NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antara Chapter 13: Gandhi, Neheru aur Yasser Arafat provides detailed explanation of political and philosophical debates therein. In all, lives and ideologies of Mahatma Gandhi, Jawaharlal Nehru, and Yasser Arafat will be discussed here with their views on peace, freedom, and leadership. These questions will enable the students to understand the interaction that took place between ideas and ideologies in getting a better view of the contemporary political thought represented in Hindi literature.
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लेखक ने सेवाग्राम में किन-किन लोगों के आने का जिक्र किया है ?
लेखक ने सेवाग्राम में निम्नलिखित लोगों के आने का जिक्र किया है :
पृथ्वीसिंह आजाद : इन्होंने हथकड़ियों समेत भागती रेलगाड़ी से छलांग लगाई और भागकर गुमनाम हो गए।
मीरा बेन
खान अब्दुल गफ्फार खाँ
राजेंद्र बाबू
लेखक सेवाग्राम कब और क्यों गया था ?
लेखक सन् 1938 के आसपास सेवाग्राम गया था। उन दिनों लेखक के भाई बलराज साहनी सेवाग्राम में ही रह रहे थे। वे वहाँ रहकर ‘नई तालीम’ पत्रिका के सह-संपादक के रूप में काम कर रहे थे। उस साल कांग्रेस का अधिवेशन हरिपुरा में हुआ था। तभी लेखक कुछ दिन भाई के साथ बिता पाने के लिए सेवाग्राम चला गया था। उन दिनों गाँधीजी भी वहीं थे। लेखक के मन में उनको नजदीक से देखने की इच्छा भी रही होगी।
लेखक का गाँधीजी के साथ चलने का पहला अनुभव किस प्रकार का रहा ?
लेखक को सेवाग्राम पहुँचकर पता चला था कि गाँधी जी प्रातःध्रमण के लिए उनके भाई के क्वार्टर के आगे से ही निकलते हैं।
गाँधी जी का वहाँ पहुँचने का समय ठीक सात बजे था। लेखक सुबह जल्दी उठकर सात बजने का इंतजार करने लगा।
ठीक समय पर गाँधी जी आश्रम का फाटक लाँघकर अपने साथियों के साथ सड़क पर आ गए थे।
गाँधी जी हूबहू वैसे ही लग रहे थे जैसा लेखक ने उन्हें चित्रों में देखा था। कमर के नीचे उनकी छड़ी भी लटक रही थी।
लेखक के भाई ने उसका परिचय गाँधी जी से करवाया।
लेखक ने गाँधी जी को उनकी रावलपिंडी यात्रा की याद दिलाई।
गाँधी जी को रावलपिंडी यात्रा अच्छी प्रकार याद थी। उन्होंने उसके बारे में बातें की। उन्हें मिस्टर जॉन का भी स्मरण था।
गाँधी जी बहुत धीमी आवाज में बोल रहे थे।
वे बीच-बीच में हैंसी की बात भी कह देते थे।
रोगी बालक के प्रति गाँधीजी का व्यवहार किस प्रकार का था ?
सेवाग्राम आश्रम में एक बालक चिल्ला रहा था-‘मैं मर रहा हूँ, बापू को बुलाओ। मैं मर जाऊँगा, बापू को बुलाओ। लड़के का पेट फूला हुआ था। वह बहुत बेचैनी का अनुभव कर रहा था। बापू जी की उस समय जरूरी मीटिंग चल रही थी। आखिरकार गाँधीजी मीटिंग को बीच में छोड़कर उस रोगी बालक के पास जा पहुँचे। वे उसके पास जाकर खड़े हो गए। उनकी नजर बालक के फूले हुए पेट की ओर गई। उन्होंने उसके पेट पर हाथ फेरा और बोले-‘ईख पीता रहा है। इतनी ज्यादा पी गया। तू तो पागल है।’ फिर गाँधीजी ने उसे सहारा देकर उठाया और कहा कि मुँह में उँगली डालकर कै कर दो। लड़का नाली के किनारे बैठ गया। गाँधीजी उसकी पीठ पर हाथ रखकर झुके रहे। थोड़ी ही देर में उसका पेट हल्का हो गया और हाँफता हुआ बैठ गया। गाँधीजी ने उससे खोखे में जाकर चुपचाप लेटने को कहा। उन्होंने आश्रमवासी को कोई हिदायत भी दी। गाँधीजी का उस रोगी बालक के प्रति व्यवहार अत्यंत सहानुभूतिपूर्ण था।
कश्मीर के लोगों ने नेहरूजी का स्वागत किस प्रकार किया ?
पंडित नेहरू कश्मीर यात्रा पर आए हुए थे। वहाँ कश्मीर के लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया। शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में झेलम नदी पर, शहर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक, सातवें पुल से अमीराकदल तक, नावों में उनकी शोभा यात्रा निकाली गई। यह देखने लायक थी। नदी के दोनों ओर हजारों कश्मीर निवासी अदम्य उत्साह के साथ नेहरूजी का स्वागत कर रहे थे। यह दृश्य अद्भुत था।
अखबार वाली घटना से नेहरूजी के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता प्रकट होती है?
लेखक बरामदे में खड़ा होकर अखबार पर नजर डाल ही रहा था कि सीढ़ियों से नेहरूजी के उतरने की पदचाप सुनाई दी। उस दिन उन्हें अपने साथियों के साथ पहलगाम जाना था। उस समय अखबार लेखक के हाथ में था। लेखक को एक बचकानी हरकत सूझी। उसने फैसला किया कि मैं अखबार पढ़ता रहूँगा और तभी नेहरूजी के हाथ में दूँगा जब वह माँगेंगे। इसके बहाने एक छोटा-सा वार्तालाप तो हो जाएगा। नेहरूजी आए। लेखक के हाथ में अखबार देखकर चुपचाप एक ओर खड़े रहे। शायद वे इस इंतजार में थे कि उन्हें स्वयं अखबार मिल जाएगा। आखिरकार नेहरूजी धीरे से बोले-” आपने देख लिया हो तो क्या मैं एक नजर देख सकता हूँ ?” यह सुनते ही लेखक शर्मिदा हो गया और अखबार उनके हाथ में दे दिया। अखबार वाली इस घटना से नेहरूजी के व्यक्तित्व पर यह प्रकाश पड़ता है कि वे विनम्र स्वभाव के थे और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना जानते थे। उन्होंने अखबार माँगने में विनम्रता का परिचय दिया था।
फिलिस्तीन के प्रति भारत का रवैया बहुत सहानुभूति एवं समर्थन भरा क्यों था ?
फिलिस्तीन के प्रति साम्राज्यवादी शक्तियों का रवैया अन्यायपूर्ण था। भारत स्वयं साम्राज्यवादी शक्तियों के अन्याय का शिकार था। वह इस अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने वालों के प्रति सहानुभूति रखता था। भारत के तत्कालीन नेताओं ने साम्राज्यवादी शक्तियों के दमन की घोर भर्त्सना की थी। भारत फिलिस्तीन आंदोलन के प्रति विशाल स्तर पर सहानुभूति रखता था। भारत किसी के भी प्रति हो रहे अन्याय का विरोध करने में आगे रहता था। फिलिस्तीन के नेता अराफात भी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति अपनी सहानुभूति रखते थे।
अराफात के आतिथ्य प्रेम से संबंधित किन्हीं दो घटनाओं का वर्णन कीजिए।
अराफात ने लेखक को सपत्नीक दिन के भोजन पर आमंत्रित किया था। अराफात स्वयं बाहर आकर लेखक और उसकी पत्नी को अंदर लिवा कर गए। उनके आतिथ्य के दो उदाहरण इस प्रकार हैं-
1. अराफात ने अपने हाथों से फल छील-छीलकर लेखक और उसकी पत्नी को खिलाए। उनके पीने के लिए स्वयं शहद की चाय बनाई।
2. लेखक माजन के समय से पूर्व अनुमान से गुसलखाने में गया। जब वह गुसलखाने से बाहर आया तब यास्सेर अराफात स्वयं हाथ में तौलिया लिए खड़े थे। यह देखकर लेखक झेंप गया।
ये दोनों घटनाएँ अराफात के आतिथ्य-प्रेम को झलकाती हैं।
अराफात ने ऐसा क्यों बोला कि ‘वे आपके ही नहीं, हमारे भी नेता हैं। उतने ही आदरणीय जितने आपके लिए।’ इस कथन के आधार पर गाँधीजी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
अराफात ने ऐसॉ इसलिए बोला क्योंकि भारत के बड़े-बड़े सभी नेता फिलिस्तीन के आंदोलन का समर्थन कर रहे थे। वे फिलिस्तीन के प्रति साम्राज्यवादी शक्तियों के अन्यायपूर्ण रवैये की भर्स्सना करके फिलिस्तीनियों का उत्साहवर्धन कर रहे थे। यही कारण था कि फिलिस्तीनियों को भारत के नेता अपने नेता प्रतीत होते थे। वे गाँधीजी एवं नेहरूजी को आदरणीय मानते थे। इस कथन के आधार पर गाँधीजी के व्यक्तित्व पर यह प्रकाश पड़ता है कि वे हर अन्याय का विरोध करते थे। इसमें वे अपने देश या दूसरे देश के बीच कोई अंतर नहीं करते थे। उनकी सहानुभूति सदैव पीड़ित पक्ष की ओर होती थी। वे साम्राज्यवादी शक्तियों से लोहा ले रहे थे। गाँधीजी के व्यक्तित्व का जादू देश-विदेश में सिर चढ़कर बोल रहा था। अन्याय के शिकार देश उनकी ओर आशाभरी दृष्टि से देख रहे थे।
पाठ से क्रिया-विशेषण छाँटिए और उनका अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए :
सात बजे (कालवाचक)
धीमी (रीतिवाचक)
चुपचाप (रीतिवाचक)
हँसते हुए (रीतिवाचक)
एक ओर (स्थानवाचक)
तुम सात बजे आना।
वह धीमी चलती है।
यहाँ से चुपचाप चले जाओ।
वह हँसते हुए बोला।
तुम एक ओर खड़े हो जाओ।
“मैं सेवाग्राम” “माँ जैसी लगती” गद्यांश में क्रिया पर ध्यान दीजिए।
इस गद्यांश में क्रियाओं को मोटे अक्षरों में संकेतित किया हैमैं सेवाग्राम में लगभग तीन सप्ताह तक रहा। अक्सर ही प्रातः उस टोली के साथ हो लेता। शाम को प्रार्थना सभा में जा पहुँचता, जहाँ सभी आश्रमवासी तथा कस्तूरा एक ओ
नेहरूजी द्वारा सुनाई गई कहानी को अपने शब्दों में लिखिए।
कहानी
कहानी
पेरिस शहर में एक बाजीगर रहता था। वह तरह-तरह के करतब दिखाकर अपना पेट पालता था। एक बार क्रिसमस का पर्व आया। पेरिस निवासी सज-धज कर हाथों पर फूलों के गुच्छे और उपहार लेकर माता मरियम को श्रद्धांजलि अर्पित करने गिरजे में जा रहे थे। गिरजे के बाहर बाजीगर उदास खड़ा था। उसके पास माता मरियम के चरणों में रखने के लिए कोई तोहफा नहीं था। उसके कपड़े भी फटे थे। उसने मन में सोचा कि मैं माता मरियम को अपना करतब दिखाकर प्रसन्न कर सकता हूँ। जब गिरजा खाली हो गया तो वह बाजीगर चुपके से गिरजे में घुस गया और अपने कपड़े उतार कर माता मरियम को अपने करतब दिखाने लगा। इस प्रयास में वह हाँफने तक लगा। तभी गिरजे का पादरी आ गया। वह बाजीगर को यह सब करते देखकर तिलमिला उठा। उसने सोचा कि वह लात मारकर उसे गिरजे से बाहर निकाल दे। तभी एक चमत्कार हुआ। माता मरियम अपने मंच से उत्तकर उस बाजीगर के पास गई और अपने आँचल सें उसके माथे का पसीना पोंछा और उसके सिर को सहलाने लगी।
भीष्म साहनी की अन्य रचनाएँं ‘तमस’ तथा ‘मेरा भाई बलराज’ पढ़िए।
विद्यार्थी ‘तमस’ धारावाहिक देखकर इनके विषय में जान सकते हैं।
गाँधी तथा नेहरूजी से संबंधित अन्य संस्मरण भी पढ़िए और उन पर टिप्पणी लिखिए।
यह कार्य विद्यार्थी स्वयं करें।
यास्सेर अराफात के आतिथ्य से क्या प्रेरणा मिलती है और अपने अतिथि का सत्कार आप किस प्रकार करना चाहेंगे ?
यास्सेर अराफात के आतिथ्य से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि अतिथि को भगवान का रूप मानना चाहिए और उसका सत्कार करना चाहिए। यदि हमारे घर कोई अतिथि आएगा तो हम उसका पूरा-पूरा सम्मान करेंगे तथा उसके सत्कार में कोई कसर उठा न रखेंगे।
लेखक वर्धा स्टेशन से सेवाग्राम तक कैसे पहुँचा ?
रेलगाड़ी वर्धा स्टेशन पर रुकती थी। लेखक वर्धा स्टेशन पर रेलगाड़ी से उतर गया। वहाँ से लगभग पाँच मील दूर सेवाग्राम तक का फासला उसने इक्के या ताँगे में बैठकर तय किया। वह देर रात सेवाग्राम पहुँचा। एक तो सड़क कच्ची थी, इस पर घुप्प अँधेरा था। उन दिनों सड़क पर कोई रोशनी नहीं हुआ करती थी।
गाँधी जी की बातचीत का तरीका कैसा था?
गाँधी जी बातचीत के बीच में हैसते हुए कुछ कहते थे। वे धीमी आवाज में बोलते थे। ऐसा लगता था मानो वे अपने आपसे बातें कर रहे हैं। स्वयं से ही बातों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। उनकी इस तरीके में उनकी विनम्रता, सरलता, सहनशीलता आदि के दर्शन हो रहे थे।
सेवाग्राम में लेखक को क्या अनुभव मिले?
लेखक सेवाग्राम में लगभग तीन सप्ताह तक रहा। अक्सर ही प्रात: टोली के साथ हो लेता। शाम को प्रार्थना सभा में जा पहुँचता, जहाँ सभी आश्रमवासी तथा कस्तूरबा एक ओर को पालथी मारे और दोनों हाथ गोद में रखे बैठी होतीं और बिल्कुल माँ जैसी लगतीं। वह वहाँ जाने-माने देशभक्तों से भी मिला। उन्हीं देशभक्तों में से एक पृथ्वी सिंह आजाद का अनुभव सुना कि किस तरह वे हथकड़ी सहित अंग्रेज़ों की कैद से सुरक्षित भाग निकले और अंग्रेज़ों से बचने के लिए ही गुमनाम रहकर अध्यापन कार्य करते।
जापानी ‘भिक्षु’ आश्रम में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति कैसे करता था?
उन दिनों एक जापानी ‘भिक्षु’ अपने चीवर वस्त्रों में गाँधी जी के आश्रम की प्रदक्षिणा करता। लगभग मील भर के घेरे में, बार-बार अपना ‘गाँग’ बजाता हुआ आगे बढ़ता जाता। गाँग की आवाज़ हमें दिन में अनेक बार, कभी एक ओर से तो कभी दूसरी ओर से सुनाई देती रहती। उसकी प्रदक्षिणा प्रार्थना के वक्त समाप्त होती, वह प्रार्थना-स्थल पर पहुँचकर बड़े आदरभाव से गाँधी जी को प्रणाम करता और एक ओर को बैठ जाता। इस प्रकार भिक्षु आश्रम में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति किया करता था।
पृथ्वीसिंह आज़ाद कौन थे ?
पृथ्वीसिंह आज़ाद एक क्रांतिकारी थे। वे बहुत शक्तिशाली थे। उन्हें एक बार अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें हथकड़ी लगाकर अन्यत्र ले जाया जा रहा था। मौका देखकर पृथ्वीसिंह आज़ाद हथकड़ी समेत रास्ते में रेलगाड़ी से कूद गए। वे भाग निकलने में सफल रहे। वहाँ से चलकर वे वर्षों तक गुमनामी की जिंदगी जीते रहे। इसी दौरान उन्होंने यह अध्यापन कार्य भी किया। वे गाँधीजी के सेवाग्राम आश्रम में भी गए थे। वहीं उन्होंने अपने बारे में सबको बताया। लेखक भी उन दिनों वहीं आश्रम में थे। उसने पृथ्वीसिंह के मुँह से ही उसकी वीरता के कारनामे सुने।
ट्यूनीसिया में क्या होने जा रहा था? लेखक को ट्यूनीशिया जाने का अवसर कैसे मिला?
ट्यूनीसिया की राजधानी ट्यूनिस में अफ्रो-एशियाई लेखक संघ का सम्मेलन होने जा रहा था। भारत से जाने वाले प्रतिनिधि मंडल में सर्वश्री कमलेश्वर, जोगिंदरपाल, बालू राब, अब्दुल बिस्मिल्लाह आदि थे। कार्यकारी महामंत्री के नाते लेखक अपनी पत्नी के साथ कुछ दिन पहले पहुँच गया था। ट्यूनिस में ही उन दिनों लेखक संघ की पत्रिका ‘लोटस’ का संपादकीय कार्यालय हुआ करता था।
‘आस्था और अद्धा प्रकट करने के लिए धनी होना आवश्यक नहीं है’ पाठ में आए ‘बाजीगर’ प्रसंग के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
पेरिस में क्रिसमस के दिन एक अत्यंत गरीब बाजीगर भी माता मरियम के चरणों की अभ्यर्थना करना चाहता था, पर उसके पास उपहार खरीदने के लिए न तो धन था, और न गिरजे में जाने योग्य वस्त्र। ऐसे में उसने अपने कला-कौशल के बल पर माता के सम्मुख अपने करतब दिखाकर अभ्यर्थना का निर्णय लिया और सबके चले जाने पर माता के सम्मुख ऐसा ही किया। माता मरियम ने उसका करतब देख उसके सिर पर हाथ फेरा। इस प्रसंग से स्पष्ट हो जाता है कि आस्था और श्रद्धा प्रकट करने के लिए धनी होना आवश्यक नहीं है, बस मन में सच्ची लगन और अभिलाषा होनी चाहिए।
बाजीगर कैसे गिरजे में घुसा ? वहाँ उसने क्या किया ? पादरी ने वहाँ क्या दृश्य देखा ?
जब श्रद्धालु चले गए और गिरजा खाली हो गया तो बाजीगर चुपके से अंदर घुस गया। वह कपड़े उतारकर पूरे उत्साह के साथ अपने करतब दिखाने लगा। गिरजे में अँधेरा था श्रद्धालु जा चुके थे। दरवाजे बंद थे। कभी सिर के बल खड़े होकर, कभी तरह-तरह अंगचालन करते हुए बड़ी तन्भयता के साथ, एक के बाद एक करतब दिखाता रहा यहाँ तक कि हाँफने लगा। उसके हाँफने की आवाज कहीं बड़े पादरी के कान में पड़ गई और वह यह समझकर कि कोई जानवर गिरजे के अंदर घुस आया है और गिरजे को दूषित कर रहा है, भागता हुआ गिरजे के अंदर आया। उस वक्त बाजीगर, सिर के बल खड़ा अपना सबसे चहेता करतब बड़ी तन्मयता से दिखा रहा था। यह दृश्य देखते ही बड़ा पादरी तिलमिला उठा। माता मरियम का इससे बड़ा अपमान क्या होगा ? आगबबूला, वह नट की ओर बढ़ा ताकि उसे लात जमाकर गिरजे के बाहर निकाल दे। वह नट की ओर गुस्से से बढ़ ही रहा है तो क्या देखता है कि माता मरियम की मूर्ति अपनी जगह से हिली, माता मरियम अपने मंच पर से उतर आई और धीरे-धीरे आगे बढ़ती हुई नट के पास जा पहुँची और अपने आँचल से हाँफते नट के माथे का पसीना पोंछती उसके सिर को सहलाने लगी।
सेवाग्राम में ठहरा जापानी बौद्ध क्या किया करता था ?
उन दिनों आश्रम में एक जापानी ‘भिक्षु’ अपने .चीवर वस्त्रों में गाँधीजी के आश्रम की प्रदक्षिणा करता था। लगभग मील-भर के घेरे में, बार-बार अपना ‘गाँग’ बजाता हुआ आगे बढ़ता जाता। गाँग की आवाज दिन में अनेक बार, कभी एक ओर से तो कभी दूसरी ओर से सुनाई देती रहती। उसकी प्रदक्षिणा प्रार्थना के वक्त समाप्त होती, जब वह प्रार्थना स्थल पर पहुँचकर बड़े आदरभाव से गाँधीजी को प्रणाम करता और एक और को बैठ जाता।
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