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मगध के माध्यम से ‘हस्तक्षेप’ कविता किस व्यवस्था की ओर इशारा कर रहीं है?
‘हस्तक्षेप’ कविता के माध्यम से कवि श्रीकांत वर्मा मगध के कटु सत्य से साक्षात्कार कराते हैं। मगध से उनका आशय शासन व्यवस्था से है। वे शासन व्यवस्था के यथार्थ स्वरूप का चित्रांकन करते हैं। वे अपने शब्द रूपी बाणों का प्रयोग करते हैं। वे शासन के मनमाने स्वरूप की व्याख्या करते हैं। मुख्यतः किसी भी देश की शासन व्यवस्था, उस देश की जनता की रक्षा हेतु नियुक्त की जाती है। किंतु मगध में केवल सत्ता का बोल बाला है। कोई भी व्यक्ति न्याय करने के लिए तैयार नहीं है। परिणामस्वरूप सामान्य जनता का कार्यवाही पर हस्तक्षेप करना, एक अपराध बन गया है, जिससे भयभीत होकर जनता शासन व्यवस्था से प्रश्न पूछने से भयभीत है। क्योंकि अगर वे इस निरंकुश व्यवस्था की कार्यवाहियों पर हस्तक्षेप या प्रश्न करेंगे, तो सत्ता के बल से उन्हें दंडित किया जाएगा। अंत में वर्मा जी सत्ता के क्रूर रूप को प्रदर्शित करते हैं, और कहीं न कहीं आशा को भी संचित करते हैं, कि शायद कभी तो कोई मुर्दा इस व्यवस्था पर हस्तक्षेप करेगा।
व्यवस्था को ‘निरंकुश’ प्रवृत्ति से बचाए रखने के लिए उसमें ‘हस्तक्षेप’ ज़रूरी है- कविता को दृष्टि में रखते हुए अपना मत दीजिए।
‘हस्तक्षेप’ कविता में श्रीकांत वर्मा निरंकुश शासन व्यवस्था का वर्णन करते हैं। वे निरंकुश व्यवस्था की व्याख्या के साथ, इस व्यवस्था का विरोध भी करते हैं। वे इस व्यवस्था के विरोध का सर्वप्रमुख अस्त्र, इस व्यवस्था में हस्तक्षेप करने को मानते हैं। वे मानते हैं, अगर सामान्य जनता अपनी शासन व्यवस्था के कार्यों में हस्तक्षेप और उनके प्रत्येक कार्य को आँख बंद कर कबूलने के बजाय, उसके प्रति अपनी प्रतिक्रिया भी सुनिश्चित करे, तभी वे निरंकुश शासन को समाप्त कर पाएंगे। जब जनता स्वयं को सक्षम प्रस्तुत करेंगी, तभी वे अपने शासन व्यवस्था को निरंकुश होने से सुरक्षित कर सकती है।
मगध निवासी किसी भी प्रकार से शासन व्यवस्था में हस्तक्षेप करने से क्यों कतराते हैं?
इस कविता में मगध एक प्रतीकात्मक निरंकुश शासन के रूप में चित्रित है। भारत में मगध का ऐतिहासिक महत्व है। श्रीकांत वर्मा जनता का मगध में हस्तक्षेप करने से इसीलिए भयभीत हैं, क्योंकि मगध एक निरंकुश व्यवस्था का प्रतीक है, जहाँ केवल सत्तावादी वर्ग को अभिव्यक्ति की इजाजत है। सामान्य जनता को इस शासन व्यवस्था में बोलने का अधिकार नहीं है। अगर वे इस शासन के विरुद्ध हस्तक्षेप करेंगे, तो उन्हें अपनी जीविका, जीवन आदि सभी से हाथ होना पड़ेगा।
‘मगध अब कहने को मगध है, रहने को नहीं’- के आधार पर मगध की स्थिति का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
‘मगध अब केवल कहने को मगध है, रहने को नहीं’ यह उक्ति मगध पर कटाक्ष है। भारतीय इतिहास गवाह है, कि मगध एक बहुत शक्तिशाली और संपन्न साम्राज्य था, किन्तु केवल कहने के लिए सुख सुविधाओं से संपन्न था, यह निरंकुश व्यवस्था के कारण पतनोमुख अवस्था तक पहुँचा था। उसी प्रकार श्रीकांत वर्मा जी शासन व्यवस्था के मुखोटे की ओर इशारा करते हैं, जो जनता से बड़े-बड़े वादे तो करते हैं, किन्तु उनके प्रश्नों को अपने मार्ग की सबसे बड़ी बाधा मानते हैं, इसीलिए वे इस शासन व्यवस्था को महज एक दिखावा कहते हैं। इसीलिए इसमें रहना असंभव है।
मुर्दे का हस्तक्षेप क्या प्रश्न खड़ा करता है? प्रश्न की सार्थकता को कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
मगध में लोग भय के साथ अपना निर्जीव जीवन बिता रहें हैं। वे जीवित तो हैं, किन्तु मृतवस्था की कसौटी को पार कर चुके हैं। एक जीवित व्यक्ति का स्वभाव जिज्ञासु होता है, आसपास की हलचलों में स्वयं की प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने से होता है। किंतु कविता के अनुसार जनता एक बिना आँख, जुबान, कान के मृत व्यक्ति के समान हो गई है| वे किसी भी तरह के अन्याय के विरुद्ध आवाज नहीं उठा रही है। अब कवि की आशा मृत व्यक्ति से है, एक मुर्दा इंसान से है। क्योंकि मुर्दा व्यक्ति को किसी भी चीज़ का भय नहीं होता है, क्योंकि वह पहले से ही सब त्याग चुका है।
‘मगध को बनाए रखना है, तो मगध में शांति रहनी ही चाहिए’- भाव स्पष्ट कीजिए।
‘मगध को बनाए रखना है, तो मगध में शांति बनाई रखनी चाहिए’ इस पंक्ति से कवि श्रीकांत वर्मा का आशय है, कि इस व्यवस्था को सुचारू रूप से चलायमान, रहने के लिए शांति अत्यंत आवश्यक है। इन पंक्तियों में शांति से अभिप्राय शासन व्यवस्था में हस्तक्षेप न करने से है। वे जनता से उनकी अभिव्यक्ति को छीनने को शांति कहते हैं। क्योंकि अगर जनता विरोध करेगी, तो यह निरंकुश शासन का पतन हो जाएगा। जिससे सत्तावादी दल से सत्ता छिनने का भय उत्पन्न होगा।
‘हस्तक्षेप’ कविता सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होने वाले प्रतिरोद्ध की कविता है- स्पष्ट कीजिए।
यह कविता सत्ता की क्रूरता की वाचिक है। इस कविता में लोगों को उनके स्वाभाविक कर्म, छींकने तक पर रोक है। यह एक स्वाभाविक कर्म है, जिसका अर्थ शासन व्यवस्था के अमानवीय व्यवहार की ओर इंगित करता है। वहीं चीखने पर भी रोक लगा दी है। चीखना व्यक्ति के क्रोद्ध की अभिव्यक्ति है, जिसकी अनुमति तक मगध में नहीं दी गई है। सत्ता का यह अमानवीय व्यवहार ही इस व्यवस्था के प्रतिरोद्ध का कारण बनेगा। कवि को आशा है, जब कोई नहीं हस्तक्षेप करेगा, तो मुर्दा ही इस व्यवस्था पर चोट करेंगे।
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप’
इस पंक्ति को केंद्र में रखकर परिचर्चा आयोजित करें।
‘ एक बार शुरू होने पर कहीं नहीं रुकते हस्तक्षेप-’ इन पंक्तियों में व्याप्त भाव कवि की दृढ़ निश्चय भावना को व्यक्त कर रहीं हैं। ये पंक्तियां जनता की जागरूकता के पश्चात की परिस्थिति को उजागर कर रही है। जब जनता निरंकुश शासन के प्रतिरोद्ध करने का निश्चय दृढ़ता के साथ करती है। तो ये हस्तक्षेप या विरोद्ध, आगे विस्तार रूप लेता है, किन्तु रुकता नहीं है।
‘व्यक्तित्व के विकास में प्रश्न की भूमिका’ विषय पर कक्षा से चर्चा कीजिए।
यह कविता व्यक्तित्व के विकास हेतु प्रश्न की महत्वपूर्ण भूमिका का दर्ज करती है। किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसकी अभिव्यक्ति होती है। अगर कोई व्यक्ति स्वयं को अन्य लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं है, तो न तो वह व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर पाएगा, और न ही आत्मविश्वास का सृजन कर पाएगा। क्योंकि अभिव्यक्ति द्वारा ही व्यक्ति की जिज्ञासाओं को शांत किया जा सकता है। अन्यथा व्यक्ति जुबान होने के बाद भी मूक जीवन जीता है। जो अत्यंत कुंठित होता है
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