If anything, the world of Hindi Literature, in itself, is an enrichment. Off the many Class 9 students, specifically diving into Class 9 Hindi Sparsh 35, it becomes a high school class textbook used in many CBSE schools, including Orchids International School. It contains immense diversity in stories and poems that help develop linguistic skills and broaden cultural understanding.
The NCERT Solutions Class 9 Hindi Sparsh Chapter 35: Ganesh Shankar Vidyarthi are tailored to help the students master the concepts that are key to success in their classrooms. The solutions given in the PDF are developed by experts and correlate with the CBSE syllabus of 2023-2024. These solutions provide thorough explanations with a step-by-step approach to solving problems. Students can easily get a hold of the subject and learn the basics with a deeper understanding. Additionally, they can practice better, be confident, and perform well in their examinations with the support of this PDF.
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Students can access the NCERT Solutions Class 9 Hindi Sparsh Chapter 35: Ganesh Shankar Vidyarthi. Curated by experts according to the CBSE syllabus for 2023–2024, these step-by-step solutions make Hindi much easier to understand and learn for the students. These solutions can be used in practice by students to attain skills in solving problems, reinforce important learning objectives, and be well-prepared for tests.
1. आज धर्म के नाम पर क्या-क्या हो रहा है?
2. धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या उद्योग होने चाहिए?
3. लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का कौन-सा दिन बुरा था?
4. साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है?
5. धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं?
1.आज धर्म के नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है, उन्हें ठगा जा रहा है और दंगे-फसाद किए जाते हैं और नाना प्रकार के उत्पात किए जाते हैं।
2.धर्म के नाम पर हो रहे व्यापार को रोकने के लिए दृढ़ विश्वास और विरोधियों के प्रति साहस से काम लेना चाहिए। कुछ लोग धूर्तता से काम लेते हैं, उनसे बचना चाहिए और बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए।
3.लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का वह दिन सबसे बुरा था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफत, मुल्ला मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया। इस प्रकार स्वाधीनता आंदोलन ने एक कदम और पीछे कर लिया जिसका फल आज तक भुगतना पड़ रहा है।
4. साधारण आदमी धर्म के नाम पर उबल पड़ता है, चाहे उसे धर्म के तत्वों का पता न हो क्योंकि उनको यह पता है कि धर्म की रक्षा पर प्राण तक दे देना चाहिए।
5.धर्म के दो स्पष्ट चिह्न हैं – शुद्ध आचरण और सदाचार धर्म।
कौन-सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरूद्ध समझा जाएगा?
हमारा देश स्वाधीन है। इसमें अपने-अपने धर्म को अपने ढंग से मनाने की पूरी स्वतंत्रता है। यदि कोई इसमें रोड़ा बनता है या धर्म की आड़ लेकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश करते हैं तो वह कार्य देश की स्वाधीनता के विरूद्ध समझा जाएगा।
चलते-पुरज़े लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं?
चलते-पुरज़े लोग धर्म के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं, लोगों की शक्तियों और उनके उत्साह का दुरूपयोग करते हैं। उन्हीं मूर्खों के आधार पर वे अपना बड़पन्न और नेतृत्व कायम रखना चाहते हैं। साधारण लोग धर्म का सही अर्थ और उसके तत्वों को समझ नहीं पाते और उनकी इस अज्ञानता का लाभ चालाक लोग उठा लेते हैं। उन्हें आपस में ही लड़ाते रहते हैं।
चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं?
चालाक लोग साधारण आदमी की धर्म के प्रति निष्ठा और अज्ञानता का लाभ उठाते हैं। साधारण आदमी उनके बहकावे में आ जाते हैं। चालाक आदमी उसे जिधर चाहे उसे मोड़ देता है और अपना काम निकाल लेता है। साथ ही उस पर अपना प्रभुत्व भी जमा लेता है। वे लोग उनकी अज्ञानता का लाभ उठाकर उसकी शक्तियों और उत्साहों का शोषण करते हैं।
आनेवाला समय किस प्रकार के धर्म को नहीं टिकने देगा?
नमाज पढ़ना, शंख बजाना, नाक दबाना यह धर्म नहीं है, शुद्ध आचरण और सदाचार धर्म के लक्षण हैं। पूजा के ढ़ोंग का धर्म आगे नहीं टिक पाएगा। ऐसी पूजा तो ईश्वर को रिश्वत की तरह होती है। बेईमानी करने और दूसरों को दुःख पहुँचाने की आजादी धर्म नहीं है। इस लिए आगे से कोई भ्रष्ट नेता लोगों की धार्मिक भावनाओं से नहीं खेल सकता। आने वाला समय दिखावे वाले धर्म को नहीं टिकने देगा।
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है?
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन के बीच गहरी खाई है। वहाँ धनी लोग निर्धन को चूसना चाहते हैं। उनसे पूरा काम लेकर ही वह धनी हुए हैं। वे धन का लोभ दिखाकर उन्हें अपने वश में कर लेते हैं और मनमाने तरीके से काम लेते हैं। धनियों के पास पूरी सुविधाएँ होती हैं। कठिन परिश्रम करने के बाद भी गरीबों को झोपड़ियों में जीवन बिताना पड़ता है। इसी के कारण साम्यवाद का जन्म हुआ।
कौन-से लोग धार्मिक लोगों से अधिक अच्छे हैं?
जो लोग खुद को धार्मिक कहते हैं परन्तु उनका आचरण, व्यवहार अच्छा नहीं है। उनसे वे लोग अच्छे हैं जो नास्तिक हैं, धर्म को बहुत जटिलता से नहीं मानते परन्तु आचरण और व्यवहार में बहुत अच्छे हैं। दूसरों के सुख-दुख का ख्याल रखते हैं, मदद करते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सीधे सज्जन या अज्ञान लोगों को मूर्ख नहीं बनाते हैं।
धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है?
चालाक लोग धर्म और ईमान के नाम पर सामान्य लोगों को बहला फुसला कर उनका शोषण करते हैं तथा अपने स्वार्थ की पूर्ति करते हैं। वे धर्म के नाम पर दंगे फसाद कराते हैं, लोगों को दूसरे लोगों से लड़ाते हैं, लोगों की शक्ति का दुरूपयोग करते हैं। इस प्रकार धर्म की आड़ में एक व्यापार जैसा चल रहा है। इसे रोकना अतिआवश्यक है। इसके लिए लोगों को धर्म के अर्थ और तत्वों को सही तरह समझाना व उन्हें जागरूक करना आवश्यक है। लोगों को शिक्षित करके साहस और दृढ़ता से धर्म गुरूओं की पोल खोलनी चाहिए।
‘बुद्धि पर मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?
बुद्धि पर मार’ का अर्थ है लोगों की बुद्धि में ऐसे विचार भरना जिससे वे गुमराह हो जाएँ। इससे उनके सोचने समझनी की शक्ति नष्ट हो जाए। लेखक का विचार है कि विदेश में धन की मार है तो भारत में बुद्धि की मार। यहाँ बुद्धि को भ्रमित किया जाता है। जो स्थान ईश्वर और आत्मा का है, वह अपने लिए ले लिया जाता है। फिर इन्हीं नामों अर्थात् धर्म, ईश्वर,ईमान, आत्मा के नाम पर अपने स्वार्थ की सिद्धी के लिए सामान्य लोगों को आपस में लड़ाया जाता है।
लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए?
हमारा देश स्वाधीन है। इसमें अपने-अपने धर्म को अपने ढंग से मनाने की पूरी स्वतंत्रता है। उसके अनुसार शंख, घंटा बजाना, ज़ोर-ज़ोर से नमाज़ पढ़ना ही केवल धर्म नहीं है। शुद्ध आचरण और सदाचार धर्म के लक्षण हैं।
महात्मा गाँधी के धर्म-संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
महात्मा गाँधी अपने जीवन में धर्म को सर्वोच्च स्थान देते थे। धर्म के बिना वे एक कदम भी चलने को तैयार नहीं थे। वे सर्वत्र धर्म का पालन करते थे। उनके धर्म के स्वरूप को समझना आवश्यक है। धर्म से महात्मा गांधी का मतलब, धर्म ऊँचे और उदार तत्वों का ही हुआ करता है। वे धर्म की कट्टरता के विरोधी थे। प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह धर्म के स्वरूप को भलि-भाँति समझ ले। वे सत्य और अहिंसा को ही परम धर्म मानते थे।
सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है?
जन कल्याण हेतु आचरण में शुद्धता अतिआवश्यक है। यदि हम धार्मिक बनेंगे अर्थात् अपना व्यवहार अच्छा, सदाचार पूर्ण रखेंगे तो दूसरों को समझाना भी आसान हो। सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना इसलिए आवश्यक है क्योंकि जब हम खुद को ही नहीं सुधारेंगे, दूसरों के साथ अपना व्यवहार सही नहीं रखेंगे तब तक दूसरों से क्या आशा रख सकते हैं।
उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
साधारण आदमी धर्म के नाम पर उबल पड़ता है, चाहे उसे धर्म के तत्वों का पता न हो क्योंकि उनको यह पता है कि धर्म की रक्षा पर प्राण तक दे देना चाहिए। धर्म के बारे में अंधविश्वास रखते हैं और इसका फायदा चालाक लोग, स्वार्थी लोग उठा लेते हैं। उनसे अपना स्वार्थ सिद्ध कराते हैं और वे भी उसमें बिना विचारे जुट जाते हैं।
यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
लेखक का विचार है कि विदेश में धन की मार है तो भारत में बुद्धि की मार। भारत में धर्म के कुछ महान लोग साधारण लोगों को भ्रमित कर देते हैं। जो स्थान ईश्वर और आत्मा का है,वह अपने लिए ले लिया जाता है। फिर इन्हीं नामों अर्थात् धर्म, ईश्वर, ईमान, आत्मा के नाम पर अपने स्वार्थ की सिद्धी के लिए सामान्य दुरूपयोग कर शोषण करते हैं। साधारण लोगों को आपस में लड़ाया जाता है।
अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
नमाज पढ़ना, शंख बजाना, नाक दबाना यह धर्म नहीं है, शुद्ध आचरण और सदाचार धर्म के लक्षण हैं। पूजा के ढ़ोंग का धर्म आगे नहीं टिक पाएगा। ऐसी पूजा तो ईश्वर को रिश्वत की तरह होती है। बेईमानी करने और दूसरों को दुःख पहुँचाने की आजादी धर्म नहीं है। इसलिए आने वाले समय में केवल पूजा-पाठ को ही महत्व नहीं दिया जाएगा बल्कि आपके अच्छे व्यवहार को परखा जाएगा और उसे महत्व दिया जाएगा। आने वाला समय दिखावे वाले धर्म को नहीं टिकने देगा।
तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो !
निम्न पंक्तियों का आशय यह है कि केवल मानने से ईश्वर का अस्तित्व नहीं रहेगा बल्कि यदि सही मायनों में हम उसका अस्तित्व कायम रखना चाहते हैं तो हमें हिंसा छोड़कर मानवता को अपनाना होगा
उदाहरण के अनुसार ‘त्व’ प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए –
उदाहरण : देव + त्व =देवत्व
1. उत्तरदायी + त्व = उत्तरदायित्व
2. महा + त्व = महत्व
3. पशु + त्व = पशुत्व
4 लघु + त्व = लघुत्व
5. व्यक्ति + त्व = व्यक्तित्व
6. मनुष्य + त्व = मनुष्यत्व
निम्नलिखित उदाहरण को पढ़कर पाठ में आए संयुक्त शब्दों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरण – चलते-पुरज़े
समझता – बूझना छोटे – बड़े
पूजा – पाठ कटे – फटे
ठीक – ठाक खट्टे – मीठे
गिने – चुने लाल – पीले
जले – भुने ईमान – धर्म
स्वार्थ – सिद्धी नित्य – प्रति
उदाहरण के अनुसार शब्दों के विपरीतार्थक लिखिए −
1. सुगम – दुर्गम
2. धर्म – ………….
3. ईमान – ………….
4. साधारण – ………….
5. स्वार्थ – ………….
6. दुरूपयोग – ………….
7. नियंत्रित – ………….
8. स्वाधीनता – ………….
1. सुगम – दुर्गम
2. धर्म – अधर्म
3. ईमान – बेईमान
4. साधारण – असाधारण
5. स्वार्थ – निःस्वार्थ
6. दुरूपयोग – सदुपयोग
7. नियंत्रित – अनियंत्रित
8. स्वाधीनता – पराधीनता
निम्नलिखित उपसर्गों का प्रयोग करके दो-दो शब्द बनाइए –
ला, बिला, बे, बद, ना, खुश, हर, गैर
ला – लाइलाज, लापरवाह
बिला – बिला वजह
बे – बेजान, बेकार
बद – बददिमाग, बदमिज़ाज़
ना – नाकाम, नाहक
खुश – खुशनसीब, खुशगवार
हर – हरएक, हरदम
गैर – गैरज़िम्मेदार, गैर कानूनी
‘भी’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए –
उदाहरण – आज मुझे बाजार होते हुए अस्पताल भी जाना है।
1. चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं।
2. गाँव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्वपूर्ण थी।
3. झूरी इन्हें फूल की छड़ी से भी न छूता था। उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे। यहाँ मार पड़ी।
4. कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर हैं, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ जाता हैं, किन्तु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना।
5. उसके चेहरे पर एक स्थायी विषाद स्थायी रूप से छाया रहता हैं। सुख-दुःख, हानि-लाभ, किसी भी दशा में बदलते नहीं देखा।
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