Quality resources and a good learning environment become important while going through the educational journey of Class 9 Hindi—especially something or anything like that of Sparsh 30. Orchids International School is one of the prime institutions concerned with the pursuit of excellence in academics. It would certainly be one of the exemplary institutions to provide kinds of support in this regard for the students.
The NCERT Solutions Class 9 Hindi Sparsh Chapter 30: Yashpal are tailored to help the students master the concepts that are key to success in their classrooms. The solutions given in the PDF are developed by experts and correlate with the CBSE syllabus of 2023-2024. These solutions provide thorough explanations with a step-by-step approach to solving problems. Students can easily get a hold of the subject and learn the basics with a deeper understanding. Additionally, they can practice better, be confident, and perform well in their examinations with the support of this PDF.
Download PDF
Students can access the NCERT Solutions Class 9 Hindi Sparsh Chapter 30: Yashpal. Curated by experts according to the CBSE syllabus for 2023–2024, these step-by-step solutions make Hindi much easier to understand and learn for the students. These solutions can be used in practice by students to attain skills in solving problems, reinforce important learning objectives, and be well-prepared for tests.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –
1. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?
2. खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूज़े क्यों नहीं खरीद रहा था?
3. उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?
4. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?
5. बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता?
1. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें समाज में उसका दर्जा और अधिकार का पता चलता है तथा उसकी अमीरी-गरीबी श्रेणी का पता चलता है।
2. उसके बेटे की मृत्यु के कारण लोग उससे खरबूजे नहीं खरीद रहे थे।
3. उस स्त्री को देखकर लेखक का मन व्यथित हो उठा। उनके मन में उसके प्रति सहानुभूति की भावना उत्पन्न हुई थी।
4. उस स्त्री का लड़का एक दिन मुँह-अंधेरे खेत में से बेलों से तरबूजे चुन रहा था की गीली मेड़ की तरावट में आराम करते साँप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने उस लड़के को डस लिया। ओझा के झाड़-फूँक आदि का उस पर कोई प्रभाव न पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।
5. बुढिया का बेटा मर गया था इसलिए बुढ़िया को दिए उधार को लौटने की कोई संभावना नहीं थी। इस वजह से बुढ़िया को कोई उधार नहीं देता था।
लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने क्यों चल पड़ी?
बुढ़िया बेटे की मृत्यु का शोक तो प्रकट करना चाहती है परंतु उसके घर की परिस्थिति उसे ऐसा करने नहीं दे रही थी। इसका सबसे बड़ा कारण है, धन का अभाव। उसके बेटे भगवाना के बच्चे भूख के मारे बिलबिला रहे थे। बहू बीमार थी। यदि उसके पास पैसे होते, तो वह कभी भी सूतक में सौदा बेचने बाज़ार नहीं जाती।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –
मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?
मनुष्य के जीवन में पोशाक का बहुत महत्व है। पोशाकें ही व्यक्ति का समाज में अधिकार व दर्जा निश्चित करती हैं। पोशाकें व्यक्ति को ऊँच-नीच की श्रेणी में बाँट देती है। कई बार अच्छी पोशाकें व्यक्ति के भाग्य के बंद दरवाज़े खोल देती हैं। सम्मान दिलाती हैं।
पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
जब हमारे सामने कभी ऐसी परिस्थिति आती है कि हमें किसी दुखी व्यक्ति के साथ सहानुभूति प्रकट करनी होती है, परन्तु उसे छोटा समझकर उससे बात करने में संकोच करते हैं।उसके साथ सहानुभूति तक प्रकट नहीं कर पाते हैं। हमारी पोशाक उसके समीप जाने में तब बंधन और अड़चन बन जाती है।
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?
वह स्त्री घुटनों में सिर गड़ाए फफक-फफककर रो रही थी। इसके बेटे की मृत्यु के कारण लोग इससे खरबूजे नहीं ले रहे थे। उसे बुरा-भला कह रहे थे। उस स्त्री को देखकर लेखक का मन व्यथित हो उठा। उनके मन में उसके प्रति सहानुभूति की भावना उत्पन्न हुई थी। परंतु लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया क्योंकि उसकी पोशाक रुकावट बन गई थी।
भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?
भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में खरबूज़ों को बोकर परिवार का निर्वाह करता था। खरबूज़ों की डलियाँ बाज़ार में पहुँचाकर लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता था।
बुढ़िया के दु:ख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
लेखक के पड़ोस में एक संभ्रांत महिला रहती थी। उसके पुत्र की भी मृत्यु हो गई थी और बुढ़िया के पुत्र की भी मृत्यु हो गई थी परन्तु दोनों के शोक मनाने का ढंग अलग-अलग था। धन के अभाव में बेटे की मृत्यु के अगले दिन ही वृद्धा को बाज़ार में खरबूज़े बेचने आना पड़ता है। वह घर बैठ कर रो नहीं सकती थी। मानों उसे इस दुख को मनाने का अधिकार ही न था। आस-पास के लोग उसकी मजबूरी को अनदेखा करते हुए, उस वृद्धा को बहुत भला-बुरा बोलते हैं। जबकि संभ्रांत महिला को असीमित समय था। अढ़ाई मास से पलंग पर थी, डॉक्टर सिरहाने बैठा रहता था। लेखक दोनों की तुलना करना चाहता था इसलिए उसे संभ्रांत महिला की याद आई।
बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।
धन के अभाव में बेटे की मृत्यु के अगले दिन ही वृद्धा को बाज़ार में खरबूज़े बेचने आना पड़ता है। बाज़ार के लोग उसकी मजबूरी को अनदेखा करते हुए, उस वृद्धा को बहुत भला-बुरा बोलते हैं। कोई घृणा से थूककर बेहया कह रहा था, कोई उसकी नीयत को दोष दे रहा था, कोई रोटी के टुकड़े पर जान देने वाली कहता, कोई कहता इसके लिए रिश्तों का कोई मतलब नहीं है, परचून वाला कहता, यह धर्म ईमान बिगाड़कर अंधेर मचा रही है, इसका खरबूज़े बेचना सामाजिक अपराध है। इन दिनों कोई भी उसका सामान छूना नहीं चाहता था।
पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
पास-पड़ोस की दुकानों में पूछने पर लेखक को पता चला की। उसका २३ साल का जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर जमीन में कछियारी करके निर्वाह करता था। खरबूजों की डलिया बाज़ार में पहुँचाकर कभी लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता, कभी माँ बैठ जाती। परसों मुँह-अंधेरे खेत में से बेलों से तरबूजे चुन रहा था कि गीली मेड़ की तरावट में आराम करते साँप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने उस लड़के को डस लिया। ओझा के झाड़-फूँक आदि का उस पर कोई प्रभाव न पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया जो कुछ वह कर सकती थी उसने वह सब सभी उपाय किए। वह पागल सी हो गई। झाड़-फूँक करवाने के लिए ओझा को बुला लाई, साँप का विष निकल जाए इसके लिए नाग देवता की भी पूजा की, घर में जितना आटा अनाज था वह दान दक्षिणा में ओझा को दे दिया परन्तु दुर्भाग्य से लड़के को नहीं बचा पाई।
लेखक ने बुढ़िया के दु:ख का अंदाज़ा कैसे लगाया?
लेखक उस पुत्र-वियोगिनी के दु:ख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दु:खी माता की बात सोचने लगा। वह महिला अढ़ाई मास से पलंग पर थी,उसे १५ -१५ मिनट बाद पुत्र-वियोग से मूर्छा आ जाती थी। डॉक्टर सिरहाने बैठा रहता था। शहर भर के लोगों के मन पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे।
इस पाठ का शीर्षक ‘दुःख का अधिकार कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट कीजिए।
इस पाठ का शीर्षक ‘दु:ख का अधिकार’ पूरी तरह से सार्थक सिद्ध होता है क्योंकि यह अभिव्यक्त करता है कि दु:ख प्रकट करने का अधिकार व्यक्ति की परिस्थिति के अनुसार होता है। यद्यपि दु:ख का अधिकार सभी को है। गरीब बुढ़िया और संभ्रांत महिला दोनों का दुख एक समान ही था। दोनों के पुत्रों की मृत्यु हो गई थी परन्तु संभ्रांत महिला के पास सहूलियतें थीं, समय था। इसलिए वह दु:ख मना सकी परन्तु बुढ़िया गरीब थी, भूख से बिलखते बच्चों के लिए पैसा कमाने के लिए निकलना था। उसके पास न सहूलियतें थीं न समय। वह दु:ख न मना सकी। उसे दु:ख मनाने का अधिकार नहीं था। इसलिए शीर्षक पूरी तरह सार्थक प्रतीत होता है।
जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
प्रस्तुत कहानी समाज में फैले अंधविश्वासों और अमीर-गरीबी के भेदभाव को उजागर करती है। यह कहानी अमीरों के अमानवीय व्यवहार और गरीबों की विवशता को दर्शाती है। मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्राय: पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्ज़ा निश्चित करती है। वह हमारे लिए अनेक बंद दरवाज़े खोल देती है,
परंतु कभी ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि हम ज़रा नीचे झुककर समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं। उस समय यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है। जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं, उसी तरह खास पारिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।
समाज में रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति को नियमों, कानूनों व परंपराओं का पालन करना पड़ता है। दैनिक आवश्यकताओं से अधिक महत्व जीवन मूल्यों को दिया जाता है।यह वाक्य गरीबों पर एक बड़ा व्यंग्य है। गरीबों को अपनी भूख के लिए पैसा कमाने रोज़ ही जाना पड़ता है चाहे घर में मृत्यु ही क्यों न हो गई हो। परन्तु कहने वाले उनसे सहानुभूति न रखकर यह कहते हैं कि रोटी ही इनका ईमान है, रिश्ते-नाते इनके लिए कुछ भी नहीं है।
शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और… दु:खी होने का भी एक अधिकार होता है।
यह व्यंग्य अमीरी पर है क्योंकि समाज में अमीर लोगों के पास दुख मनाने का समय और सुविधा दोनों होती हैं। इसके लिए वह दु:ख मनाने का दिखावा भी कर पाता है और उसे अपना अधिकार समझता है। शोक करने, गम मनाने के लिए सहूलियत चाहिए। दुःख में मातम सभी मनाना चाहते हैं चाहे वह अमीर हो या गरीब। परंतु गरीब विवश होता है। वह रोज़ी रोटी कमाने की उलझन में ही लगा रहता है। उसके पास दु:ख मनाने का न तो समय होता है और न ही सुविधा होती है। इस प्रकार गरीबों को रोटी की चिंता उसे दु:ख मनाने के अधिकार से भी वंचित कर देती है।
निम्नांकित शब्द-समूहों को पढ़ो और समझो –
क) कड्.घा, पतड्.ग, चञ्च्ल, ठण्डा, सम्बन्ध।
ख) कंधा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंध।
ग) अक्षुण, समिमलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न।
घ) संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।
ड) अंधेरा, बाँट, मुँह, ईंट, महिलाएँ, में,मैं।
ध्यान दो कि ड्., ञ्, ण्, न्, म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ तुमने ऊपर देखीं – इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरीके से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा, जैसे – अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य, र, य, व और ऊष्म श, ष, स, ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा,
परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है ; जैसे – संशय, संरचना में ‘न्’, संवाद में ‘म्’ और संहार में ‘ड्.’। (ं) यह चिह्न है अनुस्वार का और (ँ) यह चिह्न है अनुनासिका का। इन्हें क्रमशः बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहते हैं। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है अनुनासिका का स्वर के साथ।
निम्नांकित शब्द -समूहों को पढ़ो और समझो –
क) कड्.घा, पतड्.ग, चञ्च्ल, ठण्डा, सम्बन्ध।
ख) कंधा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंध।
ग) अक्षुण, समिमलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न।
घ) संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।
ड) अंधेरा, बाँट, मुँह, ईंट, महिलाएँ, में, मैं।
ध्यान दो कि ड्.,ञ् ,ण् ,न् ,म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ तुमने ऊपर देखीं – इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरीके से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा, जैसे – अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य, र, य, व और ऊष्म श, ष, स, ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा, परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है ; जैसे – संशय, संरचना में ‘न्’, संवाद में ‘म्’ और संहार में ‘ड्.’। (ं)
यह चिह्न है अनुस्वार का और (ँ) यह चिह्न है अनुनासिका का। इन्हें क्रमशः बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहते हैं। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है अनुनासिका का स्वर के साथ।
निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए –
ईमान |
|
बदन |
|
अंदाज़ा |
|
बेचैनी |
|
गम |
|
दर्ज़ा |
|
ज़मीन |
|
ज़माना |
|
बरकत |
|
ईमान |
धर्म, विश्वास |
बदन |
शरीर, काया |
अंदाज़ा |
अनुमान, आकलन |
बेचैनी |
व्याकुलता, अकुलाहट |
गम |
दुःख, पीड़ा |
दर्ज़ा |
श्रेणी, पदवी |
ज़मीन |
पृथ्वी, धरा |
ज़माना |
युग, काल |
बरकत |
लाभ, इज़ाफा |
निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरण : बेटा-बेटी
खसम – लुगाई, पोता-पोती, झाड़ना-फूँकना,
छन्नी – ककना, दुअन्नी-चवन्नी।
पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए –
बंद दरवाज़े खोल देना, निर्वाह करना, भूख से बिलबिलाना, कोई चारा न होना, शोक से द्रवित हो जाना।
• बंद दरवाज़े खोल देना – प्रगति में बाधक तत्व हटने से बंद दरवाज़े खुल जाते हैं।
• निर्वाह करना – परिवार का भरण-पोषण करना।
• भूख से बिलबिलाना – बहुत तेज भूख लगना।
• कोई चारा न होना – कोई और उपाय न होना।
• शोक से द्रवित हो जाना – दूसरों का दु:ख देखकर भावुक हो जाना।
निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द-समूहों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
क) छन्नी-ककना अढ़ाई-मास पास-पड़ोस
दुअन्नी-चवन्नी मुँह-अँधेरे झाड़ना-फूँकना
ख) फफक-फफककर बिलख-बिलखकर
तड़प-तड़पकर लिपट-लिपटकर
क)
1. छन्नी-ककना – गरीब माँ ने अपना छन्नी-ककना बेचकर बच्चों को पढ़ाया-लिखाया।
2. अढ़ाई-मास – वह विदेश में अढ़ाई – मास के लिए गया है ।
3. पास-पड़ोस – पास-पड़ोस के साथ मिल-जुलकर रहना चाहिए, वे ही सुख-दुःख के सच्चे साथी होते है।
4. दुअन्नी-चवन्नी – आजकल दुअन्नी-चवन्नी का कोई मोल नहीं है।
5. मुँह-अँधेरे – वह मुँह-अँधेरे उठ कर काम ढूँढने चला जाता है ।
6. झाड़-फूँकना – आज के जमाने में भी कई लोग झाँड़ने-फूँकने पर विश्वास करते हैं।
ख)
1. फफक-फफककर – भूख के मारे गरीब बच्चे फफक-फफककर रो रहे थे।
2. तड़प-तड़पकर – अंधविश्वास और इलाज न करने के कारण साँप के काटे जाने पर गाँव के लोग तड़प-तड़पकर मर जाते है ।
3. बिलख-बिलखकर – बेटे की मृत्यु पर वह बिलख-बिलखकर रो रही थी।
4. लिपट-लिपटकर – बहुत दिनों बाद मिलने पर दोनों सहेलियाँ लिपट-लिपटकर मिली।
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए :
(क)
• लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
• उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा।
• चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
(ख)
• अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।
• भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।
(क)
• छोटा बच्चा नींद से उठते ही भूख से बिलबिलाने लगा।
• आज उसके जन्मदिन का उपहार लाना ही होगा।
• माँ मोहन को पढ़ाना चाहती थीं, चाहे उसके लिए उसके हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
(ख)
• अरे जो जैसा करता है, वैसा ही भरता है।
• बीमार रामू जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।
Admissions Open for 2025-26
The NCERT solution for Class 9 Chapter 30: Yashpal is important as it provides a structured approach to learning, ensuring that students develop a strong understanding of foundational concepts early in their academic journey. By mastering these basics, students can build confidence and readiness for tackling more difficult concepts in their further education.
Yes, the NCERT solution for Class 9 Chapter 30: Yashpal is quite useful for students in preparing for their exams. The solutions are simple, clear, and concise allowing students to understand them better. They can solve the practice questions and exercises that allow them to get exam-ready in no time.
You can get all the NCERT solutions for Class 9 Hindi Chapter 30 from the official website of the Orchids International School. These solutions are tailored by subject matter experts and are very easy to understand.
Yes, students must practice all the questions provided in the NCERT solution for Class 9 Hindi Chapter 30: Yashpal as it will help them gain a comprehensive understanding of the concept, identify their weak areas, and strengthen their preparation.
Students can utilize the NCERT solution for Class 9 Hindi Chapter 30 effectively by practicing the solutions regularly. Solve the exercises and practice questions given in the solution.