत पंचमी के आने का पता भी दफ्तर की छुट्टी और कैलेंडर से चला। इसका कारण है कि आधुनिक जीवन-शैली में व्यक्ति का प्रकृति के साथ संबंध टूटता जा रहा है अतः वह प्राकृतिक परिवर्तनों से अनजान रहता है।

 


Question 4 :

‘वसंत पंचमी’ के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने क्या बताया और क्यों ?

Answer :

वसंत पंचमी के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने यह बताया कि उस दिन दफ्तर में छुट्टी थी। दफ्तर में छ्छ्टी होने से यह पता चल जाता है कि उस दिन कोई विशेष त्योहार है। वसंत पंचमी के आने का पता भी दफ्तर की छुट्टी और कैलेंडर से चला। इसका कारण है कि आधुनिक जीवन-शैली में व्यक्ति का प्रकृति के साथ संबंध टूटता जा रहा है अतः वह प्राकृतिक परिवर्तनों से अनजान रहता है।

 


Question 5 :

‘और कविताएँ पढ़ते रहने से’ आम बौर आवेंगे में’ निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।

Answer :

इस काव्य-पंक्ति में यह व्यंग्य निहित है कि लोगों को वसंत के बारे में जानकारी कविताओं को पढ़ने से मिलती है। वे स्वयं वसंत के आगमन का अनुभव नहीं कर पाते। वसंत में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की जानकारी भी उन्हें कविता से ही मिलती है। कविताओं को पढ़कर ही वे यह जान पाते हैं कि वसंत ऋतु में पलाश के जंगल दहकते हैं, आमों में बौर लगता है। आज के लोग स्वयं इन दृश्यों को अपनी आँखों से देखने का कष्ट नहीं करते। वे तो कविताओं में ही वसंत का वर्णन पढ़ते हैं। यह आज के जीवन की विडंबना है। आज का व्यक्ति आंडबरपूर्ण जीवन-शैली जी रहा है। अब वह प्रकृति की जानकारी पुस्तकों से पाता है।

 


Question 6 :

अलंकार बताइए :
(क) बड़े-बड़े पियराए पत्ते
(ख) कोई छः बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो
(ग) खिली हुई हवा आई, फिरकी सी आई, चली
(घ) कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल

Answer :

(क) बड़े-बड़े – पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार पियराए पत्ते – अनुप्रास अलंकार
(ख) मानवीकरण अलंकार
(ग) उपमा अलंकार, अनुप्रास अलंकार
(घ) पुनरुक्ति प्रकाश एवं अनुप्रास अलंकार

 


Question 7 :

किन पंक्तियों से ज्ञात होता है कि आज का मनुष्य प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य की अनुभूति से वंचित है ?

Answer :

निम्नलिखित पंक्तियों से यह ज्ञात होता है कि आज का मनुष्य प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य की अनुभूति से वंचित है :

यह कैलेंडर से मालूम था
अमुक दिन अमुक बार मदन महीने की होवेगी पंचमी
दफ्तर में छुट्टी थी-यह था प्रमाण
और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल आम बौर आवेंगे
रंग-रस-गंध से लदे-फँदे दूर के विदेश के वे नंदन वन होरेंगे यशस्वी
मधुमस्त पिक और आदि अपना-अपना कृतित्व अभ्यास करके दिखावेंगे
यही नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूँगा जैसे मैंने जाना, कि वसंत आया।

 


Question 8 :

‘प्रकृति मनुष्य की सहचरी है’ इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के संदर्भ में इस कथन की वास्तविकता पर प्रकाश डालिए।

Answer :

यह कथन बिल्कुल सही है कि प्रकृति मनुष्य की सहचरी है। प्रकृति ही मनुष्य का साथ शुरू से अंत तक निबाहती है। प्रकृति हर समय उसके साथ रहती है। मनुष्य आँखें खोलते ही प्रकृति के दर्शन करता है। सूर्य, चंद्रमा, पर्वत, नदी, भूमि, बृक्ष-सभी प्रकृति के विभिन्न रूप हैं। हमारा जीवन पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर है। अन्य लोग भले ही हमारा साथ छोड़ दें, पर प्रकृति सहचरी बनकर हमारे साथ रहती है। प्रकृति हमें अपनी ओर आकर्षित करती है। प्रकृति का आमंत्रण मौन भले ही हो, पर वह काफी प्रभावशाली होता है।

 


Question 9 :

‘वसंत आया’ कविता में कवि की चिंता क्या है ? उसका प्रतिपाद्य लिखिए।

Answer :

‘वसंत आया’ कविता में कवि की चिता यह है कि मनुष्य का प्रकृति से नाता टूट गया है, यह अच्छी बात नहीं है। लोगों का जीवन इतना व्यस्त और मशीनी हो गया है कि वह प्रकृति में आ रहे परिवर्तनों को न तो देख पाता है और न अनुभव कर पाता है। वह संवेद्नहीन होता चला जा रहा है। मनुष्य की आधुनिक जीवन शैली कवि की चिता का विषय बन गई है। इस जीवन-शैली में वसंत जैसी मादक ऋतु भी लोगों को आह्लादित नहीं कर पाती। वसंत पंचमी का पता भी उसे दफ्तर की छुट्टी से ही लगता है। पेड़ों से पत्तों का गिरना, नई कोंपलों का फूटना, हवा का बहना, ढ़ाक-वन का सुलगना, कोयल-भ्रमर की मस्ती आद् पर आज के मनुष्य की निगाह का न जाना चिंता का विषय है। हमें प्रकृति-सौंदर्य का भरपूर आनंद उठाना चाहिए। कवि इस बात के लिए चिंतित है कि मनुष्य का प्रकृति से एकात्मकता का संबंध समाप्त होता जा रहा है। इसे पुनः स्थापित किया जाना आवश्यक है।

 


तोड़ो –

Question 1 :

‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ शब्द किसके प्रतीक हैं?

Answer :

‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ शब्द् बाधाओं और रुकावट्टों के प्रतीक हैं। कविता ‘तोड़ो’ में इन दोनों शब्दों का प्रयोग हुआ –

हैतोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्थर ये चट्टानें
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती को हम जानें।

अर्थात् ये दोनों बंधन झूटे हैं। इनके नीचे वास्तविकता छिपी रहती है। ये दोनों बंधन कवि-कर्म अर्थात् सृजनकर्ता में भी बाधा उपस्थित करते हैं। ये बंधन बंजर धरती में हैं तो मानव-मन में भी हैं। धरती को उर्वर बनाने के लिए जिस प्रकार पत्थर और चट्टानों को तोड़ना पड़ता है उसी प्रकार सृजनकार्य के लिए मन की ऊब और खीज़ भी मिटाना पड़ता है। इस संद्भ में पत्थर-चट्टान मन की ऊब और खीज के प्रतीक बन जाते हैं।

 


Question 2 :

कवि को धरती और मन की भूमि में क्या-क्या समानताएँ दिखाई पड़ती हैं ?

Answer :

कवि को धरती और मन की भूमि में निम्नलिखित समानताएँ दिखाई पड़ती हैं :

  • धरती और मन दोनों की भूमि में बंजरपन है। इससे सृजन में बाधा आती है।

  • धरती में कठोरता तथा पत्थर आदि हैं जबकि मन में ऊब तथा खीझ है।

  • बंजर धरती अपने भीतर बीज का पोषण नहीं कर पाती और मन की भूमि की झुझलाहट के कारण भावों या विचारों का पोषण नहीं हो पाता।

  • जिस प्रकार धरती की गुड़ाई कर भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है उसी प्रकार मन की भूमि से खीझ को खोदकर निकालने से वह भी सृजन के योग्य बन जाती है।

 


Question 3 :

भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को ?
गोड़ो गोड़ो गोड़ो

Answer :

इन पंक्तियों में यह भाव निहित है कि मिट्टी का रस ही बीज का पोषण करता है। मिट्टी में रस का होना अत्यंत आवश्यक है। मन की खीझ को भी मिटाना (तोड़ना) आवश्यक है। सृजन के लिए ऊब को मिटाना जरूरी है। तब नव-निर्माण हो सकेगा। ‘गोड़ो’ शब्द की बार-बार आवृत्ति कर कवि ने यह संदेश दिया है कि मन रूपी भूमि की बार-बार गुडाई करना अत्यंत आवश्यक है। इससे बाधक तत्व हट जाएँगे और सुजनात्मकता को बढ़ाया जा सकता है।

 


Question 4 :

कविता का आरंभ ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से हुआ है और अंत ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से। विचार कीजिए कि कवि ने ऐसा क्यों किया ?

Answer :

कविता का आंरभ ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से हुआ है और अंत ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से हुआ है। कवि ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि पहले जमीन को समतल बनाने के लिए पत्थरों को तोड़ना आवश्यक है। पथरीली जमीन को उपजाऊ खेत में बदलना आवश्यक है। इसके बाद ही गोड़ने की क्रिया आरंभ होती है। धरती में गुड़ाई करके बीज का पोषण किया जा सकता है। इसी प्रकार मन में भावों और विचारों के पोषण के लिए झुँझलाहट, चिढ़, कुढ़न आदि को निकाल फेंकना आवश्यक है। इसी प्रकार मन की खीझ और ऊब को तोड़ने के बाद ही उसमें सृजन की प्रक्रिया का आरंभ होगा। यह प्रक्रिया ही गोड़ना है।

 


Question 5 :

ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती को हम जानें
यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभिप्राय है ?

Answer :

यहाँ पर ‘झूठे बंधनों को तोड़ने का आह्नान है। धरती का बंजरपन और चट्टानें उसके झूठे बंधन हैं। यह स्थिति मन की भी है। इसके कृत्रिम बंधनों को भी तोड़ना जरूरी है। ‘धरती को जानने’ से अभिप्राय यह है कि धरती में निहित उर्वरा शक्ति और उसके रस का जानना-पहचानना आवश्यक है। इसी प्रकार मन की वास्तविकता को जानना भी जरूरी है। इसकी ऊब को दूर करना आवश्यक है। तभी हम मन की अंतनिर्हित शक्तियों को जान पाएँगे।

 


Question 6 :

‘आधे- आधे गाने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?

Answer :

‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जब तक मन में ऊब और खीझ व्याप्त रहती है तब तक मन से पूरा गाना नहीं निकलता। मन जब उल्लासित होता है तभी पूरा गाना निकलता है। मन का स्पष्ट होना आवश्यक है। मन की संजनात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए मन की बाधाओं को दूर करना आवश्यक है।

 


योग्यता विस्तार –

Question 1 :

 ‘वसंत ऋतु’ पर किन्हीं दो कवियों की कविताएँ खोजिए और इस कविता से उनका मिलान कीजिए।

 

Answer :

1. बरन बरन तरु फूले उपवन बन,
सोई चतुरंग संग दल लहियत है।
बंदी जिमि बोलत बिरद बीर कोकिल हैं,
गुंजत मधुप गान गुन गहियत है।
आवै आस-पास पुहुपन की सुवास सोई
सौँधे के सुगंध माँझ सने रहियत है।
सोभा कों समाज, सेनापति सुख-साज, आज
आवत बसंत रितुराज कहियत है।
– सेनापति

2. हार गले पहना फूलों का
ऋतुपति सकल सुकृत कूलों का
स्नेह सरस भर देगा उर सा
स्मरहर को वरेगी
वसन वसंती लेगी।
– निराला

3. आए महंत वसंत।
मखमल के झूल पड़े हाथी-सा-टीला
बैठ किंशुक छत्र लगा बांध पाग पीला,
चंवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत।
आए महंत वसंत।

4. औरै भाँति कुंजन में गुंजरत भीर भौंर,
औरै डौर झौरन पै बौरन के ह्ने गए।
ऐसे ऋतुराज के न आज दिन द्वै गए। – पद्याकर

 


Question 2 :

भारत में ऋतुओं का चक्र बताइए और उनके लक्षण लिखिए।

 

Answer :

भारत में ऋतुओं का चक्र
(क) गर्मी : वैशाख-जेठ मास में भयंकर गर्मी पड़ती है. लू चलती है।
(ख) वर्षा : आषाढ़-सावन-भादों में गर्मी पड़ती है और वर्षा पड़ती है। सावन में रिमझिम फुहारें पड़ती हैं।
(ग) शरद् : क्वार-कार्तिक में हल्की-हल्की ठंड पड़ती है।
(घ) हेमंत : अगहन-पूस में सरीं पड़ती है, ठंड बढ़ जाती है।
(ङ) पतझड़ (शिशिर) : माघ में पेड़ों से पत्ते झड़ते हैं, ठंडी हवाएँ चलती हैं।
(च) वसंत : फागुन-चैत में पेड़ों पर नए पत्ते आते हैं, वागों में फूलों की बहार आ जाती है, मस्ती भरा वातावरण रहता है।

 


Question 3 :

 मिद्टी और बीज से संबंधित और भी कविताएँ हैं, जैसे सुमित्रानंदन पंत की ‘बीज’। अन्य कवियों की ऐसी कविताओं का संकलन कीजिए और भित्ति पत्रिका में उनका उपयोग कीजिए।

 

Answer :

सुमित्रा नंदन पंत की कविता बीज
मिट्टी का गहरा अंधकार,
डूबा है उसमें एक बीज।
वह खो न गया, मिट्टी न बना,
कोदों, सरसों से क्षुद्र चीज।
उस छोटे उर में छिपे हुए हैं,
डाल-पात औ’ स्कंध-मूल।
गहरी हरीतिमा की संसृति,
बहु रूप-रंग, फल और फूल।
वह है मुट्ठी में बंद किए,
वह के पादप का महाकार।
संसार एक, आश्चर्य एक,
वह एक बूँद सागर अपार।
बंदी उसमें जीवन-अंकुर
जो तोड़ है निज सत्व-मुक्ति,
जड़ निद्रा से जग, बन चेतन।
मिट्टी का गहरा अंधकार,
सोया है उसमें एक बीज।
उसका प्रकाश उसके भीतर,
वह अमर पुत्र! वह तुच्छ चीज।
विद्यार्थी भित्ति पत्रिका स्वयं तैयार करें।

 


काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न

Question 1 :

निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
वसंत आया


क. चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराए पाँव तले
ऊँचे तरुवर से गिरे
बड़े-बड़े पियराए पत्ते
कोई छः बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो –
खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।

 

ख. कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो
खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।
ऐसे, फुटपाथ पर चलते-चलते
कल मैंने जाना कि वसंत आया।

 

ग. ऊँचे तरुवर से गिरे
बड़े-बड़े पियराए पत्ते
कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो
खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।

 

घ. कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल आम बौर आवेंगे
रंग-रस-गंध से लदे-फँदे दूर के विदेश के
वे नंदन-वन होवेंगे यशस्वी।

Answer :

क.  इन काव्य-पंक्तियों में वसंत आगमन के अवसर पर पेड़ों में नए पत्ते आने से पूर्व पीले पत्तों का झड़कर नीचे गिर जाना और उनका पैरों के नीचे चरमराने की आवाज करने का बिंब है। बजरी पर गिरे पत्ते ज्यादा आवाज करते हैं। यह पतझर के अंतिम दौर का सूचक है।
दूसरा बिंब एक नवयुवती का है जो सुबह छः बजे गरम पानी से नहाई है। उसके शरीर से गरम पानी की भाप उठ रही है। ऐसी ही सुबह खिली हवा आती है और फिरकी की तरह घूमकर चली जाती है।

  • ‘बड़े-बड़े’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

  • ‘पियराए पत्ते’ में अनुप्रास अलंकार है।

  • ‘फिरकी-सी’ में उपमा अलंकार है।

  • भाषा में तद्भव और देशज शब्दों का प्रयोग कर वातावरण को सजीव बनाया गया है।

 

ख.   इन काव्य-पंक्तियों में वसंत आगमन के अवसर पर पेड़ों में नए पत्ते आने से पूर्व पीले पत्तों का झड़कर नीचे गिर जाना और उनका पैरों के नीचे चरमराने की आवाज करने का बिंब है। बजरी पर गिरे पत्ते ज्यादा आवाज करते हैं। यह पतझर के अंतिम दौर का सूचक है।
दूसरा बिंब एक नवयुवती का है जो सुबह छः बजे गर्म पानी से नहाई है। उसके शरीर से गर्म पानी की भाप उठ रही है। ऐसी ही सुबह खिली हवा आती है और फिरकी की तरह घूमकर चली जाती है।

  • ‘बड़े-बड़े’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

  • ‘फिरकी- सी’ में उपमा अलंकार है।

  • भाषा में तद्भव और देशज शब्दों का प्रयोग कर वातावरण को सजीव बनाया गया है।

ग.   भाव-सौंदर्य-इन काव्य पंक्तियों में कवि ने वसंत ऋतु के आगमन के प्रभाव को दर्शाया है। इस ऋतु में ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के पीले-पीले पत्ते नीचे गिर जाते हैं। यह स्थिति पतझड़ की अंतिम अवस्था की सूचक है।
अगली दो पंक्तियों में एक ऐसी नवयुवती का बिंब है, जो सुबह-सुबह छह बजे गरम पानी से नहाई है। उसके शरीर से गरम पानी की भाप उठ रही है। इसी प्रकार वसंत की सुबह खुली हवा आती है और फिरकी की तरह घूमकर चली जाती है।

शिल्प-सौंदर्य-

  • ‘बड़े-बड़े’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

  • ‘पियराए पत्ते’ में अनुप्रास अलंकार है।

  • ‘फिरकी-सी’ में उपमा अलंकार है।

  • हवा का मानवीकरण किया गया है, अतः मानवीकरण अलंकार है।

  • भाषा में चित्रात्मकता है।

घ.  भाव-सौंदर्य-इस काव्यांश में कवि ने वसंत ऋतु के प्रभाव का अंकन किया है। इस ऋतु में पलाश के वन धधक उठते हैं अर्थात् वसंत के आगमन के साथ ही वन में पलाश के लाल-लाल फूलों की चमक-दमक से आग से दहकने का भ्रम हो जाता है। इस ऋतु में आम के पेड़ आम-मंजरियों से लद जाते हैं। दूर-दूर तक उनकी गंध महक जाती है। ये वृक्ष रंग, रस, गंध के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो जाएँगे। नंदन वन यश के भागी हो जाएँगे।

शिल्प-सौँदर्य –

  • ‘दहर-दहर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

  • ‘दहर-दहर दहकेंगे’ में अनुप्रास अलंकार है।

  • बिंब विधान हुआ है।

  • शब्द-चयन सटीक है।

  • सामासिक शब्दावली का प्रयोग किया गया है।

  • भाषा में चित्रात्मकता है।

 


तोड़ो –

Question 1 :

ङ. तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये ऊसर बंजर तोड़ो
ये चरती परती तोड़ो
सब खेत बनाकर छोड़ो
मिद्टी से रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को
हम इसको क्या कर डाले इस अपने मन की खीज को गोड़ो गोड़ो गोड़ो।

Answer :

भाव-सौंदर्य : ‘तोड़ो’ कविता प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि रघुवीर सहाय की एक उद्बोधनात्मक कविता है जिसमें कवि एक ओर चट्टानों और बंजर भूमि को तोड़ने को कहता है तो दूसरी ओर मन में व्याप्त ऊब और खीज को भी तोड़ने का आह्वान करता है। कवि के बाह्य जगत के ऊसरपन और अंतर्जगत के ऊब और रिक्तता पैदा करने वाले बंजरपन-दोनों को ही तोड़ने का आह्वान किया है। मन में व्याप्त ऊब तथा खीज की यह सादृश्य-धर्मिता बहुत ही सशक्त बन पड़ी है।

 


Question 2 :

शिल्प-सौंदर्य : इस कविता में नए उपमानों द्वारा कवि ने अपने क्रान्तिकारी विचार प्रस्तुत किए हैं। ‘तोड़ो-तोड़ो’ और ‘गोड़ो-गोड़ो’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं। इसमें तुकांत शब्द का सुंदर प्रयोग द्रष्टवय है। भाषा सरल-सुबोध है। च. मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को ?
गोड़ो गोड़ो गोड़ो ।

Answer :

काव्य-सौंदर्य :
भाव-सौंदर्य : इन पंक्तियों में बताया गया है कि चट्टान-पत्थरों को तोड़कर अलग करने के बाद धरती की खूब गुड़ाई की जाए तो मिट्टी रसयुक्त होकर उर्वर हो जाएगी। इस प्रकार की धरती में डाला गया बीज अंकुरित भी होगा तथा पोषित भी होगा। इसी प्रकार मनुष्य के द्वारा भी सृजन-कार्य संभव हो सकता है। मनुष्य में भाव होने चाहिएँ।

‘खीज’ को सृजन कार्य में बाधक बताया है।

शिल्प-सौंदर्य :

  • ‘गोड़ो’ शब्द की आवृत्ति की गई है। इसमें पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।

  • ‘क्या कर’ में अनुप्रास अलंकार है।

  • भाषा सरल एवं सुबोध है।

 


प्रतिपाद्य संबंधी प्रश्न –

Question 1 :

‘वसंत आया’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

Answer :

‘वसंत आया’ शीर्षक कविता रघुवीर सहाय द्वारा रचित है। यह कविता व्यंग्य शैली में रची गई है। इस कविता में कवि उस स्थिति पर अपनी चिंता प्रकट करता है जिसमें आज के मनुष्य का प्रकृति से रिश्ता टूट गया है। अब मनुष्य वसंत के आगमन का अनुभव ही नहीं कर पाता है। वह उसे कैलेंडर या कविताओं के माध्यम से जानता है। ऋतुओं में परिवर्तन तो पहले की तरह ही होते रहते हैं। इस ऋतु में पत्ते झड़ते हैं. कोंपलें फूटती हैं, नए पत्ते आते हैं, हवा बहती है, ढाक के जंगल दहकते हैं, कोयल-भ्रमर अपनी मस्ती में झूमते हैं, पर हमारी निगाह उन पर नहीं जा पाती। हम प्रकृति-सौंदर्य के प्रति निरपेक्ष बने रहते हैं। इस कविता में आधुनिक जीवन-शैली की विडंबना को रेखांकित किया गया है। मनुष्य को प्रकृति के साथ अंतरंगता बनाए रखनी चाहिए।

 


Question 2 :

तोड़ो कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।

Answer :

‘तोड़ो’ कविता का प्रतिपाद्य
तोड़ो उद्बोधन कविता प्रतीत होती है। इसमें कवि सृजन हेतु भूमि को तैयार करने के लिए चट्टानें, ऊसर और बंजर को तोड़ने का आह्नान करता है। परती को खेत में बदलना सृजन की आंरभिक परंतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। यहाँ कवि विध्वंस के लिए नहीं उकसाता वरन सृजन के लिए प्रेरित करता है। कविता का ऊपरी ढाँचा सरल प्रतीत होता है, परंतु प्रकृति से मन की तुलना करते हुए कवि ने इसको नया आयाम दे दिया है। यह बंजर प्रकृति में है तो मानव-मन में भी है। कवि मन में व्याप्त ऊब तथा खीज को भी तोड़ने की बात करता है अर्थात् उसे भी उर्वर बनाने की बात करता है। मन के भीतर की ऊब सृजन में बाधक है। कवि सृजन का आकांक्षी है इसलिए उसको दूर करने की बात करता है। इसलिए कवि मन के बारे में प्रश्न उठाकर आगे बढ़ जाता है। इससे कविता का अर्थ विस्तार होता है।

 


अन्य उपयोगी प्रश्न –

Question 1 :

‘वसंत आया’ कविता में वसंत के आने के बारे में कवि की कल्पना और जानकारी क्या थी ?

Answer :

कवि की कल्पना यह थी कि वसंत में ढाक के वन दहकने लगेंगे, आम बौर आएँगे। नंदन वन फल-फूलों से लद जाएँगे। वसंत आगमन की सूचना कवि को प्रकृति में आए परिवर्तनों से मिली। बंगले के पीछे के पेड़ पर चिड़िया कुहकने लगी, सड़क के किनारे की बजरी पर पेड़ों से गिरे पीले पत्ते पाँव के नीचे आकर चरमराने लगे, सुबह छह बजे खुली ताजा गुनगुनी हवा आई. और फिरकी की तरह घूमकर चली गई। फुटपाथ के चलते हुए कवि ने इन परिवर्तनों को देखा और इनके प्रभाव का अनुभव किया। उन्दीं से उसे वसंत के आगमन की सूचना मिली।

 


Question 2 :

‘वसंत आया’ कविता में कवि की चिंता क्या है ? इसे वसंत आगमन की सूचना कैसे मिली ?

Answer :

‘वसंत आया’ कविता में कवि की चिंता यह है कि मनुष्य का प्रकृति से नाता टूट गया है, यह अच्छी बात नहीं है। लोगों का जीवन इतना व्यस्त और मशीनी हो गया है कि वह प्रकृति में आ रहे परिवर्तनों को न तो देख पाता है और न अनुभव कर पाता है। वह संवेदनहीन होता चलाजा रहा है। मनुष्य की आधुनिक जीवन शैली कवि की चिंता का विषय बन गई हैं इस जीवन-शैली में वसंत जैसी मादक ऋतु भी लोगों के आद्धादित नहीं कर पाती। वसंत पंचमी का पता भी उसे दफ्तर की छुट्टी से ही लगता है। पेड़ों से पत्तों का गिरना, नई कोंपलों का फूटना, हवा का बहना, ढाक-वन का सुलगना, कोयल-भ्रमर की मस्ती आदि पर आज के मनुष्य की निगाह का न जाना चिंता का विषय है। हमें प्रकृति-सौंदर्य का भरपूर आनंद उठाना चाहिए।

 


Question 3 :

‘वसंत आया’ कविता में वसंत के आने के बारे में कवि की कल्पना और जानकारी क्या थी?

Answer :

कवि की कल्पना यह थी कि वसंत में ढाक के वन दहकने लगेंगे, आम बौर आएँगे। नंदन वन फल-फूलों से लद जाएँगे। वसंत आगमन की सूचना कवि को प्रकृति में आए परिवर्तनों से मिली। बंगले के पीछे के पेड़ पर चिड़िया कुहकने लगी, सड़क के किनारे की बजरी पर पेड़ों से गिरे पीले पत्ते पाँव के नीचे आकर चरमराने लगे, सुबह छह बजे खुली ताजा गुनगुनी हवा आई और फिरकी की तरह घूमकर चली गई। फुटपाथ के चलते हुए कवि ने इन परिवर्तनों को देखा और इनके प्रभाव का अनुभव किया। उन्हीं से उसे वसंत के आगमन की सूचना मिली।

 


Question 4 :

‘वसंत आया’ कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

Answer :

‘वसंत आया’ कविता में कवि की चिता यह है कि मनुष्य का प्रकृति से नाता टूट गया है, यह अच्छी बात नहीं है। लोगों का जीवन इतना व्यस्त और मशीनी हो गया है कि वह प्रकृति में आ रहे परिवर्तनों को न तो देख पाता है और न अनुभव कर पाता है। वह संवेदनहीन होता चला जा रहा है। मनुष्य की आधुनिक जीवन शैली कवि की चिंता का विषय बन गई है। इस जीवन-शैली में वसंत जैसी मादक ऋतु भी लोगों को आछ्धादित नहीं कर पाती। वसंत पंचमी का पता भी उसे दफ्तर की छुट्यी से ही लगता है। पेड़ों से पत्तों का गिरना, नई कोंपलों का फूटना, हवा का बहना, ढाक-वन का सुलगना, कोयल-भ्रमर की मस्ती आदि पर आज के मनुष्य की निगाह का न जाना चिंता का विषय है। हमें प्रकृति-सौंदर्य का भरपूर आनंद उठाना चाहिए। कवि इस बात के लिए चिंतित है कि मनुष्य का प्रकृति से एकात्मकता का संबंध समाप्त होता जा रहा है। इसे पुन: स्थापित किया जाना आवश्यक है।

 


Question 5 :

‘वसंत आया’ कविता में कवि की चिंता क्या है?

Answer :

आज मनुष्य का नाता प्रकृति से टूट रहा है, यही कवि की मुख्य चिंता है। उसे ऋतु परिवर्तन का ज्ञान प्राकृतिक परिवर्तनों को देखकर महसूस करके नहीं अपितु कैलेंडर को देखकर होता है। उसे वसंत पंचमी का आगमन प्रकृति के सानिध्य में रहकर पत्तों का झड़ना, नई कोंपलों का फूटना, सुर्गंधित मंद समीर का बहना, ढाक के जंगलों का दहकना, कोयलों का कुहुकना आदि को देखकर नहीं होता, वह कैलेंडर देखकर जानता है कि आज वसंत पंचमी है।

 


Question 6 :

‘वसंत आया’ कविता में “कवि ने आज के मनुष्य की जीवन-शैली पर व्यंग्य किया है।” इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।

Answer :

‘वसंत आया’ शीर्षक कविता रघुवीर सहाय द्वारा रचित है। यह कविता व्यंग्य शैली में रची गई है। इस कविता में कवि उस स्थिति पर अपनी चिंता प्रकट करता है जिसमें आज के मनुष्य का प्रकृति से रिश्ता टूट गया है। अब मनुष्य वसंत के आगमन का अनुभव ही नहीं कर पाता है। वह उसे कैलेंडर या कविताओं के माध्यम से जानता है। ऋतुओं में परिवर्तन तो पहले की तरह ही होते रहते हैं। इस ऋतु में पत्ते झड़ते हैं, कोपलें फूटती हैं, नए पत्ते आते हैं, हवा बहती है, ढाक के जंगल दहकते हैं, कोयल-भ्रमर अपनी मस्ती में झूमते हैं, पर हमारी निगाह उन पर नहीं जा पाती। हम प्रकृति-सौंदर्य के प्रति निरपेक्ष बने रहते हैं। इस कविता में आधुनिक जीवन-शैली की विडंबना को रेखांकित किया गया है। मनुष्य को प्रकृति के साथ अंतरंगता बनाए रखनी चाहिए।

 


Question 7 :

‘तोड़ो’ कविता के प्रतिपाद्य को लिखिए और बताइए कि कवि तोड़ने की प्रक्रिया में क्यों विश्वास करता है?

Answer :

‘तोड़ो’ उद्बोधन कविता प्रतीत होती है। इसमें कवि सृजन हेतु भूमि को तैयार करने के लिए चट्टानें, ऊसर और बंजर को तोड़ने का आह्वान करता है। परती को खेत में बदलना सृजन की आरंभिक परन्तु अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। यहाँ कवि विध्वंस के लिए नहीं उकसाता। वरन सृजन के लिए प्रेरित करता है। कविता का ऊपरी ढाँचा सरल प्रतीत होता है, परन्तु प्रकृति से मन की तुलना करते हुए कवि ने इसको नया आयाम दे दिया है। यह बंजर प्रकृति में है तो मानव-मन में भी है। कवि मन में व्याप्त ऊब तथा खीज को भी तोड़ने की बात करता है अर्थात् उसे भी उर्वर बनाने की बात करता है। मन के भीतर की ऊब सृजन में बाधक है। कवि सृजन का आकांक्षी है इसलिए उसको दूर करने की बात में विश्वास करता है।

 


Question 8 :

‘तोड़ो’ कविता में कवि विध्वंस के लिए नहीं उकसाता, वरन सृजन के लिए प्रेरित करता है। टिप्पणी कीजिए।

Answer :

‘तोड़ो’ कविता में कवि किसी प्रकार के विध्वंस की बात नहीं करता बल्कि वह तो सृजन अर्थात् नव-निर्माण के लिए उपयुक्त भूमि निर्माण करने की प्रेरणा देता है। वह तो चट्टानों और ऊसर भूमि को तोड़ने की बात करता है ताकि सृजन की प्रक्रिया शुरू की जा सके। यह आरंभिक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस कविता का कवि विध्वंस के लिए नहीं उकसाता वरन् सृजन के लिए प्रेरित करता है। कवि ने प्रकृति से मन की तुलना करके इसको नया आयाम दे दिया है। बंजर प्रकृति के साथ-साथ मन में भी होता है। कवि मन में समाई ऊब और खीझ को तोड़ने की बात करता है। मन के भीतर की ऊब सृजन में बाधक है। कवि सृजन का आकांक्षी है। कवि मन के बारे में प्रश्न उठाकर आगे बढ़ जाता है।

 


Question 9 :

‘तोड़ो’ कविता में पत्थर और चट्टानें किसके प्रतीक हैं? कवि उन्हें तोड़ने का आहूवान क्यों करता है?

Answer :

‘तोड़ो’ कविता में ‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ शब्द रूकावटों (बाधाओं) के प्रतीक हैं। ये जीवन-मार्ग में आने वाली रुकावटें हैं। इनको तोड़ना आवश्यक है। ये सृजन में बाधक हैं। ‘तोड़ो’ कविता में कवि सृजन हेतु भूमि को तैयार करने के लिए चट्टानें, ऊसर और बंजर को तोड़ने का आह्नान करता है। परती को खेत में बदलना सृजन की आरंभिक परंतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। यहाँ कवि विध्वंस के लिए नहीं उकसाता वरन सृजन के लिए प्रेरित करता है। कविता का ऊपरी ढाँचा सरल प्रतीत होता है, परंतु प्रकृति से मन की तुलना करते हुए कवि ने इसको नया आयाम दे दिया है। यह बंजर प्रकृति में है तो मानव-मन में भी है। कवि मन में व्याप्त ऊब तथा खोज को भी तोड़ने की बात करता है अर्थात् उसे भी उर्वर बनाने की बात करता है। मन के भीतर की ऊब सृजन में बाधक है। कवि सृजन का आकांक्षी है इसलिए उसको दूर करने की बात करता है। इसलिए कवि मन के बारे में प्रश्न उठाकर आगे बढ़ जाता है। इससे कविता का अर्थ विस्तार होता है।

 


Question 10 :

‘तोड़ो’ कविता में कवि मन में व्याप्त ऊब तथा खीज को तोड़ने की बात क्यों कहता है? उसे स्पष्ट कीजिए।

Answer :

‘तोड़ो’ उद्बोधन कविता प्रतीत होती है। इसमें कवि सृजन हेतु भूमि को तैयार करने के लिए चट्टानें, ऊसर और बंजर को तोड़ने का आह्वान करता है। परती को खेत में बदलना सृजन की आरंभिक परन्तु अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। यहाँ कवि विध्वंस के लिए नहीं उकसाता वरन सृजन के लिए प्रेरित करता है। कविता का ऊपरी ढाँचा सरल प्रतीत होता है, परन्तु प्रकृति से मन की तुलना करते हुए कवि ने इसको नया आयाम दे दिया है। यह बंजर प्रकृति में है तो मानव-मन में भी है। कवि मन में व्याप्त ऊब तथा खीज को भी तोड़ने की बात करता है अर्थात् उसे भी उर्वर बनाने की बात करता है। मन के भीतर की ऊब सृजन में बाधक है। कवि सृजन का आकांक्षी है इसलिए उसको दूर करने की बात कहता है। कवि मन के बारे में प्रश्न उठाकर आगे बढ़ जाता है। इससे कविता के अर्थ का विस्तार होता है।

 


Question 11 :

‘वसंत आया’ कविता में कवि ने आज के मनुष्य की जीवन-शैली पर व्यंग्य किया है।’-इस कथन की पुष्टि उदाहरण देकर कीजिए।

Answer :

‘वसंत आया’ कविता में कवि ने आज के मनुष्य की जीवन-शैली पर करारा व्यंग्य किया है। आधुनिक जीवन-शैली में मनुष्य और प्रकृति के बीच दूरी बढ़ती चली जा रही है। मनुष्य का प्रकृति के साथ रिश्ता टूटता जा रहा है। इस रिश्ते को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है। आज का मनुष्य इतना व्यस्त हो गया है कि उसे वसंत के आगमन का पता, प्रकृति के परिवर्तनों से नहीं, कलैंडर से चलता है। आज का मानव प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों के प्रति निरपेक्ष बना रहता है। उसे पौधों पर कोपलों के फूटने, ढाक-वन में पलाश के दहकने, भ्रमरों की गुंजार का पता ही नहीं चल पाता। यही आज के जीवन की विडंबना है।

 


Question 12 :

‘तोड़ो’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है ?

Answer :

‘तोड़ो’ कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि सृजन हेतु मन की ऊब और खीज को मिटाना होगा। ये दोनों तत्त्व सृजन-कार्य में बाधक हैं। कवि इसे धरती के माध्यम से समझता है। जिस प्रकार बंजर धरती से पत्थर और चट्टानों को हटाना जरूरी है, उसी प्रकार मन को सृजन हेतु तैयार करने के लिए उससे ऊब और खीज को हटाना जरूरी है। कवि कहता है कि पत्थरों और चट्टानों को तोड़ने के बाद ही हम धरती को उर्वर बना सकते हैं। इसके अंदर दबे रस को पहचान सकते हैं। इसी प्रकार हमें मन की अरुचि और नीरसता को दूर कर उसे सर्जनात्मक बनाना होगा। मन में व्याप्त झुँझलाहट और कुढ़न को समूल नष्ट करके ही मन के उदात्त भावों को उभारा जा सकता है। तभी सृजनात्मक शक्ति प्रस्सुटित होती है।

 


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