NCERT Class 12 Hindi Antral Chapter 2: Biskohar Ki Maati provide in-depth analysis so that students may be able to fathom the underlying messages relating to tradition, culture, and intrinsic value of the land. Further, these solutions elaborate on the story in digestible chunks so that students will be able to appreciate how the author projects the rustic village life of Biskohar. It is through these solutions that insight into the soil is possible, and how the soil works as a medium for depicting life, legacy, and nourishment in the rural environment.
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कोइयाँ किसे कहते हैं? उसकी विशेषताएँ बताइए?
कोईयाँ एक जलपुष्प है। इसे कुमुद और कोका-बेली भी कहते हैं। शरद् ऋतु में जहाँ भी गड्ढा और उसमें पानी होता है, वहीं कोइयाँ फूल उंठती हैं। रेलवे लाइनों के दोनों ओर प्राय: गड्ढों में पानी: भरा होता है। इनमें कोइयाँ फूलता है। कोइयाँ को सर्वत्र देखा जा सकता है।
विशेषताएँ : शरद की चाँदनी में सरोवरों में चाँदनी का प्रतिबिम्ब और खिली हुई कोइयों की पत्तियाँ एक हो जाती हैं। -इसकी गंध बड़ी मनभावन होती है।
‘बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं है, ,ाँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन चरित होता है’ टिप्पणी कीजिए।
जन्म के उपरांत बच्चा भोजन के रूप में माँ के दूध ही ग्रहण करता है। वह काफी सकय तक माँ के दूध से ही अपना पेट भरता है। माँ अपने आँचल में छिपाकर बच्चे को दूध पिलाती है। यह बच्चे का केवल दूध पीना ही नहीं है। इस क्रिया के साथ माँ-बच्चे के सारे संबंध चरितार्थ होते हैं। माँ बच्चे को गोद में लेकर दूध पिलाती है। बच्चा माँ के गोद में कभी रोता है, कभी हैसता है। कभी वह माँ से चिपटता है, तो कभी माँ को पैर मारता है। माँ को बच्चे की ये सब क्रियाएँ अच्छी लगती है।
वह इन क्रियाओं के दौरान बच्चे को प्यार करती है। उसे अपनी स्नेह छाया से दूर होने नहीं देती। वैसे वह स्नेहवश कभी-कभी उसे मारती भी है, तब भी बच्चा माँ से चिपटा रहता है। बच्चा माँ के पेट का स्पर्श-गंध भोगता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह पेट में अपनी जगह ढूँढ रहा है। बच्चे को दूध पिलाने वाली माँ युवती होती है। उसके स्तन दूध से भरे होते हैं। वह बच्चे को माँ, नारी, मित्र सभी प्रकार का सुख एक साथ देती है। माँ की गोद में लेटकर बच्चे का माँ का दूध पीना, जड़ से चेतन होने यानि मानव जन्म लेने को सार्थकता प्रदान करता है।
बिसनाथ पर क्या अत्याचार हो गया?
बिसनाथ (विश्वनाथ) जब शिशु था तब पहले वह अकेला था और माँ के दूध का एकमात्र हकदार था। तभी छोटा भाई आ गया। विश्वनाथ माँ के दूध से कट गया। अब माँ के दूध पर छोटे भाई का कब्जा हो गया। इस प्रकार बिसनाथ (विश्वनाथ) पर अत्याचार हो गया। लेकिन बिसनाथ भी आसानी से कब्जा छोड़ने वाला नहीं था। उसने माँ के दूध के स्थान पर गाय का दूध पीने से इंकार कर दिया। गाय के दूध पहचानते ही वह चीखता-” हम गैयक दूध नाहीं पियब; अम्मक दूध पियब (अर्थात् हम गाय का दूध नहीं पिएँगे, अम्मा का दूध पिएँगे)। पर दाई की चालाकी से बिसनाथ का माँ का दूध पीना छुड़ा ही दिया गया। अब छोटा भाई ही अम्मा का दूध पीता था।
गरमी और लू से बचने के उपायों का विवरण दीजिए। क्या आप भी इन उपायों से परिचित हैं?
गर्मी और लू से बचने के उपाय :
गर्मी और लू से बचने के लिए माँ बालक की धोती या कमीज में गाँठ लगाकर प्याज बाँध देतीं। प्याज से लू बेअसर हो जाती है।
कच्चे आम का पन्ना गर्मी और लू से बचाता है।
कच्चे आम को भूनकर गुड़ या चीनी में मिलाकर उसका शरबत बनाकर पीना, देह (शरीर) में लेपना या नहाना भी उपयोगी रहता है।
कच्चे आम को भून या उबालकर सिर धोने से भी गर्मी और लू से बचाव होता है।
हाँ, हम भी इन उपायों से परिचित हैं। हम भी प्याज और कच्चे आम को भूनकर प्रयोग करते हैं।
लेखक बिसनाथ ने किन आधारों पर अपनी माँ की तुलना बत्तख से की है?
बत्तख अंडां देने के समय पानी को छोड़कर जमीन पर आ जाती है। बत्तखें अपने अंडों को सेती हैं। वे अपने पंख फुलाए उन्हें दुनिया की नजरों से छिपाकर रखती हैं। बत्तख बहुत सतर्कता एवं कोमलता से काम करती है। इसी प्रकार माँ भी अपने बच्चे की देखभाल करती है। बिसनाथ की माँ और बत्तख में ममता के आधार पर पर्याप्त समानता है। माँ भी बत्तख की तरह अपने बच्चों को अपने आँचल की छाया में छिपाकर रखती है। दोनों को अपने बच्चों के साथ लगाव होता है।
बिस्कोहर में हुई बरसात को जो वर्णन बिसनाथ ने किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
बिस्कोहर में वर्षा सीधे-सीधे नहीं आती थी। पहले बादलों के घिरने और गड़गड़ाहट की आवाजें सुनाई देती हैं। पूरे आकाश में इतने बादल घिर आते हैं कि दिन में ही रात प्रतीत होने लगती। ‘चढ़ा आकास गगन घन गाजा, घन घमंड गरजत घर घोरा’ जैसा वातावरण उपस्थित हो जाता है। कभी ऐसा लगता था कि जैसे दूर से घोड़ों की पंक्ति दौड़ी चली आ रही है। कई दिन तक बरसने पर दीवार गिर जाती, घर धैस जाते। जब भीषण गर्मी के बाद बरसात होती तब कुत्ते, बकरी, मुर्गी-मुर्गे आवाजें करते इधर-उधर भागे फिरते थे। इस वर्षा में नहाने से चर्म रोग ठीक हो जाते थे। वर्षा के प्रभाव से दूबों, वनस्पतियों आदि में नई चमक दिखाई देने लगती है। वर्षा के बाद कीचड़, बदबू, बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
फूल केवल गंध ही नहीं देते , दवा भी करते हैं, कैसे?
फूल गंध तो देते ही हैं, इसके साथ-साथ वे दवा का काम भी करते हैं। कमल, कोइयाँ, हरसिंगार आदि के फूल मनभावन गंध बिखेरते हैं। पीली सरसों खेतों में तेल की गंध तैरा देते हैं। बिसनाथ के गाँव में ‘भरभंडा’ सूू होता है। इसे सत्यानाशी भी कहते हैं। यह फूल दवा का काम भी करता है। आँखें आ जाने (दुखने पर) माँ उसका दूध आँख में लगाती है। वह ठीक हो जाती है। नीम के फूल और पत्ते चेचक के रोगी के पास रखे जाते हैं। इससे वह ठीक रहता है। बेर का फूल सूँघने से बरें-ततैये का डंक झड़ जाता है। इस प्रकार कई फूल दवा का काम भी करते हैं।
‘प्रकृति सजीव नारी बन गई’ – इस कथन के आलोक में निहित जीवन मूल्यों को ‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
जाड़े की धूप और चैत की चाँदनी में ज्यादा फर्क नहीं होता। बरसात की भीगी चाँदनी चमकती तो नहीं लेकिन मधुर और शोभा के भार से दबी ज्यादा होती है। वैसे ही बिस्कोहर की वह औरत। पहली बार उसे बढ़नी में एक रिश्तेदार के यहाँ देखा। बिसनाथ की उमर उससे काफी कम है-ताज्जुब नहीं दस बरस कम हो, बिसनाथ 10 से ज्यादा के नहीं थे। देखा तो लगा चाँदनी रात में बरसात की चाँदनी रात में जूही की खुशबू आ रही है। बिस्कोहर में उन दिनों बिसनाथ संतोषी भइया के घर बहुत जाते थे। उनके आँगन में जूही लगी थी। उसकी ख्रुशबू प्राणों में बसी रहती थी।
यों भी चाँदनी में सफेद फूल ऐसे लगते हैं मानो पेड़ों, लताओं पर चाँदनी ही फूल के रूप में दिखाई पड़ रही हो। चाँदनी भी प्रकृति, फूल भी प्रकृति और खुशबू भी प्रकृति। वह औरत बिसनाथ को औरत के रूप में नहीं, जूही की लता बन गई चाँदनी के रूप में लगी जिसके फूलों की खुशबू आ रही थी। प्रकृति सजीव नारी बन गई थी और बिसनाथ उसमें आकाश, चाँदनी, सुर्गंधि सब देख रहे थे। वह बहुत दूर की चीज इतने नजदीक आ गई थी। सौंदर्य क्या होता है, तदाकार परिणति क्या होती है। जीवन की सार्थकता क्या होती है, यह सब बाद में सुना, समझा, सीखा सब उसी के संदर्भ में। वह नारी मिली भी-बिसनाथ आजीवन उससे शरमाते रहे। उसकी शादी बिस्कोहर में ही हुई। कई बार मिलने के बाद बहुत हिम्मत बाँधने के बाद उस नारी से अपनी भावना व्यक्त करने के लिए कहा, ” जो तुम्हैं पाइ जाइ ते जरूरै बोराय जाइ – जो तुम्हें पा जाएगा वह जरूर ही पागल हो जाएगा।”
ऐसी कौन-सी स्मृति है जिसके साथ लेखक को मृत्यु का बोध अजीब तौर से जुड़ा मिलता है ?
एक बार बड़े गुलाम अली ने एक पहाड़ी ठुमरी गाई थी-‘अब जो आओ साजन’, ‘सुने अकेले में याद करें’ इस ठुमरी को तो रुलाई आती है और वही औरत इसमें व्याकुल नजर आती है। वह सफेद रंग की साड़ी पहने रहती है। घने काले केश सँवारे हुए हैं। उसकी आँखों में आई कथा समाई है। वह सिर्फ इंतजार करती रह जाती है। लेखक को इस स्मृति के साथ मृत्यु का बोध अजीब तौर से होता है।
पाठ में आए फूलों के नाम, साँपों के नाम छाँटिए और उनके रंग-रूप, विशेषताओं के बारे में लिखिए।
इस पाठ में आए :
फूलों के नाम – साँपों के नाम
कमल – डोंहड़ा
कोइयाँ – मजगिदवा
कुमुद – धामिन
सिघाड़े के फूल – गोंहुअन फेंटारा
हरसिंगार – भटिहा
छोर कड़ाइच
इस पाठ से गाँव के बारे में आपको क्या-क्या जानकारियाँ मिर्ली? लिखिए।
इस पाठ से गाँव के बारे में निम्नलिखित जानकारियाँ मिलती हैं-
गाँवों का जीवन सीधा-सादा होता है।
गाँवों की अपनी स्थानीय सब्जियाँ होती हैं। वहाँ उन्हें खाया जाता है।
गाँव की अपनी स्थानीय बोली होती है। यह हरेक गाँव की अपनी होती है।
गाँव में वनस्पतियों, जल तथा मिट्टी के विविध रूप देखने को मिलते हैं।
गाँवों में प्रकृति का स्वच्छंद एवं निर्मल रूप दिखाई देता है।
गाँवों में सब्जियों एवं फलों की भरमार होती है।
यहाँ के खेतों में तरह-तरह के अन्न उपजते हैं तथा पीली-पीली सरसों फूलती है।
गाँवों में प्राय: साँप निकल आते हैं।
गाँवों में वर्षा का अपना आनंद होता है।
गाँवों में गर्मी लू से बचने के प्राकृतिक उपाय किये जाते हैं।
‘वर्तमान समय-समाज में माताएँ नवजात शिशु को दूध नहीं पिलाना चाहतीं। विश्वनाथ स्वयं कहते हैं कि वह दूध कटहा हो गए।- अपनी राय लिखिए।
वर्तमान में माताएँ नवजात शिशु को दूध इसलिए नहीं पिलातीं क्योंकि इससे उनका शारीरिक सौंदर्य नष्ट होता प्रतीत होता है। आज की नारी अपने सौंदर्य की रक्षा के प्रति सीमा से अधिक सचेष्ट है। उनका ऐसा सोचना ठीक नहीं है। बच्चे के विकास के लिए माँ का दूध पीना अत्यंत आवश्यक है।
बिसनाथ पर क्या अत्याचार हो गया ? क्या इसे अत्याचार होना कहेंगे ?
दाई ने किसे, क्यों पाला ? आपका पालन-पोषण किसने किया ? दोनों स्थितियों में अंतर स्पष्ट करो।
बिसनाथ अभी तीन वर्ष का था कि उसका छोटा भाई आ गया। नवजात शिशु को तो माँ का दूध चाहिए। अब तक बिसनाथ (विश्वनाथ) माँ का दूध पीता था। अब से नया बालक पीने लगा। अतः बिसनाथ का दूध कट गया। अब उसे माँ के दुध के स्थान पर गाय का दूध पीने के लिए मिलने लगा। उसका पालन-पोषण भी कसेरू दाई के जिम्मे आ गया। हम इसे अत्याचार होना नहीं कहेंगे। यह एक स्वाभाविक क्रिया है। नए बालक का माँ के दूध पर अधिक अधिकार होता है। बड़े को यह अधिकार छोड़ना ही पड़ता है। इसमें अत्याचार जैसी कोई बात नहीं है। कसेरूू दाई ने तीन बरस के बालक बिसनाथ का पालन-पोषण किया। इसका कारण यह था कि बिसनाथ की माँ के दूसरा बेटा हो गया था। अब उसके लिए बिसनाथ को दूध पिलाना तथा पालना-पोसना कठिन हो गया था। मेरा पालन-पोषण मेरी माँ ने ही किया। हमारे यहाँ नए भाई के आने जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई।
‘प्रकृति सजीव नारी बन गई’ इस कथन के संदर्भ में लेखक की प्रकृति, नारी और सौंदर्य संबंधी कारण अपनी वृष्टि से स्पष्ट कीजिए।
जाड़े की धूप और चैत की चाँदनी में ज्यादा फर्क नहीं होता। बरसात की भीगी चाँदनी चमकती तो नहीं लेकिन मध र और शोभा के भार से दबी ज्यादा होती है। वैसे ही बिस्कोहर की वह औरत। पहली बार उसे बढ़नी में एक रिश्तेदार के यहाँ देखा। बिसनाथ की उमर उससे काफी कम है-ताज्जुब नहीं दस बरस कम हो, बिसनाथ 10 से ज्यादा के नहीं थे। देखा तो लगा चाँदनी रात में बरसात की चाँदनी रात में जूही की खुशबू आ रही है। बिस्कोहर में उन दिनों बिसनाथ संतोषी भइया के घर बहुत जाते थे। उनके आँगन में जूही लगी थी। उसकी खुशबू प्राणों में बसी रहती थी। यों भी चाँदनी में सफेद फूल ऐसे लगते हैं मानो पेड़ों, लताओं पर चाँदनी ही फूल के रूप में दिखाई पड़ रही हो। चाँदनी भी प्रकृति, फूल भी प्रकृति और खशबू भी प्रकृति। वह औरत बिसनाथ को औसत के रूप में नहीं, जूही की लता बन गई चाँदनी के रूप में लगी जिसके फूलों की खुशबू आ रही थी।
प्रकृति सजीव नारी बन गई थी और बिसनाथ उसमें आकाश, चाँदनी, सुर्गंधि सब देख रहे थे। वह बहुत दूर की चीज इतने नजदीक आ गई थी। सौंदर्य क्या होता है, तदाकार परिणति क्या होती है। जीवन की सार्थकता क्या होती है, यह सब बाद में सुना, समझा, सीखा सब उसी के संदर्भ में। वह नारी मिली भी-बिसनाथ आजीवन उससे शरमाते रहे। उसकी शादी बिस्कोहर में ही हुई। कई बार मिलने के बाद बहुत हिम्मत बाँधने के बाद उस नारी से अपनी भावना व्यक्त करने के लिए कहा, “जो तुम्हें पाइ जाइ ते जरूरै बोराय जाइ- जो तुम्हें पा जाएगा वह जरूर ही पागल हो जाएगा।”
वर्तमान समय-समाज में माताएँ नवजात शिशु को दूध पिलाना चाहतीं। आपके विचार से माँ और बच्चे पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है ? अपना मत स्पष्ट कीजिए।
वर्तमान समय में कुछ माताएँ अपने नवजात शिशु को स्तनपान नहीं कराना चाहतीं। वे उसे दूध तो पिलाना चाहती हैं, पर अपना नहीं, बल्कि डिब्बे का या गाय का। इसके कारण निम्नलिखित हैं :
इन माताओं को अपने नवजात शिशु से अधिक चिंता अपने शारीरिक सौंदर्य की है। वे सोचती हैं कि बच्चे को दूध पिलाने से उनका शारीरिक सौष्ठव कम हो जाएगा। स्तनों में कसाव कम रह जाएगा। उनका ऐसा सोचना ठीक नहीं है।
दूध न पिलाने का दूसरा कारण है उनका नौकरी करने जाना। वे यह नहीं चाहती कि उनकी अनुपस्थिति में बालक दूसरा दूध पीने में हिचकिचाए। वे प्रारंभ में डिब्बे के दूध की आदत डाल देती हैं। बच्चा माँ के दूध का स्वाद जान ही नहीं पातता। हमारे विचार से इसका बच्चे के विकास पर बड़ा दुष्ष्रभाव पड़ता है। उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास नहीं हो पाता है। माँ द्वारा बच्चे को अपना दूध पिलाते समय जो आत्मीय संबंध स्थापित होता है, उसे बच्चा वंचित रह जाता है। वह माँ की ममता की अनुभूति भी नहीं कर पाता है।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के कथ्य का विश्लेषण अपने शब्दों में कीजिए।
आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया यह पाठ अपनी अभिव्यंजना में अत्यंत रोचक और पठनीय है। लेखक ने उम्र के कई पड़ाव पार करने के बाद अपने जीवन में माँ, गाँव और आस-पास के प्राकृतिक परिवेश का वर्णन करते हुए ग्रामीण जीवन-शैली, लोक-कथाओं, लोक-मान्यताओं को पाठक तक पहुँचाने की कोशिश की है। गाँव, शहर की तरह सुविधायुक्त नहीं होते, बल्कि प्रकृति पर अधिक निर्भर रहते हैं। इस निर्भरता का दूसरा पक्ष प्राकृतिक सौंदर्य भी है जिसे लेखक ने बड़े मनोयोग से जिया और प्रस्तुत किया है। एक तरफ प्राकृतिक संपदा के रूप में अकाल के वक्त खाई जाने वाली कमल-ककड़ी का वर्णन है, तो दूसरी ओर प्राकृतिक विपदा बाढ़ से बदहाल गाँव की तकलीफों का जिक्र है। कमल, कोइयाँ, हरसिंगार के साथ-साथ तोरी. लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, कदंब आदि के फूलों का वर्णन कर लेखक ने ग्रामीण प्राकृतिक सुषमा और संपदा को दिखाया है तो डोड़हा, मजगिदवा, धामिन, गोंहुअन, घोर कड़ाइच आदि साँपों, बिच्छुओं आदि के वर्णन द्वारा भयमिश्रित वातावरण का भी निर्माण किया है।
ग्रामीण जीवन में शहरी दवाइयों की जगह प्रकृति से प्राप्त फूल, पत्तियों के प्रयोग भी आम हैं जिसे लेखक ने रेखांकित किया है। पूरी कथा के केंद्र में हैं। बिस्कोहर जो लेखक का गाँव है और एक पात्र ‘बिसनाथ’ जो लेखक स्वयं (विश्वनाथ) है। गर्मी, वर्षा और शरद ऋतु में गाँव में होने वाली दिक्कतों का भी लेखक के मन पर प्रभाव पड़ा है जिसका उल्लेख इस रचना में भी दिखाई पड़ता है। दस वर्ष की उम्र के करीब दस वर्ष बड़ी स्त्री को देखकर मन में उठे-बसे भावों, संवेगों के अमिट प्रभाव व उसकी मार्मिक प्रस्तुति के बीच संवादों की यथावत् आंचलिक प्रस्तुति, अनुभव की सत्यता और नैसर्गिकता का द्योतक है। पूरी रचना में लेखक ने अपने देखे-भोगे यथार्थ को प्राकृतिक सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया है। लेखक की शैली अपने आप में अनूठी और बिल्कुल नई है।
‘बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं है, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन चरित होता है ‘-इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
जन्म के उपरांत बच्चा भोजन के रूप में माँ का दूध ही ग्रहण करता है। वह काफी समय तक माँ के दूध से ही अपना पेट भरता है। माँ अपने आँचल में छिपाकर बच्चे को दूध पिलाती है। यह बच्चे का केवल दूध पीना ही नहीं है। इस क्रिया के साथ माँ-बच्चे के सारे संबंध चरितार्थ होते हैं। माँ बच्चे को गोद में लेकर दूध पिलाती है। बच्चा माँ की गोद में कभी रोता है, कभी हँसता है। कभी वह माँ से चिपटता है, तो कभी माँ को पैर मारता है। माँ को बच्चे की ये सब क्रियाएँ अच्छी लगती हैं। वह इन क्रियाओं के दौरान बच्चे को प्यार करती है।
उसे अपनी स्नेह छाया से दूर होने नहीं देती। वैसे वह स्नेहवश कभी-कभी उसे मारती भी है, तब भी बच्चा माँ से चिपटा रहता है। बच्चा माँ के पेट का स्पर्श-गंध भोगता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह पेट में अपनी जगह ढूँढ रहा है। बच्चे को दूध पिलाने वाली माँ युवती होती है। उसके स्तन दूध से भरे होते हैं। वह बच्चे को माँ, नारी, मित्र सभी प्रकार का सुख एक साथ देती है। माँ की गोद में लेटकर बच्चे का माँ का दूध पीना, जड़ से चेतन होने यानि मानव जन्म लेने को सार्थकता प्रदान करता है। हम बच्चे के द्वारा माँ के दूध पीने को बहुत महत्त्वपूर्ण मानते हैं।
‘बिस्कोहर की माटी’ में लेखक द्वारा भोगे यथार्थ को प्राकृतिक सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया गया है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
लेखक बताता है कि पूरब टोले के पोखर में कमल फूलते हैं। भोज में हिंदुओं के यहाँ भोजन कमल-पत्र पर परोसा जाता है। कमल पत्र को पुरइन कहते हैं। कमल के नाल को भसीण कहते हैं। आस-पास कोई बड़ा कमल-तालाब था-लेंवडी का ताल, अकाल पड़ने पर लोग उसमें से ‘भसीण’ (कमल-ककड़ी) खोदकर बड़े-बड़े खाँचों में सर पर लाद कर खाने के लिए ले जाते हैं। कमल ककड़ी को सामान्यत: अभी भी गाँव में नहीं खाया जाता। कमल का बीज कमल गट्रा जरूर खाया जाता है। कमल से कहीं ज्यादा बहार कोइयाँ की थी। कोइयाँ वही जल-पुष्प है जिसे कुमुद कहते हैं। इसे कोका-बेली भी कहते हैं। शरद में जहाँ भी गड्ढा और उसमें पानी होता है, कोइयाँ फूल उठती हैं। रेलवे लाइन के दोनों ओर प्राय: गड्ढों में पानी भरा रहता है।
आप उत्तर भारत में इसे प्रायः सर्वत्र पाएँगे। लेखक बहुत दिनों तक यही समझते रहे कि कोइयाँ सिर्फ उनके यहाँ का फूल है। एक बार वे वैष्णो देवी दर्शनार्थ गए तो देखा यह पंजाब में भी रेलवे-लाइन के दोनों तरफ खिला था। शरद की चाँदनी में सरोवरों में चाँदनी का प्रतिबिंब और खिली हुई कोइयाँ की पत्तियाँ एक हो जाती हैं। इसकी गंध को जो पसंद करता है वही जानता है कि वह क्या है। इन्हीं दिनों तालाबों में सिंघाड़ा आता है। सिंघाड़े के भी फूल होते हैं-उजले और उनमें गंध भी होती है। बिसनाथ को सिंघाड़े के फूलों से भरे हुए तालाब से गंध के साथ एक हल्की सी आवाज भी सुनाई देती थी। वे घूम-घूमकर तालाबों से आती हुई वह गंध मिश्रित आवाज सुनते। सिंघाड़ा जब बतिया छोटा-दूधिया होता है तब उसमें वह गंध भी होती है।
माँ के साथ बच्चे का क्या संबंध होता है?
माँ आँचल में छिपाकर दूध पिलाती है। बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं। माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है। बच्चा सुबुकता है, रोता है, माँ को मारता है, माँ भी कभी-कभी मारती है, बच्चा चिपटा रहता है, माँ चिपटाए रहती है, बच्चा माँ के पेट का स्पर्श, गंध भोगता रहता है, पेट में अपनी जगह जैसे ढूँढता रहता है। बिसनाथ ने एक बार जोर से काट लिया। माँ ने जोर से थप्पड़ मारा फिर पास में बैठी नाउन से कहा-दाँत निकाले हैं, टीसते हैं, बच्चे दाँत निकालते हैं तब हर चीज को दाँत से यों ही काटते हैं, वही टीसना है। चाँदनी रात में खटिया पर लेटी माँ बच्चे को दूध पिला रही है। बच्चा दूध ही नहीं, चाँदनी भी पी रहा है, चाँदनी भी माँ जैसी ही पुलक स्नेह-ममता दे रही है। दूध पिलाने वाली माँ युवती है, उसके स्तन भरे हैं। वह बच्चे को माँ, नारी, मित्र, सबका सुख एक साथ देती है। माँ के अंक से लिपटकर माँ का दूध पीना जड़ के चेतन होने यानी मानव-जन्म की सार्थकता है।
बिसनाथ ने दिलशाद गार्डन के डियर पार्क में क्या दृश्य देखा?
बिसनाथ ने दिलशाद गार्डन के डियर पार्क में बत्तखें देखीं। बत्तख अंडा देने को होतीं तो पानी को छोड़कर जमीन पर आ जाती थीं। इसके लिए एक सुरक्षित काँटेदार बाड़ा था। देखा-एक बत्तख कई अंडों को से रही है। पंख फुलाए उन्हें छिपाए है-दुनिया से बचाए है। एक कौवा थोड़ी दूर ताक में ? बत्तख की चोंच सख्त होती है। अंडों की खोल नाजुक ? कुछ अंडे बत्तख-माँ के डैनों से बाहर छिटक जाते। बत्तख उन्हें चोंच में इतनी सतर्कता, कोमलता से डैनों के अंदर फिर छुपा लेती थी कि बस आप देखते रहिए, कुछ कह नहीं सकते-इसे ‘सेस, सारद’ भी नहीं बयान कर सकते। और माँ की निगाह कौवे की ताक पर भी थी। कभी-कभी वह अंडों को बड़ी सतर्कता से उलटती-पलटती थी।
‘फूल जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य में वृद्धि करते हैं वहीं वे औषधीय गुणों से भरपूर भी होते हैं।’ बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में लेखक बताता है कि कमल, कोइयाँ और हरसिंगार के अलावा ऐसे कितने फूल थे जिनकी चर्चा फूलों के रूप में नहीं होती और वे असली फूल हैं-तोरी, लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, अमरूद, कदंब, बैंगन, कोंहड़ा, शरीफ़ा, आम के बौर, कटहल, बेल, अरहर, उड़द, चना, मसूर, मटर के फूल, सेमल के फूल, कदम (कदंब) के फूलों से पेड़ लदबदा जाता। मुझे तो लगता है कदंब का दुनिया भर में एक ही पेड़ है-बिस्कोहर के पच्हूँ टोला में ताल के पास।
सरसों के फूल का पीला सागर लहराता हुआ। खेतों में तेल-तेल की गंध, जैसे हवा उसमें अनेक रूपों में तैर रही हो। सरसों के अनवरत फूल-खेत सौंदर्य को कितना पावन बना देते हैं। बिसनाथ के गाँव में एक फल और बहुत इफ़रात होता था-उसे भरभंडा कहते थे, उसे ही शायद सत्यानाशी कहते हैं। नाम चाहे जैसा हो सुंदरता में उसका कोई जवाब नहीं। फूल गोभी तितली, जैसा, आँखें, आने पर माँ उसका दूध आँख में लगाती और दूबों के अनेक वर्णी छोटे-छोटे फूल-बचपन में इन सबको चखा है, सूँघा है, कानों में खोसा है।
इस पाठ में साँपों के बारे में क्या जानकारी दी गई है ?
इस पाठ में बताया गया है कि घास पात से भरे मेड़ों पर, मैदानों में, तालाब के भीटों पर नाना प्रकार के साँप मिलते हैं। साँप से डर तो लगता है लेकिन वे प्रायः मिलते दिखते हैं। डोंड़हा और मजगिदवा विषहीन है। डोंड़हा को मारा नहीं जाता। उसे साँपों में वामन जाति का मानते हैं। धामिन भी विषहीन है लेकिन वह लंबी होती है, मुँह से कुश पकड़ कर पूँछ से मार दे तो अंग सड़ जाए। सबसे खतरनाक गोंहुअन हैं जिसे हमारे गाँव में ‘फेंटारा’ कहते हैं और उतना ही खतरनाक ‘घोर कड़ाइच’ जिसके काट लेने पर आदमी घोड़े की तरह हिनहिनाकर मरता है। भटिहा जिसके दो मुँह होते हैं। आम, पीपल, केवड़े की झाड़ी में रहने वाले साँप बहुत खतरनाक होते हैं। अजीब बात है, साँपों से भय भी लगता है और हर जगह अवचेतन में, डर से ही सही, उनकी प्रतीक्षा भी करते हैं। छोटे-छोटे पौधों के बीच में सरसराते हुए साँप को देखना भी भयानक रस हो सकता है। साँप के काटे लोग बहुत कम बचते हैं।
गंध के बारे में लेखक क्या विश्लेषण करता है ?
लेखक (बिसनाथ) को अपनी माँ के पेट का रंग हल्दी मिलाकर बनाई गई पूड़ी का रंग लगता-गंध दूध का। पिता के कुर्ते को जरूर सूँघते। उसमें से पसीने की बू बहुत अच्छी लगती। नारी शरीर से उन्हें बिस्कोहर की ही फसलों, वनस्पतियों की उत्कट गंध आती है। तालाब की चिकनी मिट्टी की गंध गेहूँ, भुट्या, खीरा या पुआल की गंध होती है। आम के बाग में आम्रमंजरी, बौर की लपट मारती हुई गंध तो साक्षात् रति गंध होती है। फूले हुए नीम की गंध को नारी शरीर या शृंगार से कभी नहीं जोड़ सकते। वह गंध मादक, गंभीर और असीमित की ओर ले जाने वाली होती है। संगीत, गंधा, बच्चे बिसनाथ के लिए सबसे बड़े सेतु हैं काल, इतिहास को पार करने के।
गमी के दिनों में लेखक क्या-क्या काम करता था और उससे बचाव कैसे होता था?
जिन दिनों खूब चिलचिलाती गर्मी पड़ती। लेखक घर में सबको सोता पाकर चुपके से निकल जाता। दुपहरिया का नाच देखता। गर्मी में कभी-कभी लू लगने की घटनाएँ सुनाई पड़ती थीं। माँ लू से बचने के लिए धोती या कमीज से गाँठ लगाकर प्याज बाँध देती थी। लू लगने की दवा थी-कच्चे आम का पन्ना। भूनकर गुड़ या चीनी में उसका शरबत पीना, देह में लेपना, नहाना। कच्चे आम को भून या उबाल कर उससे सिर धोते थे। कच्चे आमों के झौर के झौरर पेड़ पर लगे देखना, कच्चे आम की हरी गंध, पकने से पहले ही जामुन तोड़ना, खाना-यह गर्मी की बहार थी। गर्मी का फल और तरकारी भी है-कटहल।
कसेरिन दाई के बारे में लिखिए। उनके साथ छत पर लेटकर तीन वर्ष के बिसनाथ को कैसा लगता था?
बिसनाथ के पड़ोस में कसेरिन दाई रहती थी। वह बच्चों को पैदा कराने तथा उनके पालन-पोषण की कला में दक्ष है। जब बिसनाथ (विश्वनाथ) ने माँ के दूध के स्थान पर गाय का दूध पीने से इंकार कर दिया तब कसेरिन दाई ने ही इस संकट से उबरने का उपाय बताया। उसने बिसनाथ की माँ के स्तनों पर ‘बुकवा’ (उबटन) का लेप करवा दिया और फिर दूध पिलाने को कहा। उबटन का स्वाद तीखा-कसैला पड़ते ही बिसनाथ चीख पड़ा “तोर दूध खराब है, हमई नाहीं पिअब रे”। सब लोग यही तो चाहते थे। बिसनाथ को कसेरिन दाई ने ही पाला-पोसा था। साफ-सफ्फाक सुजनी पर बालक बिसनाथ को कसेरिन दाई के साथ लेटकर बहुत अच्छा लगता था। बालक बिसनाथ चाँद का देखता रहता था। उसे लगता था कि वह चाँद को छू रहा है, उसे खा रहा है, उससे बातें कर रहा है। वह धुक-धुक करके चलता रहता। कभी बादलों में छिप जाता और कभी निकल आता।
वर्तमान समय-समाज में माताएँ नवजात शिशु को दूध नहीं पिलाना चाहतीं। आपके विचार से माँ और बच्चे पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है ?
हाँ, यह सही है कि वर्तमान समय में कुछ माताएँ अपने शिशु को दूध नहीं पिलाना चाहतीं। इसके कारण निम्नलिखित हैं :
इस प्रकार की प्रवृत्ति वाली माताएँ अपनी शारीरिक सौष्ठव के प्रति अत्यधिक सचेत हैं। उनका विचार है कि स्तनपान कराने से उनके सौंदर्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, स्तनों का कसाव ढीला पड़ जाता है।
कुछ स्त्रियाँ जो नौकरी करती हैं, वे अपने बच्चों को आया के सहारे छोड़कर चली जाती हैं जिससे बच्चे माँ के दूध से वंचित हो जाते हैं।
आज का सामाजिक बदलाव भी इसके लिए जिम्मेदार है। ये स्त्रियाँ इसे एक झंझटभरा काम समझती हैं।
प्रभाव : इस प्रवृत्ति का माँ और शिशु दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। दोनों एक-दूसरे के साथ भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ पाते हैं। माँ का दूध पिलाना उसका बच्चे के प्रति स्नेह का परिचायक है। माँ का दूध न पीने पर बच्चे का स्वाभाविक एवं मानसिक विकास नहीं हो पाता है। माँ की ममता तो दूध पीने-पिलाने से ही आती है। माँ का दूध बच्चे के लिए पूर्ण भोजन है. विशेषकर प्रारंभिक महीनों में।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के कथ्य का विश्लेषण अपने शब्दों में कीजिए।
अथवा
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में लेखक में गाँव में स्वयं देखो-भोगे यथार्थ को प्राकृतिक सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया है। इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए।
आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया यह पाठ अपनी अभिव्यंजना में अत्यंत रोचक और पठनीय है। लेखक ने उम्र के कई पड़ाव पार करने के बाद अपने जीवन में माँ, गाँव और आस-पास के प्राकृतिक परिवेश का वर्णन करते हुए ग्रामीण जीवन-शैली, लोक-कथाओं, लोक-मान्यताओं को पाठक तक पहुँचाने की कोशिश की है। गाँव, शहर की तरह सुविधायुक्त नहीं होते, बल्कि प्रकृति पर अधिक निर्भर रहते हैं। इस निर्भरता का दूसरा पक्ष प्राकृतिक सौन्दर्य भी है जिसे लेखक ने बड़े मनोयोग से जिया और प्रस्तुत किया है। एक तरफ प्राकृतिक संपदा के रूप में अकाल के वक्त खाई जाने वाली कमल-ककड़ी का वर्णन है, तो दूसरी ओर प्राकृतिक विपदा बाढ़ से बदहाल गाँव की तकलीफों का जिक्र है।
कमल, कोइयाँ, हरसिंगार के सार्य-साथ तोरी, लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली “‘ कदंब आदि के फूलों का वर्णन कर लेखक ने ग्रामीण प्राकृतिक सुषमा और संपदा को दिखाया है तो डोड़हा, मजगिदवा, धामिन, गोंहुअन, घोर कड़ाइच आदि साँपों, बिच्छुओं आदि के वर्णन द्वारा भयमिश्रित वातावरण का भी निर्माण किया है। ग्रामीण जीवन में शहरी दवाइयों की जगह प्रकृति से प्राप्त फूल, पत्तियों के प्रयोग भी आम हैं जिसे लेखक ने रेखांकित किया है। पूरी कथा के केंद्र में हैं। बिस्कोहर जो लेखक का गाँव है और एक पात्र ‘ बिसनाथ’ जो लेखक स्वयं (विश्वनाथ) है।
गर्मी, वर्षा और शरद ऋतु में गाँव में होने वाली दिक्कतों का भी लेखक के मन पर प्रभाव पड़ा है जिसका उल्लेख इस रचना में भी दिखाई पड़ता है। दस वर्ष की उम्र के करीब दस वर्ष बड़ी स्त्री को देखकर मन में उठे-बसे भावों, संवेगों के अमिट प्रभाव व उसकी मार्मिक प्रस्तुति के बीच संवादों की यथावत् आंचलिक प्रस्तुति, अनुभव की सत्यता और नैसर्गिकता का द्योतक है। पूरी रचना में लेखक ने अपने देखे-भोग यथार्थ को प्राकृतिक सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया है। लेखक की शैली अपने आप में अनूठी और बिल्कुल नई है।
‘बिस्कोहर की माटी’ में उगने वाले विविध फूलों का उल्लेख करते हुए बताइए कि ‘फूल केवल गंध ही नहीं देते, दवा भी करते हैं। कैसे ?
विविध फूलों में इन फूलों का उल्लेख हुआ है-कमल, कोइयाँ हरसिंगार। लेकिन ये तो फूल हैं और फूल कहे जाते हैं-ऐसे कितने फूल थे जिनके फूलों की चर्चा फूलों के रूप में नहीं होती, और हैं वे असली फूल-तोरई, लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, अमरूद, कदंब, बैंगन, कोंहड़ा (कासीफल), शरीफा, आम के बौर, कटहल, बेल (बेला, चमेली, जूही वाला बेला नहीं), अरहर, उड़द, चना, मसूर, मटर के फूल, सेमल के फूल, कदम (कदंब)।
यह सही है कि फूल गंध देते हैं, पर यह भी सच है कि कई फूल दवा का काम भी करते हैं। गाँव में अब भी अनेक रोगों का इलाज फूलों के द्वारा किया जाता है। गाँव में फूलों की गंध से साँप, महामारी, देवी, चुड़ैल आदि का संबंध जोड़ा जाता है। गुड़हल का फूल देवी का फूल माना जाता है।
नीम के फूल और पत्ते चेचक में रोगी के पास रखे जाते हैं। ये इस रोग में उपयोगी हैं।
बेर के फूल सूंघने से बर्रे, ततैया का डंक झड़ जाता है।
आम के फूल भी अनेक रोगों में दवा का काम करते हैं।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में गाँव के बारे में आपको क्या-क्या जानकारियाँ मिलीं ? कम से कम छह
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में हमें गाँव के बारे में निम्नलिखित जानकारियाँ मिलीं :
(क) गाँव के तालाब में कमल के फूल खिले रहते हैं।
(ख) गाँव में भोज कमल-पत्र पर परोसा जाता है।
(ग) गाँव में कमल गट्टा व कमल ककड़ी खायी जाती है।
(घ) गाँव में पितृपक्ष में घर के द्वार पर हरसिंगार के फूल रखे जाते हैं।
(ङ) गाँव में कई रोगों में वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है।
(च) गाँव में सरसों, गेहूँ, मक्का, जौ और धान की खेती की जाती है।
(छ) गाँव में नैसर्गिक सौन्दर्य होता है। वातावरण प्राकृतिक एवं शुद्ध होता है।
(ज) गाँव में वर्षा ऋतु में शौच कर्म के लिए जगह मिलनी कठिन होती है।
(झ) गाँव में वर्षा ऋतु में कीचड़ और कीड़े-मकोड़ों का आधिक्य होता है।
(ब) गाँवों में साँप, बिच्छू, डाँस, जोंक, मच्छर आदि का भय रहता है।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ किस रचना का अंश है? ग्रामीणों की किन-किन विषमताओं का वर्णन किया है?
‘बिस्कोहर की माटी’ रचना विश्वनाथ त्रिपाठी द्वारा लिखित आत्मकथा ‘ नंगातलाई का एक गाँव’ का अंश है। लेखक ने इसमें ग्रामवासियों की विषमताओं का वर्णन किया है। गाँव के लोगों के पास वे सुख-सुविधाएँ नहीं हैं जो शहर के लोगों के पास हैं, उन्हें अनेक समस्याओं से जूझना पड़ता है, जैसे-यातायात के साधनों की कमी, बिजली का पर्याप्त मात्रा में न मिलना, सिंचाई के साधनों का अभाव, अशिक्षा, रोजगार की कमी, भुखमरी, चिकित्सा, साधनों का समय पर न मिलना इत्यादि। बाढ़, अकाल आदि विपत्तियों के समय उन्हें प्राकृतिक संपदा पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
गाँव में साँप, बिच्छू तथा अन्य हानिकारक जीव हरियाली के कारण पाए जाते हैं। कई लोगों की मृत्यु साँप के काटने के कारण हो जाती है लेकिन वे फिर भी गाँव में रहने व खेतों में काम के कारण इन खतरों का सामना करने के लिए विवश हैं। रोग की स्थिति में उन्हें गाँव में प्राप्त जड़ी-बूटियों से ही उपचार करना पड़ता है क्योंकि चिकित्सा संबंधी सुविधाएँ प्राप्त नहीं हैं। वर्षा के दिनों में पानी की निकासी का प्रबंध न होने से पानी एक ही जगह इकट्ठा हो जाता है जिससे बीमारियाँ फैल जाने का डर बना रहता है। शिक्षा के अभाव में ग्रामीण अंधविश्वासी हो जाते हैं। वे किसी भी प्राकृतिक विपदा, महामारी का संबंध भूत-प्रेतों से जोड़कर तांत्रिकों के चंगुल में फँस जाते हैं।
‘बिस्कोहर की माटी’ में बिसनाथ ने अपने शैशव की एक घटना के माध्यम से माँ के स्नेह का एक मनोरम चित्र खींचा है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में बिसनाथ ने अपने शैशव की एक घटना बत्तख के अंडा देने और उन्हें सेने की घटना के माध्यम से माँ के स्नेह का मनोरम चित्र खींचा है। बत्तख अंडा देने के समय पानी को छोड़कर जमीन पर आ जाती है। बत्तखें अपने अंडों को सेती हैं। वे अपने पंख फुलाए उन्हें दुनिया की नजरों से छिपाकर रखती हैं। बत्तख बहुत सतर्कता एवं कोमलता से काम करती है। इसी प्रकार माँ भी अपने बच्चे की देखभाल करती है। बिसनाथ की माँ और बत्तख में ममता के आधार पर पर्याप्त समानता है। माँ भी बत्तख की तरह अपने बच्चों को अपने आँचल की छाया में छिपाकर रखती है। दोनों को अपने बच्चों के साथ लगाव होता है।
लेखक बिसनाथ ने किन आधारों पर अपनी माँ की तुलना बत्तख से की है ?
बत्तख अंडा देने के समय पानी को छोड़कर जमीन पर आ जाती है। बत्तखें अपने अंडों को सेती हैं। वे अपने पंख फुलाए उन्हें दुनिया की नजरों से छिपाकर रखती हैं। बत्तख बहुत सतर्कता एवं कोमलता से काम करती है। इसी प्रकार माँ भी अपने बच्चे की देखभाल करती है। बिसनाथ की माँ और बत्तख में ममता के आधार पर पर्याप्त समानता है। माँ भी बत्तख की तरह अपने बच्चों को अपने आँचल की छाया में छिपाकर रखती है। दोनों को अपने बच्चों के साथ लगाव होता है।
बिस्कोहर में हुई बरसात का जो वर्णन बिसनाध ने किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
बिस्कोहर में वर्षा सीधे-सीधे नहीं आती थी। पहले बादलों के घिरने और गड़गड़ाहट की आवाजें सुनाई देती हैं। पूरे आकाश में इतने बादल घिर आते हैं कि दिन में ही रात प्रतीत होने लगती। ‘चढ़ा अकाश गगन घन गाजा, घन घमंड गरजत घोरा ‘जैसा वातावरण उपस्थित हो जाता है। कभी ऐसा लगता था कि जैसे दूर से घोड़ों की पंक्ति दौड़ी चली आ रही है। कई दिन तक बरसने पर दीवार गिर जाती, घर धँस जाते। जब भीषण गर्मी के बाद बरसात होती तब कुत्ते, बकरी, मुर्गी-मुर्गे आवाजें करते इधर-उधर भागे फिरते थे। इस वर्षा में नहाने से चर्म रोग ठीक हो जाते थे। वर्षा के प्रभाव से दूबों, वनस्पतियों आदि में नई चमक दिखाई देने लगती है। वर्षा के बाद कीचड़, बदन्, बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
चैत की चाँदनी में लेखक को लगा कि प्रकृति सजीव नारी बन गई है, कैसे?
जाड़े की धूप और चैत की चाँदनी में ज्यादा फ़र्क नहीं होता। बरसात की भीगी चाँद्नी चमकती तो नहीं, लेकिन मधुर और शोभा के भार से दबी ज्यादा होती है। वैसे ही बिस्कोहर की वह औरत। पहली बार उसे बढ़नी में एक रिश्तेदार के यहाँ देखा। बिसनाथ की उमर उससे काफी कम है-ताज्जुब नहीं दस बरस कम हो। बिसनाथ दस से ज्यादा के नहीं थे। देखा तो लगा चाँदनी रात में, बरसात की चाँदनी रात में जूही की ख्रुशबू आ रही है।
बिस्कोहर में उन दिनों बिसनाथ संतोषी भइया के घर बहुत जाते थे। उनके आँगन में जूही लगी थी। उसकी ख़ुशबू प्राणों में बसी रहती थी। यों भी चाँदनी में सफेद फूल ऐसे लगते हैं मानों पेड़ों, लताओं पर चाँदनी ही फूल के रूप में दिखाई पड़ रही हो। चाँदनी भी प्रकृति, फूल भी प्रकृति और खुशबू भी प्रकृति। वह औरत बिसनाथ को औरत के रूप में नहीं, जूही की लता बन गई चाँद्नी के रूप में लगी, जिसके फूलों की खुशबू आ रही थी। प्रकृति सजीव नारी बन गई थी और बिसनाथ उसमें आकाशा, चाँदनी, सुगंधि सब देख रहे थे।
“बिसनाय मान ही नहीं सकते कि बिस्कोहर से ज्यादा सुंदर कोई औरत हो सकती है। उम्र में स्वयं से लगभग बस बरस बड़ी उस औरत के सौंदर्य को बिसनाथ ने प्रकृति के माध्यम से कैसे चित्रित किया है ?
जाड़े की धूप और चैत की चाँदनी में ज़्यादा फर्क नहीं होता। बरसात की भीगी चाँद्नी चमकती तो नहीं लेकिन मधुर और शोभा के भार से दबी ज्यादा होती है। वैसे ही बिस्कोहर की वह औरत। पहली बार उसे बढ़नी में एक रिश्तेदार के यहाँ देखा। बिसनाथ की उमर उससे काफी कम है-ताज्जुब नहीं दस बरस कम हो, बिसनाथ 10 से ज्यादा के नहीं थे। देखा तो लगा चाँदनी रात में बरसात की चाँदनी रात में जूही की खुशबू आ रही है। बिस्कोहर में उन दिनों बिसनाथ संतोषी भइया के घर बहुत जाते थे। उनके आँगन में जूही लगी थी। उसकी ख़ुशादू प्राणों में बसी रहती थी। यों भी चाँदनी में सफेद फूल ऐसे लगते हैं, मानो पेड़ों, लताओं पर चाँदनी ही फूल के रूप में दिखाई पड़ रही हो।
चाँदनी भी प्रकृति, फूल भी प्रकृति और खुशबू भी प्रकृति। वह औरत बिसनाथ को औरत के रूप में नहीं, जूही की लता बन गई चाँद्नी के रूप में लगी जिसके फूलों की खुशबू आ रही थी। प्रकृति सजीव नारी बन गई थी और बिसनाथ उसमें आकाश, चाँदनी. सुगंधि सब देख रहे थे। वह बहुत दूर की चीज इतने नजदीक आ गई थी। सौंदर्य क्या होता है, तदाकार परिणति क्या होती है। जीवन की सार्थकता क्या होती है, यह सब बाद में सुना, समझा, सीखा सब उसी के संद्भ में। वह नारी मिली भी-बिसनाथ आजीवन उससे शरमाते रहे। उसकी शादी बिस्कोहर में ही हुई। कई बार मिलने के बाद बहुत हिम्मत बाँधने के बाद उस नारी से अपनी भावना व्यक्त करने के लिए कहा, “जो तुम्हैं पाइ जाइ ते जरूरै बोराय जाइ- जो तुम्हें पा जाएगा वह जरूर ही पागल हो जाएगा।”
“‘गाँव में ज्ञान-अज्ञान वनस्पतियों, जल के विविध रूपों और मिट्टी के अनेक वर्णो-आकारों का एक ऐसा समस्त वातावरण था जो सजीव था।’- ‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर सोदाहरण पुष्टि करते हुए लगभग 80-100 शब्दों में उत्तर लिखिए।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में गाँव की प्रकृति और वहाँ के जन-जीवन का यथार्थ चित्रण हुआ है। बिस्कोहर गाँव के वातावरण में ज्ञात-अज्ञात वनस्पतियाँ, जल के विविध रूप और मिट्टी के अनेक वर्णों के आकार मिलते हैं। इनसे वहाँ का वातावरण सजीव हो उठता है। वहाँ कोइयाँ की भरमार होती है। कोइयाँ एक प्रकार का जंगली फूल है। इसे कुमुद या काकबेली भी कहते हैं। यह पानी में उगता है। शरद ऋतु में जहाँ भी गड्ढों में पानी एकत्रित हो जाता है, कोइयाँ फूल वहीं उग आता है। यह फूल बिसनाथ के गाँव में बहुत होता है। इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
शरद की चाँदनी में सरोवरों में चाँदनी का प्रतिबिंब और खिली हुई कोइयाँ की पत्तियाँ एकाकार हो जाती हैं।
– इसकी गंध अत्यंत मादक होती है।
यह मुख्यतः शरद ऋतु में होता है।
गाँव में अनेक प्रकार की सब्जियों और फलों की भरमार रहती है। यहाँ के खेतों में पीली-पीली सरसों खूब फूलती है। गाँवों में कमलककड़ी भी होती है। कमल गट्टा भी खूब मिलता है। यहाँ के तालाबों में सिंघाड़ा खूब होता है। यहाँ की धरती में मिट्टी के अनेक रूप मिलते हैं। यहाँ का सारा वातावरण सजीव प्रतीत होता है।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर भारतीय गाँवों के जनजीवन पर टिप्पणी लिखिए।
‘बिस्कोहर की माटी’ रचना विश्वनाथ त्रिपाठी द्वारा लिखित आत्मकथा ‘नंगातलाई का एक गाँव’ का अंश है। लेखक ने इसमें ग्रामवासियों की विषमताओं का वर्णन किया है। गाँव के लोगों के पास वे सुख-सुविधाएँ नहीं हैं जो शहर के लोगों के पास है. उन्हें अनेक समस्याओं से जूझना पड़ता है, जैसे-यातायात के साधनों की कमी, बिजली का पर्याप्त मात्रा में न मिलना, सिंचर के साधनों का अभाव, अशिक्षा, रोजगार की कमी, भुखमरी, चिकित्सा साधनों का समय पर न मिलना इत्यादि। बाढ़, अकाल आदि विपत्तियों के समय उन्हें प्राकृतिक संपदा पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
गाँव में साँप, बिच्छू तथा अन्य हानिकारक जीव हरियाली के कारण पाए जाते हैं। कई लोगों की मृत्यु साँप के काटने के कारण हो जाती है लेकिन वे फिर भी गाँव में रहने व खेतों में काम के कारण इन खतरों का सामना करने के लिए विवश हैं। रोग की स्थिति में उन्हें गाँव में प्राप्त जड़ी-बूटियों से ही उपचार करना पड़ता है क्योंकि चिकित्सा संबंधी सुविधाएँ प्राप्त नहीं हैं। वर्षा के दिनों में पानी की निकासी का प्रबंध न होने से पानी एक ही जगह इकट्ठा हो जाता है जिससे बीमारियाँ फैल जाने का डर बना रहता है। शिक्षा के अभाव में ग्रामीण अंधविश्वासी हो जाते हैं। वे किसी भी प्राकृतिक विपदा, महामारी का संबंध भूत-प्रेतों से जोड़कर तांत्रिकों के चंगुल में फँस जाते हैं।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के कथ्य पर अपने शब्दों में प्रकाश डालिए।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में लेखक ने गाँव और आस-पास के प्रांकृतिक परिवेश का वर्णन करते हुए ग्रामीण जीवन-शैली, लोक कथाओं तथा लोक मान्यताओं को पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया है। गाँव, शहरों की तरह सुविधा सम्पन्न नहीं होते, बल्कि प्रकृति पर अधिक निर्भर रहते हैं। वहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य उन्हें लुभाता है। प्रस्तुत पाठ में प्राकृतिक संपदा के रूप में अकाल के वक्त खाई जाने वाली कमल-ककड़ी का वर्णन है तो दूसरी ओर प्राकृतिक आपदा बाढ़ से बदहाल गाँव की तकलीफों का वर्णन किया गया है।
कमल-ककड़ी, कोइयाँ हरसिंगार के साथ तोरी, लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, कदंब आदि फूलों का सजीव वर्णन किया गया है। इस वर्णन में लेखक ने ग्रामीण प्राकृतिक सुषमा और संपदा को भी दिखाया है। उसने डोड़हा, मजगिदवा, धामिन, गोंहुअन, घोर कड़ा इच आदि साँपों, बिच्छुओं आदि के वर्णन द्वारा भयमिश्रित वातावरण का निर्माण भी किया है। ग्रामीण जीवन में शहर दवाइयों की जगह प्रकृति से प्राप्त फूल, पत्तियों के प्रयोग भी आम मिलते हैं।लेखक की पूरी कहानी के केंद्र में बिस्कोहर है, जो लेखक का अपना गाँव है। लेखक ने वहाँ की गरमी, वर्षा और शरद् ऋतु में होने वाली दिक्कतों का भी वर्णन किया है। लेखक ने अपनी पूरी रचना में अपने देखे-भोगे यथार्थ को प्राकृतिक सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया है।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि यह पाठ ग्रामीण जीवन के रूप-रस-गंध को उकेरने वाला मार्मिक लेख है।
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ ग्रामीण जीवन के रूप-रस-गंध को उकेरने वाला मार्मिक लेख है। इस पाठ में हमें गाँव के बारे में निम्नलिखित जानकारियाँ मिलती हैं-
तालाबों में कमल के फूल खिले रहते हैं। वहाँ कमल के नाल को भसीण कहते हैं। वहाँ का कमल-ताल था-लेंवड़ी का ताल।
गाँव के भोज में हिंदुओं के यहाँ भोजन कमल पत्र पर परोसा जाता है। वहाँ कमल-गट्टा जरूर खाया जाता है।
गाँव में कमल से ज्यादा कोइयाँ की बहार होती है। कोइयाँ एक जलपुष्प होता है जिसे कुमुद भी कहते हैं। इसे कोका-बेली भी कहा जाता है।
गाँव के तालाबों में सिंघाड़े भी होते हैं। उसके फूल उजले तथा गंध वाले होते हैं। सिंघाड़ा जब बतिया, छोटा और दूधिया होता है तब उसमें गंध होती है।
गाँव में शरद् ऋतु में हरसिंगार फूलता है। पितृपक्ष में घर में दरवाजे पर हरसिंगार की राशि रख दी जाती है। यह काम प्रायः मालिन करती है।
गाँव में सरसों, धान, गेहूँ, मक्का आदि की खेती की जाती है।
गाँव में घास-पात से भरे मेड़ों पर, मैदानों में, तालाबों के भीटों पर नाना प्रकार के साँप मिलते हैं। वहाँ बिच्चू भी बहुत होते हैं। उनका भय निरंतर बना रहा है।
चेचक के रोगी के पास नीम के फूल और पत्ते रख्ख दिए जाते हैं।
वर्षा ऋतु में गाँव में कीचड़ व बदबू बहुत हो जाती है। वर्षा ऋतु गाँव में अनेक असुविधाओं को लेकर आती है।
लेखक ने शरद् ऋतु का वर्णन किस प्रकार किया है ?
लेखक बताता है कि शरद में हरसिंगार फूलता है। पितृ-पक्ष में मालिन, दाई घर के दरवाजे पर हरसिंगार की राशि रख जाती थी। गाँव की बोली में कहा जाता है-‘ ‘ुुइ जात रहीं’। कुरइ देना है तो सकर्मक लेकिन सहजता अकर्मक की है। गाँव में ज्ञात-अज्ञात वनस्पतियों, जल के विविध रूपों और मिट्टी के अनेक वर्णों-आकारों का एक ऐसा समस्त वातावरण होता था जो सजीव प्रतीत होता था। बच्चे उसे छूते, पहचानते और बतियाते थे। जब आकाश भी अपने गाँव का ही एक टोला लगता था। लगता था चंदा मामा में एक बुढ़िया है जो बच्चे को आँचल में छिपाकर दूध पिला रही है। बच्चा सुबुकता था, रोता था, माँ को मारता था, पर उससे चिपटा रहता था।
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