NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antara Chapter 14 "Sher, Pehchan, Chaar Haath, Sajha" explains the poems comprehensively with detailed explanations and interpretations in order to make students understand it better. The chapter is on the nuances of various genres of Hindi literature, focusing again on the forms and styles of sher, pehchan, chaar haath, and sajha. These forms carry within them a good bunch of variations in Hindi poetry and further add to the literary knowledge and analytical skills of the students. Apart from this, the solution of Class 12 Hindi Antra Chapter 14 pdf also engages in a detailed analysis regarding the themes, metaphors and stylistic elements employed by the poets, which helps to appreciate their depth.
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लोमड़ी स्वेच्छा से शेर के मुँह में क्यों जा रही थी ?
लेखक ने जंगल में देखा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर एक लाइन में चले जा रहे हैं और शेर के मुँह में घुसते चले जा रहे हैं। शेर उन्हें बिना चबाए गटकता जा रहा है। फिर उसे एक लोमड़ी मिली। वह भी शेर के मुँह में चली जा रही थी। वह स्वेच्छा से अर्थात् अपनी मर्जी से शेर के मुँह में जा रही थी। जब लेखक ने उससे पूछा कि तुम शेर के मुँह में क्यों जा रही हो; तब उसने उत्तर दिया-” शेर के मुँह में रोज़गार का दफ्तर है। मैं वहाँ दरखास्त दूँगी, फिर मुझे नौकरी मिल जाएगी।” यह बात उसे शेर ने ही बताई थी।
कहानी में लेखक ने शेर को किस बात का प्रतीक बताया है ?
कहानी में लेखक ने शेर को व्यवस्था का प्रतीक बताया है। वह सत्ता की व्यवस्था का प्रतीक है। जैसे ही कोई उसकी व्यवस्था पर उँगली उठाता है या उसकी आज्ञा मानने से इंकार करता है, वह खूँखार हो उठती है। यह सत्ता विरोध में उठने वाले स्वर को कुचल देती है। वह अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए अपने बारे में तरह-तरह के भ्रम प्रचारित करता है और लोगों को उस भ्रमजाल में फँसा लेता है। सामान्य लोग उसका विश्वास कर काल का ग्रास बन जाते हैं।
शेर के मुँह और रोजगार के दफ्तर के बीच क्या अंतर है ?
शेर के मुँह के अंदर जो भी जंगली जानवर एक बार जाता है, उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। वह वहौँ से पुन: लौटकर कभी नहीं आया। आधुनिक रोजगार दफ्तर में लोग नौकरी की उम्मीद में वहाँ के चक्कर काटते रहते हैं पर उन्हें वहाँ से कभी नौकरी नहीं मिलती। पर इतना अंतर अवश्य है कि रोजगार दफ्तर उन्हें शेर के मुँह की भॉति निगलकर उनका अस्तित्व समाप्त नहीं करता।
‘ग्रमाण से अधिक महत्त्वपूर्ण है विश्वास’-शेर कहानी के आधार पर टिप्पणी कीजिए।
जब लेखक पूछता है कि यदि शेर का मुँह रोजगार का दफ्तर है तो पास में रोजगार दफ्तर क्यों है ? तब उसे जवाब मिलता है कि प्रमाण से अधिक महत्त्वपूर्ण है विश्वास। यद्यपि शेर का मुँह हिंसा का प्रतीक है, पर विभिन्न जीवों को यह विश्वास दिलाया गया कि शेर के अंदर घास का हरा-भरा मैदान है, वहाँ रोजगार का दफ्तर है। शेर के मुँह में स्वर्ग है। अतः वे उसके मुँह में समाते चले गए। उन्हें किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं थी, बल्कि उन्हें अटूट विश्वास था। आज का सत्ताधारी वर्ग भी लोगों का विश्वास हासिल करने उनका शोषण करता है। यदि नेता जनता का विश्वास जीत जाता है तो उसका ढोंग भली प्रकार चल जाता है।
आँख बंद रखने और आँखें खोलकर देखने के क्या परिणाम निकले ?
आँख बंद रखने का यह परिणाम निकला कि काम पहले की तुलना में अधिक और अच्छा होने लगा। इसका कारण था कि लोग इधर-उधर न देखकर हर वक्त काम में जुटे रहते थे। आँखें खोलकर देखने का यह परिणाम निकला कि अब उन्हें राजा के सिवाय कोई और दिखाई ही नहीं देता था। वे एक-दूसरे तक की पहचान खो बैठे थे। राजा चाहता भी यही था।
राजा ने जनता को हुक्म क्यों दिया कि सब लोग अपनी आँखें बंद कर लें ?
राजा ने जनता को आँखें बंद कर लेने का हुक्म इसलिए दिया ताकि वह मनमाने ढंग से अपना काम कर सके और लोगों से खूब काम ले सके। बंद आँखों से काम अच्छा और अधिक हो रहा था।
राजा को लगा कि जनता में शांति बनाए रखने के लिए आँखें बंद करवाना ही उचित है।
राजा ने आँखें इसलिए भी बंद करवाईं ताकि लोग एक-दूसरे को न देख सकें। अपना ध्यान वे काम में लगाएँ।
राजा ने कौन-कौन से हुक्म निकाले ? सूची बनाइए और इनके निहितार्थ लिखिए।
राजा ने निम्नलिखित हुक्म निकाले-
– सब लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे, ताकि उन्हें शांति मिलती रहे।
[निहितार्थ-लोग राजा के कामों को, हरकतों को न देख पाएँ और उसके काम में लगे रहें।]
– लोग अपने कानों में पिघला हुआ सीसा डलवा लें।
[निहितार्थ-इससे लोगों के सुनने की शक्ति समाप्त हो जाएगी। वे किसी विपक्षी की बातें सुनकर सत्ता का विरोध नहीं कर सकेंगे।]
– लोग अपने होंठ सिलवा लें। बोलने को उत्पादन में बाधक बताया गया।
[निहितार्थ-इसका निहितार्थ है कि लोग राजा के कार्यों के विरुद्ध अपनी आवाज न उठाएँ। वे चुप रहकर काम करते रहें।]
जनता राज्य की स्थिति की ओर आँख बंद कर ले तो उसका राज्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? स्पष्ट कीजिए।
यदि जनता राज्य की स्थिति की ओर आँख बंद कर ले अर्थात् ध्यान न दे तो शासक वर्ग निरंकुश हो जाएगा। तब राज्य की प्रगति तो अवरुद्ध हो जाएगी, पर राजा (सत्ता) की व्यक्तिगत उन्नति खूब होगी। वह राज्य की संपत्ति का उपभोग अपने लिए ही करेगा। राज्य की दशा सुधारने में उसकी कोई रुचि नहीं होती। वह तो तभी रुचि लेता है जब राज्य की जनता सचेत रहती है। शासक वर्ग तो यही चाहता है कि राज्य की जनता राज्य के प्रति आँखें मूँदे रहे।
खैराती, रामू और छिदू ने जब आँखें खोलीं तो उन्हें राजा ही क्यों दिखाई दिया ?
खैराती, रामू और छिदू आम जनता के प्रतीक हैं। जब राजा (शासक वर्ग) जनता को गूँगा, बहरा और अंधा बना देता है तब जनता की अपनी पहचान खो जाती है। उसे वही दिखाई देता है जो उसे दिखाया जाता है। इन लोगों की मन:स्थिति ऐसी बना दी गई थी कि उन्हें राजा के अलावा और कोई दिखाई ही न देता था। इसी स्थिति को Brainwash करना कहते हैं। इसमें जनता की अपनी पहचान खो जाती है। उसे वही दिखाई देता है जो उसे दिखाया जाता है। इन लोगों की मन:स्थिति ऐसी बना दी गई थी कि उन्हें राजा के अलावा और कोई दिखाई नहीं दिया। उनकी स्थिति ऐसी थी जैसे सावन के अंधे को हरा-ही हरा दिखाई देता है।
मजदूरों को चार हाथ देने के लिए मिल मालिक ने क्या-क्या किया और उसका क्या परिणाम निकला ?
मिल मालिक ने मजदूों को चार हाथ देकर अधिक काम करवाने का विचार किया। इसके लिए उसने निम्नलिखित प्रयास किए:
बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाह पर नौकर रखा ताकि वे शोध और प्रयोग करके मजदूरों के चार हाथ कर सकें। कई साल के प्रयोग के बाद उन्होंने इसे असंभव बताया अतः वैज्ञानिकों की छुट्टी कर दी गई।
फिर मिल मालिकों ने कटे हुए हाथ मँगवाए और उन्हें मजदूरों को फिट करना चाहा, पर ऐसा हो नहीं सका।
फिर उसने लकंड़ी के हाथ मँगवाए और उन्हें लगवाना चाहा। उनसे काम नहीं हो पाया।
फिर उसने लोहे के हाथ मँगवाए। उन्हें फिट करवाया तो मजदूर मर गए।
चार हाथ न लग पाने की स्थिति में मिल मालिक की समझ में क्या बात आई ?
एक दिन मिल-मालिक के दिमाग में एक ख्याल आया कि अगर मज़दूरों के चार हाथ हों तो काम बहुत तेजी से होगा और उसका मुनाफ़ा भी ज्यादा हो जाएगा। उसने इस काम को करने के लिए बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाह पर नौकर रखा। कई साल तक शोध और प्रयोग करने के बाद उन्होंने कहा कि ऐसा करना असंभव है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ।
मिल-मालिक नाराज़ हो गया। वह स्वयं इसका उपाय ढूँढ़ने में जुट गया। उसने कटे हाथ मँगवाए और उन्हें अपने मज़दूरों के फिट करवाना चाहा, पर ऐसा न हो सका। लकड़ी के हाथ भी नहीं लग पाए। अंत में उसे एक बात समझ में आ गई। उसने मज़दूरों की मजदूरी आधी कर दी। इससे बचे पैसों से दुगुने मजदूर काम पर रख लिए। अब उन्हीं पैंसों में दुगुना काम होने लगा।
साझे की खेती के बारे में हाथी ने किसान को क्या बताया ?
साझे की खेती के बारे में हाथी ने किसान को यह बताया कि वह उसके साथ साझे में खेती करे। उसने समझाया कि साझे की खेती करने का यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे। खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी।
हाथी ने खेत की रखवाली के लिए क्या घोषणा की ?
किसान अकेले खेती करने का साहस नहीं जुटा पाता था। वह पहले शेर, चीते, मगरमच्छ के साथ खेती कर चुका था, पर उसे कोई लाभ नहीं हुआ था। अबकी बार हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ खेती करे। इससे उसे यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा पाएँगे। अंतत: किसान इसके लिए तैयार हो गया। उसने हाथी से मिलकर खेत में गन्ना बोया। हाथी ने खेत की रखवाली के लिए पूरे जंगल में घूमकर यह डुग्गी पीटी कि अब गन्ने के खेत में उसका साझा है, इसलिए कोई जानवर खेत को नुकसान न पहुँचाए, नहीं तो अच्छा नहीं होगा। इस प्रकार गन्ने के खेत की रखवाली अच्छी प्रकार से हो गई।
आधी-आधी फसल हाथी ने किस तरह बँटी ?
गन्ने की फसल पकने पर किसान हाथी को खेत पर बुला लाया। किसान चाहता था कि फसल आधी-आधी बाँट ली जाए। जब उसने हाथी को यह बात कही तो वह बिगड़ उठा। वह बोला, “अपने-पराए की बात मत करो। यह छोटी बात है। हम दोनों गन्ने के स्वामी हैं। अतः हम मिलकर गन्ने खाएँगे।” यह कहकर गन्ने का एक छोर हाथी ने अपने मुँह में ले लिया और दूसरा सिरा किसान के मुँह में दे द्यिया। गन्ने के साथ-साथ आदमी भी हाथी के मुँह की तरफ खिंचने लगा तो उसने गन्ना छोड़ दिया। इस प्रकार सारा गन्ना हाथी के हिस्से में आ गया।
यदि आपके भी सींग निकल आते तो आप क्या करते ?
यदि हमारे सींग निकल आते अर्थात् व्यवस्था से अलग रास्ता बनाते तो हम अन्यायी सत्ता को उखाड़ फेंकने का प्रयास करते। हम अपना रास्ता स्वयं बनाते।
इस कहानी में हमारी व्यवस्था पर जो व्यंग्य किया गया है, उसे स्पष्ट कीजिए।
शेर व्यवस्था का प्रतीक है। इस कहानी में व्यवस्था पर करारा व्यंगय किया गया है। ऊपर से देखने में यह व्यवस्था रूपी शेर अहिंसावादी न्यायप्रिय और बुद्ध का अवतार प्रतीत होता है। यह व्यवस्था (सत्ता) तभी तक खामोश रहती है, जब तक लोग उसकी हर आज्ञा का पालन करते रहते हैं। जैसे ही कोई उसकी व्यवस्था पर उँगली उठाता है या उसकी आज्ञा को मानने से इंकार करता है, वह खूँखार हो उठती है और अपने विरोध में उठे हर स्वर को कुचलने का भरपूर प्रयास करती है। तब यह शेर की तरह मुँह फाड़ लेती है और आक्रामक रूप धारण कर लेती है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र का ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ नाटक देखिए और उस राजा से तुलना कीजिए।
यह कार्य विद्यार्थी स्वयं करें।
गाँधीजी के तीनों बंदर आँख, कान, मुँह बंद करते थे किंतु उनका उद्देश्य अलग था कि वे बुरा न देखेंगे, न सुनेंगे, न बोलेंगे। यहाँ राजा ने अपने लाभ के लिए या राज्य की प्रगति के लिए ऐसा किया। दोनों की तुलना कीजिए।
गाँधीजी परोपकारी थे जबकि यह राजा घोर स्वार्थी है। वह जनता को गूँगी, बहरी और अंधी बनाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। गाँधीजी आदर्शवादी थे।
आप यदि मिल मालिक होते तो उत्पादन दो गुना करने के लिए क्या करते ?
यदि हम मिल मालिक होते तो उत्पादन बढ़ाने के लिए मजदूरों को अधिक वेतन एवं बोनस देते ताकि वे पूरी लगन से काम करके उत्पादन को बढ़ाते।
लेखक ने गधे को किधर जाते देखा ? वह किस गलतफहमी में था ?
अगले दिन लेखक ने एक गधा देखा जो लंगड़ाता हुआ शेर के मुँह की तरफ चला जा रहा था। लेखक को उसकी बेवकूफी पर संख्त गुस्सा आया और वह उसे समझाने के लिए झाड़ी से निकलकर उसके सामने आया। लेखक ने उससे पूछा, “तुम शेर के मुँह में अपनी इच्छा से क्यों जा रहे हो ?” उसने कहा, “वहाँ हरी घास का एक बहुत बड़ा मैदान है। मैं वहाँ बहुत आराम से रहूँगा और खाने के लिए खूब घास मिलेगी।” लेखक ने कहा, “वह शेर का मुँह है।”
उसने कहा, “गधे, वह शेर का मुँह जरूर है, पर वहाँ है हरी घास का मैदान।” इतना कहकर वह शेर के मुँह के अंदर चला गया। वह वहाँ हरी घास मिलने का भ्रम पाले हुए था।
गन्ने की फसल तैयार होने पर किसान ने क्या चाहा और हाथी ने क्या किया ?
किसान फसल की सेवा करता रहा और समय पर जब गन्ने तैयार हो गए तो वह हाथी को खेत पर बुला लाया। किसान चाहता था कि फसल आधी-आधी बाँट ली जाए। जब उसने हाथी से यह बात कही तो हाथी काफी बिगड़ा।
हाथी ने कहा, “अपने और पराये की बात मत करो। यह छोटी बात है। हम दोनों ने मिलकर मेहनत की थी हम दोनों उसके स्वामी हैं। आओ, हम मिलकर गन्ने खाएँ।”
किसान के कुछ कहने से पहले ही हाथी ने बढ़कर अपनी सूँड़ से एक गन्ना तोड़ लिया और आदमी से कहा., “आओ खाएँ।”
गन्ने का एक छोर हाथी की सूँड़ में था और दूसरा आदमी के मुँह में। गन्ने के साथ-साथ आदमी हाथी की तरफ खिंचने लगा तो उसने गन्ना छोड़ दिया। इस प्रकार हाथी सारी फसल हथिया गया।
लेखक ने कुत्तों को किस रूप में देखा ?
लेखक ने एक दिन कुत्तों के एक बड़े जुलूस को देखा जो कभी हँसते-गाते थे और कभी विरोध में चीखते-चिल्लाते थे। उनकी बड़ी-बड़ी लाल जीभें निकली हुई थीं, पर सब दुम दबाए थे। कुत्तों का यह जुलूस शेर के मुँह की तरफ बढ़ रहा था। लेखक ने चीखकर कुत्तों को रोकना चाहा, पर वे नहीं रुके और उन्होंने उसकी बात अनसुनी कर दी। वे सीधे शेर के मुँह में चले गए।
‘शेर’ कहानी का प्रतिपाद्य संक्षेप में बताइए।
इस कहानी में शेर व्यवस्था (सत्ता) का प्रतीक है। यह व्यवस्था तभी तक चुप रहती है जब तक उसकी आज्ञाओं का पालन होता रहे। सत्ता को अपना विरोध हजम नहीं होता। जब वह आक्रामक रूप धारण कर लेती है।
‘पहचान’ लघुकथा का प्रतिपाद्य लिखिए।
‘पहचान’ लघुकथा का प्रतिपाद्य यढ़ है कि राजा अर्थात् सत्ता को सदा बहरी, गूँगी और अंधी प्रजा पसंद आती है। उसे ऐसी प्रजा चाहिए जो बिना कुछ बोले, बिना कुछ सुने और बिना कुछ देखो उसकी हर आज्ञा का पालन करती रहे। ‘पहचान’ में लेखक ने इसी यथार्थ की पहचान कराई है। अपनी छद्म प्रगति और विकास के बहाने राजा (सत्ता) उत्पादन के सभी साधनों पर अपनी पकड़ मजबूत करता जाता है। वह लोगों के जीवन को स्वर्ग जैसा बनाने का झाँसा देकर अपना स्वयं का जीवन स्वर्गमय बनाता है। वह जनता को एकजुट होने से रोकता है और उसे भुलावे में रखता है। यही उसकी सफलता का राज़ है।
‘चार हाथ’ लघुकथा का क्या प्रतिपाद्य है ?
‘चार हाथ’ लघुकथा पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूरों के शोषण को उजागर करती है। पूँजीपति भाँति-भाँति के उपाय करके मजदूरों को पंगु, असहाय बनाने के प्रयास करते हैं। वे मजदूरों के अहं और अस्तित्व को छिन्न-भिन्न करने के नए-नए तरीके ढूँढ़ते रहते हैं और अंततः उनकी अस्मिता को ही समाप्त कर देते हैं। मजदूर मालिक का विरोध करने की स्थिति में नहीं होते। मजदूरी तो मिल के कल-पुर्जे बन गए हैं। उन्हें लाचारी में आधी-अधूरी मजदूर पर भी काम करने को तैयार होना पड़ता है। यह लघुकथा मजदूरों की लाचारी-शोषण पर आधारित व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करती है।
‘साझा’ लघुकथा का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
‘साझा’ लघुकथा में उद्योगों पर कब्जा जमाने के बाद पूँजीपतियों की नज़र किसानों की जमीन और उत्पाद पर जमी नज़र को उजागर करती है। गाँव का प्रभुत्वशाली वर्ग भी इसमें शामिल रहता है। वह हाथी के रूप में किसान को साझा खेती करने का झाँसा देता है और अंत में उसकी सारी फसल हड़प कर लेता है। किसान इतना भोला होता है कि उसे यह पता भी नहीं चलता कि उसकी सारी कमाई हाथी (पूँजीपति) के पेट में चली जा रही है। यह हाथी और कोई नहीं बल्कि समाज का धनाद्य और प्रभुत्वशाली वर्ग है जो किसानों को धोखे में डालकर उसकी सारी मेहनत डकार जाता है। इस लघुकथा में किसानों की बदहाली के कारणों की भी पड़ताल की गई है।
शेर गौतम बुद्ध की मुद्रा छोड़ अपने वास्तविक रूप में आकर क्यों झपटा ?
शेर की गौतम बुद्ध वाली मुद्रा ओढ़ी हुई थी। वह वास्तव में वैसा था ही नहीं। वह गौतम बुद्ध जैसा दिखाई देने का ढोंग कर रहा था। जब बात उसके विपरीत गई तो वह अपने असली रूप में आ गया और लेखक पर झपटा। सत्ता पक्ष तभी तक गौतम बुद्ध की मुद्रा में रहता है जब जनता उसके कही बातों को आँख मूँदकर मानती रहती है। जो भी कोई उसकी पोल खोलता है या विरोध करता है, सत्ता पक्ष उसका गला घोंट देती है।
‘साझा’ कहानी में लेखक ने क्या बताना चाहा है ?
‘साझा’ कहानी में लेखक ने पूँजीपतियों की बुरी नीयत का पर्दाफाश किया है। उनकी नजर किसानों की जमीन तथा उनकी फसल पर लगी रहती है। इसमें गाँच का प्रभुत्वशाली वर्ग भी शामिल रहता है। वे सब मिलकर किसान को साझा खेती का झाँसा देते हैं और अंत में उनकी फसल हड़प लेते हैं। किसान को पता भी नहीं चलता और उसकी सारी कमाई हाथी के पेट में चली जाती है। यह हाथी और कोई नहीं बल्कि समाज का धनाद्य और प्रभावशाली वर्ग है।
जंगल में लेखक को आशा के विपरीत कौन-सा दृश्य नज़र आया?
आदमियों विशेषकर कसाई से भाग रहे लेखक ने जंगल में देखा कि बरगद के पेड़ के नीचे एक शेर बैठा था, जिसका मुँह खुला हुआ था। इस मुँह में जंगल के छोटे-मोटे जानवर एक लाइन में जा रहे थे। शेर उन्हें बिना हिले-डुले तथा बिना चबाए गटकता जा रहा था। इस भयानक दृश्य को देखकर लेखक बेहोश होते-होते बचा क्योंकि उसने ऐसे दृश्य की कल्पना भी नहीं की थी।
‘शेर’ लघु कथा में शेर किस बात का प्रतीक है ? इस लघु कथा के माध्यम से हमारी व्यवस्था पर क्या व्यंग्य किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
‘शेर’ कहानी के लेखक ने शेर को व्यवस्था का प्रतीक बताया है। यह व्यवस्था ही सत्ता है। यह प्रजा को अपने ढंग से चलाती है। यह व्यवस्था तब तक चुप रहती है जब तक इसकी हर आज्ञा का पालन होता रहे। इसका विरोध करने पर यह व्यवस्था शेर की तरह आक्रामक हो उठती है। इस लघु कथा के माध्यम से हमारी व्यवस्था पर यह व्यंग्य किया गया कि यह व्यवस्था ऊपरी तौर पर अहिंसावादी, न्यायप्रिय प्रतीत होती है, पर जब कोई इस व्यवस्था का विरोध करता है तब इस व्यवस्था का असली रूप (अहिंसक) सामने आ जाता है।
‘शेर’ कहानी के आधार पर बताइए कि शेर के मुँह और रोजगार के दफ्तर के बीच क्या साम्य और अंतर है ? इस कहानी के द्वारा हमारी व्यवस्था पर क्या व्यंग्य किया गया है ?
शेर के मुँह के अन्दर जो भी जंगली जानवर एक बार जाता है, उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। वह वहाँ से पुनः लौटकर कभी नहीं आया। आधुनिक रोजगार दफ्तर में लोग नौकरी की उम्मीद में वहाँ से चक्कर काटते रहते हैं पर उन्हें वहाँ से कभी नौकरी नहीं मिलती। पर इतना अंतर अवश्य है कि रोजगार दफ्तर उन्हें शेर के मुँह की भाँति निगलकर उनका अस्तित्व समाप्त नहीं करता। इस कहानी में हमारी व्यवस्था पर यह व्यंग्य है-शेर व्यवस्था का प्रतीक है। इस कहानी के द्वारा व्यवस्था पर यह व्यंग्य किया गया है कि व्यवस्था (सत्ता) तभी तक खामोश रहती है जब तक उसकी आज्ञाओं, इच्छाओं का पालन होता रहे। इसका विरोध होने पर वह शेर की तरह मुँह फाड़ लेती है और आक्रामक रूप धारण कर लेती है।
लेखक शहर छोड़कर कहाँ भागा? क्यों?
लेखक के सिर पर सींग निकल रहे थे। उसे डर हो गया कि किसी दिन कोई कसाई उसे पशु समझकर पकड़ लेगा। इस कारण वह आदमियों से डरकर जंगल में भागा ताकि वहाँ बच सके। दूसरे शब्दों में, लेखक व्यवस्था का विरोध करने लगा था। व्यवस्था के कहर से बचने के लिए वह जंगल में भागा ताकि वहाँ पर भयमुक्त होकर जीवन बिता सके।
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