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लेखक ने टॉर्च बेचने वाली कंपनी का नाम 'सूरज छाप’ही क्यों रखा?
लेखक ने टॉर्च बेचने वाली कंपनी का नाम 'सूरज छाप’ इसलिए रखा क्योंकि जिस तरह सूरज रात के अंधेरे के बाद दिन में प्रकाश कहलाता है और किसी को डर नहीं लगता उसी प्रकार ' सूरज छाप'रात के अंधेरे में सूरज का काम करेगी और ‘सूरज छाप’ टॉर्च रात के अंधेरे में सूरज की रोशनी का प्रतीक है।
पांच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात किन परिस्थितियों में और कहां हुई?
पांच साल पहले दोनों दोस्त बेरोजगार थे। पांच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात प्रवचन स्थल पर होती है, लेकिन परिस्थिति पहले जैसी नहीं थी। उनमें से एक टॉर्च बेचने वाला था तथा दूसरा उपदेश देने वाला बन गया था।
पहला दोस्त मंच पर किस रूप में था और किस अंधेरे को दूर करने के लिए टॉर्च बेच रहा था?
पहला दोस्त मंच पर संत की तरह था। उसकी वेशभूषा भी संतों की तरह थी, बहुत सुंदर रेशमी कपड़ों से सजा धजा था। वह गुरु - गंभीर वाणी में प्रवचन दे रहा था और लोग उसके उपदेश को ध्यान से सुन रहे थे। वह आत्मा की अंधेरे को दूर करने के लिए टॉर्च बेच रहा था। उसके अनुसार सारा संसार अज्ञान रुपी अंधकार से घिरा हुआ है। मनुष्य की अंतरात्मा भय और पीड़ा से त्रस्त है। वह लोगों को उपदेश दे रहा था की अंधेरे से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि आत्मा के अंधेरे को अंतरात्मा के प्रकाश द्वारा खत्म किया जा सकता है।
भव्य पुरुष ने कहा - “जहां अंधकार है वही ही प्रकाश है।” इसका क्या तात्पर्य है?
भव्य पुरुष ने अपने प्रवचन में कहा की “जहां अंधकार है वही प्रकाश है।” जैसे हर रात के बाद सुबह आती है उसी प्रकार अंधकार के बाद प्रकाश आता है। मनुष्य को अंधकार से डरना नहीं चाहिए।आत्मा में ही अज्ञान के अंधकार के साथ ज्ञान की रोशनी भी होती है जिसे जगाने की जरूरत नहीं होती। उसके लिए अपने भीतर ही ज्ञान के प्रकाश को ढूंढना पड़ता है। इस प्रकार भव्य पुरुष ने सच ही कहा है की जहां अंधकार है वही प्रकाश है।
भीतर के अंधेरे की टॉर्च बेचने और 'सूरज छाप’ टॉर्च बेचने के धंधे में क्या फर्क है? पाठ के आधार पर बताइए।
भीतर के अंधेरे की टॉर्च आत्मा में बसे अंधेरे को दूर करने के लिए काम आती है। जहां एक तरफ पहला दोस्त अपनी वाणी से लोगों को जागृत करने का काम करता है। वह अपने प्रवचनों से लोगों के भीतर के अंधकार को दूर करना चाहता है। उसका काम लोगों अज्ञान रूपी अंधकार से हटाकर ज्ञान रूपी प्रकाश प्रदान करना है। इस प्रकाश सिद्ध पुरुष ही अज्ञान रूपी अंधकार को आत्मा से दूर करता है और लोगों के भीतर ज्ञान रूपी दीपक को जलाना है। वहीं दूसरी ओर दूसरा दोस्त रात के अंधेरे से बचने के लिए 'सूरज छाप’टॉर्च बेचता है। वे लोगों के अंदर रात का भय पैदा करता है ताकि वे डर कर उसकी टॉर्च खरीदें। यह टॉर्च बाहर के अंधेरे को दूर करता है। रात के अंधेरे में मनुष्य को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार वह लोगों को रात के अंधेरे का डर दिखाकर 'सूरज छाप’ टॉर्च बेचता है|दोनों के टॉर्च बेचने के धंधों में बहुत फर्क है। एक आत्मा के अंधेरे को दूर करता है और दूसरा रात के अंधेरे को दूर करता है।
“सवाल के पांव जमीन में गहरे गड़े हैं। यह उखड़ेंगे नहीं।” इस कथन से मनुष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया गया है और क्यों?
दोनों दोस्तों ने पैसे कमाने की कई कोशिशें की। दोनों के मन में गई सवाल आता था कि खूब पैसे कैसे कमाए जाए।लेकिन इसका हल निकालना आसान नहीं था। बहुत कोशिश करने के बाद भी जब जवाब नहीं मिला तो उनमें से एक ने कहा कि सवाल के पांव जमीन में गहरे गड़े हैं, यह उखड़ेंगे नहीं। यह कथन मनुष्य की उस प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है जब जवाब ना मिलने पर मनुष्य उस सवाल को टाल देना ही उचित समझता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी अनसुलझे सवाल में समय लगाना व्यर्थ होता है।
‘व्यंग्य विधा में भाषा सबसे धारदार है।’ परसाई जी की इस रचना को आधार बनाकर इस कथन के पक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिए।
लेखक हरिशंकर परसाई की रचना 'टॉर्च बेचने वाले' एक व्यंग्यात्मक रचना है। इस पाठ में लेखक ने समाज में फैले अंधविश्वास और पाखंडी साधु संत द्वारा रचे गए ढोंग से बचकर रहने का संदेश दिया हैं। ऐसे लोग भोली भाली जनता को अंधेरे का डर दिखाकर पैसे कमाते हैं। हमें ऐसे अंधविश्वास और पाखंडों से बचना चाहिए। लेखक ने इस व्यंग्य रचना के माध्यम से यह समझाने की कोशिश की है कि धर्म और अध्यात्म के नाम पर पैसे ठगने वाले ठगों के चंगुल में हमें फसना नहीं चाहिए। इस प्रकार 'व्यंग्य विधा’ के माध्यम से भाषा प्रभावशाली हो जाती है तथा लोगों के मन पर इसका अधिक प्रभाव पड़ता है और लोग इसके चंगुल में फंस जाते हैं। इसलिए लेखक ने इन लोगों से बचने की सलाह दी है।
लेखक ने ‘सूरज छाप’ टॉर्च को नदी में क्यों फेंक दिया?
लेखक ने 'सूरज छाप’ टॉर्च को नदी में इसलिए फेंक दिया क्योंकि उसने सोचा कि इस टॉर्च बेचने वाले रोजगार से ज्यादा कमाई हो नहीं रही क्यों ना मैं भी अपने दोस्त की तरह संत की तरह ज्ञान रूपी अंधकार को दूर भगाऊ इसमें गाड़ी, बंगला, पैसे सब कुछ है, मेरे काम में तो रुपए पैसे ही नहीं है।इसी सोच की वजह से उसने अपनी पेंटी को नदी में फेंक दिया।मैं बिल्कुल भी वैसा नहीं करता क्योंकि जो रोजी-रोटी सच्चाई के साथ कमाई जाए उससे जीने में आनंद आता है। लोगों को मूर्ख बनाकर उनको लूट कर कोई फायदा नहीं है। बेईमानी के रास्ते बहुत होते हैं और उसके परिणाम भी वैसे ही भयंकर होते हैं। इसलिए बेहतर है कि सरल जीवन और सच्चाई की रोटी खाए।
टॉर्च बेचने वाले किस प्रकार की स्किल प्रयोग करते हैं? इसका 'स्किल इंडिया’ प्रोग्राम से कोई संबंध है?
टॉर्च बेचने वाले कई प्रकार की स्किल का प्रयोग करते हैं जो निम्नलिखित है:
1. बोलने का तरीका
2. ग्राहकों को आकर्षित करने का तरीका
3. ग्राहक को हर तरह के फायदे बताना
4. अपने सामान का प्रचार करना
मेरे अनुसार इसका स्किल इंडिया प्रोग्राम से कोई संबंध नहीं है। यह कला खुद की होती है या खुद में इसको लाया जाता है कि किस तरह अपना सामान लोगों तक पहुंचाएं। बेचने वाला तरह-तरह के प्रचार प्रसार करता है जिससे खरीदने वाला आकर्षित हो जाता है और सामान खरीदना है।
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