NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antara Chapter 4: Banaras - Disha

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antara Chapter 4: Banaras - Disha - An engrossing and thought-provoking study of two poems, representative of thematic wealth and cultural significance. Banaras is a poem that substantially depicts the city in its ancient perspective and outlines its spirit and spiritual value. Descriptive linguistics marks the cultural and historical features of Banaras in this poem, making it an ode to the timeless beauty of the city. Disha, on the other hand, is a more pensive poem about the concept of direction and purpose that one gains in life. It reflects upon choices taken and paths followed, urging one to look within and rediscover themselves.

Download PDF For NCERT Solutions for Hindi Banaras - Disha

The NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antara Chapter 4: Banaras - Disha are tailored to help the students master the concepts that are key to success in their classrooms. The solutions given in the PDF are developed by experts and correlate with the CBSE syllabus of 2023-2024. These solutions provide thorough explanations with a step-by-step approach to solving problems. Students can easily get a hold of the subject and learn the basics with a deeper understanding. Additionally, they can practice better, be confident, and perform well in their examinations with the support of this PDF.

Download PDF

Access Answers to NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antara Chapter 4: Banaras - Disha

Students can access the NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antara Chapter 4: Banaras - Disha. Curated by experts according to the CBSE syllabus for 2023–2024, these step-by-step solutions make Hindi much easier to understand and learn for the students. These solutions can be used in practice by students to attain skills in solving problems, reinforce important learning objectives, and be well-prepared for tests.

बनारस –

Question 1 :

बनारस की पूर्णता और रिक्तता को कवि ने किस प्रकार दिखाया है ?

Answer :

कवि के अनुसार बनारस शहर की पूर्णता और रिक्तता की स्थिति बड़ी अजीब है। पूर्णता और रिक्तता का यह सिलसिला निरंतर चलता रहता है। भले ही यह सिलसिला धीमी गति से चलता है, पर इसमें निरतंरता बनी रहती है। यहाँ रोज़ लोग जन्म लेते और मरते रहते हैं।
पूर्णता : बनारस की पूर्णता को कवि ने वसंत आने पर लोगों के मन में आए उल्लास के रूप में दर्शाया है। कवि ने दर्शाया है इस ऋतु में लोगों में, पेड़-पौधों में, पशु-पक्षियों में जीवन के प्रति आशा का संचार जाग जाता है। बनारस का जीवन उल्लास से परिपूर्ण हो जाता है।
रिक्तता : बनारस की रिक्तता को कवि ने शहर की अंधेरी गलियों से गंगा की ओर ले जाने वाले शवों के चित्रण के माध्यम से दर्शाया है। कवि दर्शाता है कि मनुष्य की नश्वरता के कारण ही यह शहर रिक्त होता जाता है। पुराने की समाप्ति बनारस शहर को खाली करती रहती है।

 


Question 2 :

बनारस में वसंत का आगमन कैसे होता है और उसका क्या प्रभाव इस शहर पर पड़ता है ?

Answer :

बनारस में वसंत का आगमन अचानक होता है। उसके आगमन के समय बनारस के मुहल्लों में धूल का बवंडर उठता प्रतीत होता है। लोगों की जीभ पर धूल की किरकिराहट का अनुभव होने लगता है। यह वसंत उस वसंत से भिन्न प्रकार का होता है जैसा वसंत के बारे में माना जाता है। यहाँ वह बहार नहीं आती है जो वसंत के साथ जुड़ी है। बनारस में तो गंगा, गंगा के घाट तथा मंदिरों और घाटों के किनारे बैठे भिखारियों के कटोरों में वसंत उतरता प्रतीत होता है। इन स्थानों पर भीड़ बढ़ जाती है। भिखारियों को ज्यादा भीख मिलने लगती है।

 


Question 3 :

‘खाली कटोरों में वसंत का उतरना’ से क्या आशय है ?

Answer :

‘खाली कटोरों में वसंत का उतरना’ से यह आशय है कि जो भिखारी अब तक मंदिरों और घाटों पर खाली कटोरों को लिए बैठे हुए थे अब उनमें लोगों द्वारा पैसे डालने शुरू हो जाते हैं। इससे भिखारियों की आँखों में चमक आ जाती है। उनके कटोरों में गिरते सिक्के उन्हें वसंत के आगमन की सूचना दे देते हैं। लगता है उनके कटोरों में वसंत उतर आया है।

 


Question 4 :

बनारस में धीरे-धीरे क्या होता है ? ‘धीरे-धीरे’ से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है ?

Answer :

कवि बनारस शहर की धीमी गति के बारे में कई बातें बताता है :

  • बनारस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है।

  • बनारस के लोग धीरे-धीरे चलते हैं।

  • बनारस के सभी काम धीरे-धीरे होते हैं।

  • यहाँ मंदिरों और घाटों पर घंटे भी धीरे-धीरे बजते हैं।

  • बनारस में शाम भी धीरे-धीरे उतरती है।

  • बनारस में हर गतिविधि का धीरे-धीरे होना एक सामूहिक लय है।

  • शहर में हर कार्य अपनी ही ‘रौ’ में धीरे-धीरे होता है।

धीरे-धीरे से कवि यह कहना चाहता है कि ‘धीरे-धीरे’ होना बनारस शहर की पहचान है। इस सामूहिक गति ने ही इस शहर को दृढ़ता से बाँधे रखा है।

बनारस के ‘धीरे-धीरे’ के चरित्र के कारण ही यहाँ की प्राचीन संस्कृति, आध्यात्मिक आस्था, विश्वास, श्रद्धा, भक्ति आदि की विरासत अभी तक सुरक्षित है। इनकी दृढ़ता के कारण यहाँ से न कुछ हिलता है, न गिरता है, सभी कुछ यथावत बना रहता है। यही स्थिरता बनारस की विशेषता है।

 


Question 5 :

धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय में क्या-क्या बँधा है?

Answer :

धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय में सारा शहर दृढ़ता के साथ बँधा है।
जो चीजें जहाँ थीं वे वहीं पर मौजूद हैं।
नाव वहीं बँधी है अर्थात् गंगा से संबंधित परंपराएँ उसी रूप में विद्यमान हैं।
तुलसीदास की खड़ाऊँ भी सैकड़ों वर्षों से वहीं रखी है। तात्पर्य यह है कि वहाँ का धार्मिक और ऐतिहासिक वातावरण वैसा ही बना हुआ है। गंगा के साथ लोगों की आस्था और मोक्ष की अवधारणा जुड़ी हुई है।

 


Question 6 :

‘सई-साँइ’ में घुसने पर बनारस की किन-किन विशेषताओं का पता चलता है ?

Answer :

सई-साँझ में घुसने पर बनारस की विशेषताओं का पता चलता है कि इस शहर की बनावट अजीब किस्म की है। यह शहर आधा जल के अंदर और आधा बाहर दिखाई देता है। यहाँ गंगा-तट पर शव जलाए भी जाते हैं और पानी में बहाए भी जाते हैं। फूल और शंख भी दिखाई देते हैं। बनारस में जहाँ एक ओर अति प्राचीनता, आध्यात्मिकता है वहीं आधुनिकता का समाहार है। यह शहर पुराने रहस्यों को खोलता जान पड़ता है।

 


Question 7 :

बनारस शहर के लिए जो मानवीय क्रियाएँ इस कविता में आई हैं, उनका व्यंजनार्थ स्पष्ट कीजिए।

Answer :

इस कविता में बनारस शहर के लिए निम्नलिखित मानवीय क्रियाएँ आई हुई हैं :

इस पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है।

इस पंक्ति का व्यंजनार्थ है कि धूलभरी आँधियाँ चलने से शहरों की सड़कों पर धूल एकत्रित हो जाती है और वह किरकिराहट पैदा करती है। यह हर जगह महसूस होती है।

अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर

अपनी दूसरी टाँग से बेखबर।

इन पंक्तियों का व्यंजनार्थ यह है कि बनारस शहर अपनी घोर आध्यात्मिकता में इस कदर खोया हुआ है कि उसे दूसरे पक्ष का ध्यान ही नहीं रहता। एक टाँग और दूसरी टाँग के माध्यम से यह स्थिति स्पष्ट नहीं है।

 


Question 8 :

शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
(क) यह धीरे-धीरे होना ……. समूचे शहर को।
(ख) अगर ध्यान से देखो …… और आधा नहीं है।
(ग) अपनी एक टाँग पर ………. बेखबर।

Answer :

(क) इन पंक्तियों में बनारस के जन-जीवन की धीमी गति को रेखांकित किया गया है। यह धीमापन समस्त समाज का प्राण है। इसी धीमेपन ने सारे शहर को मजबूती से बाँध रखा है।

  • ‘धीरे-धीरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

  • भाषा में लाक्षणिकता का समावेश है।

(ख) कवि इन पंक्तियों में बनारस शहर की विचित्रता पर प्रकाश डालता है। यहाँ संपूर्णता के दर्शन नहीं होते। लगता है आधा है और आधा नहीं है।

  • ‘आधा’ शब्द में चमत्कार है।

  • प्रतीकात्मकता का समावेश है।

(ग) बनारस एक टाँग पर खड़ा शहर प्रतीत होता है। यह शहर स्वयं में व्यस्त और मस्त रहता है। इसे दूसरों का कोई पता ही नहीं रहता।
‘एक टाँग पर खड़ा होना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है। लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता है।

 


दिशा –

Question 1 :

‘बच्चे का उधर-उधर कहना’-क्या प्रकट करता है ?

Answer :

बच्चे का उधर-उधर कहना यह प्रकट करता है कि वह केवल एक ही दिशा को जानता है और वह दिशा है उसके पतंग की दिशा। बच्चे के लिए वही सब कुछ है।

 


Question 2 :

‘मैं स्वीकार करूँ, मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है ‘-प्रस्तुत पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।

Answer :

इन पंक्तियों का भाव यह है कि कवि पहली बार हिमालय की दिशा को बच्चे के संकेतानुसार जानता है। वह इसे स्वीकार करे या न करे, उसके सामने यह द्विविधा है। हर व्यक्ति का यथार्थ अपने अनुसार होता है।

 


योग्यता विस्तार –

Question 1 :

 बनारस के चित्र इकट्डे कीजिए।

Answer :

यह कार्य विद्यार्थी स्वयं करें।

 


Question 2 :

आप बनारस के बारे में क्या जानते हैं ? लिखिए।

 

Answer :

हम बनारस के बारे में ये-ये बातें जानते हैं :

  • बनारस गंगा-तट पर बसा शहर है।

  • बनारस एक प्रसिद्ध धार्मिक नगरी है। यह शिव की नगरी है।

  • बनारस में बनी सिल्क साड़ियाँ विश्वभर में प्रसिद्ध हैं।

  • बनारसी एक्का अपने ढंग का खास होता है।

  • बनारस के ठग भी बड़े मशहूर हैं।

  • बनारस में जयशंकर प्रसाद और प्रेमचंद जैसे महान साहित्यकार पैदा हुए हैं।

  • प्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ भी बनारस की देन हैं।

 


Question 3 :

 बनारस शहर की विशेषताएँ जानिए

Answer :

बनारस की साड़ियाँ
– बनारस के एक्का
– बनारस के ठग

 


काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न –

Question 1 :

निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :

1. यह धीरे धीरे होना
धीरे धीरे होने की सामूहिक लय
दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को।

Answer :

काव्य-सौंदर्य :
भाव-सौंदर्य : इन पंक्तियों में कवि ने बनारस में हर काम के धीमी ग़ति से होने की प्रवृत्ति का चित्रण किया है। यहाँ यह विचार भी प्रकट किया गया है कि धीरे-धीरे होने की सामूहिक गति के कारण ही यहाँ की संस्कृति, परंपराएँ, आस्था, विश्वास, श्रद्धा आदि सब कुछ दृढ़तापूर्वक इस शहर में रचा-बसा हुआ है। इस धीमेपन ने सारे शहर को मजबूती से बाँध रखा है।

शिल्प-सौंदर्य :

  • ‘धोरे-धीरो’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

  • बिंब योजना सराहनीय है।

  • भाषा में चित्रात्मकता है।

  • लाक्षणिकता का समावेश है।

  • शब्द चयन अत्यंत सटीक एवं आकर्षक है।

 


Question 2 :

किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्घ्य
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टाँग से बिलकुल बेखबर।

Answer :

इस काव्यांश में कवि कहता है कि यह बनारस शहर शताब्दियों से किसी अलक्षित सूर्य को अर्घ्य देता हुआ गंगाजल में अपनी एक टाँग पर खड़ा है और दूसरी टाँग से बिल्कुल अनजान बना हुआ है। तात्पर्य यह है कि सूर्य को इस शहर में सदियों से एक परमब्रह्म शक्ति का प्रतिरूप मानकर पूजा जाता रहा है। यह परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है। बनारस का एक हिस्सा अभी भी उसी प्रकार दृढ़ है तो दूसरा हिस्सा आधुनिकता के प्रभाव में है। दोनों का एक दूसरे पर कोई प्रभाव नहीं है। इस प्रकार बनारस की प्राचीनता, आध्यात्मिकता और भव्यता के साथ-साथ आधुनिकता भी आ रही है।

भाव-सौंदर्य – यहाँ कवि ने यह भाव प्रकट किया है कि बनारस के दो रूप हैं। एक रूप है- आध्यात्मिक स्वरूप। यह सदियों से दृढ़तापूर्वक पहले की भाँति स्थिर है। दूसरा रूप है आधुनिक जीवन। इस आधुनिकता का आध्यात्मिक स्वरूप की आस्था, श्रद्धा और भक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। बनारस की प्राचीनता, आध्यात्मिकता और भव्यता चिरस्थायी है।

शिल्प-सौंदर्य :

  • यहाँ ‘टाँगों’ का प्रतीकात्मक प्रयोग हुआ है।

  • बिंब योजना दर्शनीय है।

  • ‘बिल्कुल बेखबर’ में अनुप्रास अलंकार है।

  • भाषा सरल, सजीव एवं प्रवाहपूर्ण है।

  • ‘एक टाँग पर खड़ा होना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।

 


Question 3 :

जो है वह खड़ा है
बिना किसी स्तंभ के
जो नहीं है उसे थामे हैं
राख और रोशनी के ऊँचे-ऊँचे स्तंभ आग के स्तंभ
और पानी के स्तंभ
धुएँ के
खुशबू के.
आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ

Answer :

प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ सिंह की कविता ‘बनारस’ से अवतरित हैं। इन पक्तियों में कवि बनारस के प्राचीन एवं भव्य स्वरूप्की झाँकी प्रस्तुत करते हुए आधुनिकता की ओर भी संकेत करता है। इस काव्यांश में बनारस के विशिष्ट चरित्र को भी इंगित किया गया है। कवि कहता है कि बनारस में जो कुछ विद्यमान है वह बिना किसी खंभे के सहारे खड़ा है अर्थात् यहाँ की प्राचीनता, आध्यात्मिकता, आस्था, विश्वास, भक्ति के साथ बिना किसी सहारे के अपने आप ही जन-जीवन में समाया हुआ है।

इस प्रकार इसका मिथकीय स्वरूप बिना किसी आश्रय के अभी तक सुरक्षित है। उसे राख, रोशनी के ऊँचे-ऊँचे खंभे, आग के स्तंभ और पानी के खंभे धुएँ के सुगंध के और आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ थामे हुए हैं। भाव यह है कि बनारस में एक ओर प्राचीन आध्यात्मिकता के दर्शन होते हैं तो दूसरी ओर आधुनिक जीवन शैली भी दिखाई देती है।

  • इस काव्यांश में बनारस के मिले-जुले स्वरूप की झाँकी प्रस्तुत की गई है।

  • ‘ऊँचे-ऊँचे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

  • स्तंभ शब्द की आवृत्ति ने काव्य का सौंदर्य बढ़ा दिया है।

  • भाषा सरल, सुबोध पर प्रतीकात्मक है।

 


Question 4 :

यह आधा जल में है
आधा मंत्र में
आधा फूल में
आधा शव में
आधा नींद में
आधा शंख में
अगर ध्यान से देखो

तो यह आधा है
और आधा नहीं है

Answer :

भाव सौंदर्य-इन पंक्तियों में बनारस के सांध्यकालीन वातावरण की विचित्रता को रेखांकित किया गया है। उस समय यहाँ किसी भी क्रियाकलाप में संपूर्णता के दर्शन नहीं होते।
यहाँ बनारस के मिथकीय स्वरूप की विशेषता बताई गई है। इस शहर में जहाँ एक ओर प्राचीनता, आध्यात्मिकता, आस्था, श्रद्धा और भक्ति है, वहीं दूसरी ओर आधुनिकता का समावेश भी है।

शिल्प-सौंदर्य – ‘आधा’ शब्द की आवृत्ति से विशेष आकर्षण उत्पन्न हो गया है।

  • भाषा सरल पर अर्थ में गहनता है।

  • शब्द-प्रयोग में मितव्ययता बरती गई है।

 


Question 5 :

आदमी दशाश्वमेध पर जाता है
और पाता है घाट का आखिरी पत्थर
कुछ और मुलायम हो गया है
सीढ़ियों पर बैठे बंदरों की आँखों में
एक अजीब सी नमी है
और एक अजीब सी चमक से भर उठा है
भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन।

Answer :

भाव-सौंदर्य – कवि बताता है कि वसंत ऋतु के मौसम में बनारस में दशाश्वमेध घाट पर जाने वाला व्यक्ति यह महसूस करने लगता है कि घाट का आखिरी पत्थर कुछ और नरम हो गया है, उसकी कठोरता कम हो गई है। तात्पर्य यह कि इस ऋतु में पाषाण हृदय व्यक्ति के व्यवहार में भी सहृदयता आ जाती है। वहाँ सीढ़ियों पर बैठे बंदरों की आँखों में एक विचित्र-सी नमी दिखाई देती है। सीढ़ियों पर बैठे भिखारियों के खाली कटोरों में भी चमक आ जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि भीख मिलने के कारण उनके कटोरों में भी वसंत उतर आया है।

शिल्प-सौंदर्य :

  • इन पंक्तियों में चित्रात्मकता का गुण दिखाई देता है।

  • ‘बैठे बंदरों’ में अनुप्रास अलंकार है।

  • वसंत-आगमन के प्रभाव का सजीव चित्रण हुआ है।

  • लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है।

  • बिंब-योजना दर्शनीय है।

  • भाषा सरल, सुबोध एवं चमत्कारी है।

 


प्रतिपाद्य संबंधी प्रश्न –

Question 1 :

‘बनारस’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

Answer :

‘बनारस’ शीर्षक कविता में प्राचीनतम शहर बनारस के सांस्कृतिक वैभव के साथ ठेठ बनारसीपन पर भी प्रकाश डाला गया है। इस शहर के साथ मिथकीय आस्था – काशी और गंगा के सान्निध्य के साथ मोक्ष की अवधारणा जुड़ी है। बनारस में हर काम अपनी ‘रौ’. में होता है। यह बनारस का चरित्र है। आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास, आश्चर्य और भक्ति का मिला-जुला रूप बनारस है। काशी की अति प्राचीनता, आध्यात्मिकता एवं भव्यता के साथ आधुनिकता का समाहार इस कविता में मौजूद है। बनारस में गंगा, गंगा के घाट, मंदिर और मंदिर के घाटों के किनारे बैठे भिखारियों के कटोरे, जिनमें वसंत उतरता है, का चित्रण ‘बनारस’ कविता में हुआ है।

 


Question 2 :

‘दिशा’ कविता में कवि ने बच्चे से क्या पूछा? बच्चे ने क्या जवाब दिया?

Answer :

‘दिशा’ कविता बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। इस कविता में एक बच्चा पतंग उड़ा रहा है। कवि उस पतंग उड़ाते बच्चे से पूछता है- “बच्चे बता, हिमालय किधर है ?”
बच्चा बाल सुलभ उत्तर देता है- “हिमालय उधर है, जिधर मेरी पतंग भागी जा रही है।”
बच्चे का यही यथार्थ है। हर व्यक्ति का अपना यथार्थ होता है। बच्चा यथार्थ को अपने को अपने ढंग से देखता है। कवि को यह बाल-सुलभ संज्ञान मोह लेता है। हम बच्चों से भी कुछ-न-कुछ सीख सकते हैं।

 


Question 3 :

वसंत आने पर दशाश्वमेध घाट पर व्यक्ति क्या पाता है?

Answer :

वसंत खुशियाँ आने का प्रतीक है। बनारस शहर के दशाश्वमेध घाट पर वसंत आने का तात्पर्य है- वहाँ श्रद्धालुओं, भक्तों और पर्यटकों का आना। उनके आने से चारों ओर खुशियों का वातावरण बन जाता है। घाट पर बैठे भिखारियों के कटोरों में दान और भिक्षा के रूप में खुशियाँ आ जाती हैं। व्यक्ति आस्था, भक्ति, श्रद्धा और विश्वास में डूबकर दैविक आशीर्वाद और प्रेरणा पाते हैं तथा अपनी जड़ता खो बैठते हैं।

 


Enquire Now