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पथेर पांचाली फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला?
फिल्म के लेखक और निर्माता-निर्देशक सत्यजीत रे की फिल्म "पथेर पांचाली" में ढाई साल तक शूटिंग करने के निम्न कारण थे:
आर्थिक अभाव: लेखक के जीवन में आर्थिक आभाव था, इसलिए वह फिल्म की शूटिंग पैसा इकठ्ठा होने के बाद ही शुरू करते थे।
समय का अभाव: लेखक एक विज्ञापन कंपनी में काम करता था। वह लेखन प्रक्रिया के बाद समय बचने पर ही फिल्म की सूटिंग करते थे।
कलाकारों की समस्या: जब लेखक के पास समय होता था, तो फिल्म के कलाकार व्यस्त होते थे, सभी के सामंजस्य बनाने और एक समय में सभी को इकट्ठा करने के लिए बहुत समस्या का सामना करना पड़ता था।
तकनीकी पिछड़ापन: तकनीक के अभाव के कारण पात्र, स्थान, दृश्य आदि की समस्याएं भी आती रहती थीं।
अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता? उसमें से 'कंटिन्युइटी नदारद हो जाती इस कथन-के पीछे क्या भाव है?
इस कथन के पीछे यह भावना है कि, किसी भी फिल्म का सबसे बड़ा स्तंभ उसके दृश्यों की निरंतरता है। कोई भी फिल्म दर्शकों को तभी प्रभावित कर सकती है, जब उसमें निरंतरता हो। अगर किसी सीन में एकरूपता नहीं है, तो दर्शक भ्रमित हो जाता है। फिल्म पथेर पांचाली में, निर्देशक को काश फूल के साथ शूटिंग पूरी करनी थी, लेकिन पूरा दृश्य एक साथ शूट नहीं किया जा सका और अगले सूटिंग में एक हफ्ते का अंतराल आकिया, इस बीच जानवरो ने सारे काश फूल चर लिए। दृश्य की निरंतरता को बनाये रखने के लिए वह दृश्य अगले साल चित्रित किया गया।
किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है?
प्रथम दृश्य: इस दृश्य में, 'भूलो' नाम के एक कुत्ते को चावल खाते दिखाया जाना था। परन्तु उस दिन सूर्यास्त हो गया और ये दृश्य नहीं फिल्माया जा सका। पैसे की कमी के कारन ये दृश्य छः महीने तक नहीं फिल्माया जा सका। छः महीने बाद जब वापस वे इस दृश्य को फिल्माने आये तो वो कुत्ता मर चूका था। बहुत मुश्किल से उसी तरह दिखने वाला कुत्ता खोजा गया तथा दृश्य को फिल्माया गया। वह दृश्य इतना स्वाभाविक था की, कोई भी दर्शक इस अंतर को पहचान नहीं पाया l
दूसरा दृश्य : इस दृश्य में, श्री निवास नामक एक व्यक्ति मधुर व्यक्ति की भूमिका निभा रहा था। शूटिंग को बीच में ही रोकना पड़ा। फिर से उस जगह पर जाने पर पता चला कि उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी, तब लेखक ने उस दृश्य के बाकी दृश्य को फिल्माया, जिसमें वह व्यक्ति उसके जैसा था। उस दृश्य में पहला श्री निवास बाँस के जंगल से निकलता है और दूसरा श्री निवास अपनी पीठ कैमरे की ओर करता है और मुखर्जी के घर के दरवाजे के सामने जाता है। दर्शक एक भूमिका में दो अलग अलग अभिनेताओं को नहीं पहचान पाते हैं।
'भूलो' की जगह दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया? उसने फ़िल्म के किस दृश्य को पूरा किया?
भूलो कुत्ता मर गया था, इसीलिए उसके जैसा ही एक कुत्ता लाया गया था। फिल्म का दृश्य ऐसा था कि अपू की माँ अपू को चावल खिला रही है, जबकि अपू एक तीर से खेलने के लिए दौड़ रहा है। उसे लाने के लिए खाना छोड़ देता है और भाग जाता है। माँ भी उसके पीछे दौड़ती है, भूलो कुत्ता वहाँ खड़ा है सब कुछ देख रहा है। उसका ध्यान चावल की थाली की ओर है। इतना दृश्य पहले कुत्ते पर फिल्माया गया था। इसके बाद के दृश्य में अपू की माँ बचा हुआ चावल गमले में डाल देती है, और भूलो वह भात खा जाता है, ये दृश्य दुसरे कुत्ते के साथ फिल्माया गया।
फ़िल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुज़र जाने के बाद किस प्रकार फ़िल्माया गया?
फिल्म में श्री निवास की भूमिका एक मिठाई विक्रेता की थी, जो घूम घूम कर मिठाई बेचता है। उनकी मृत्यु के बाद, उनके जैसा ही कद का व्यक्ति ढूंढा गया। उनका चेहरा अलग था लेकिन शरीर श्री निवास के समान था। तो फिल्म निर्माता ने इस तरह से एक दृश्य के दो शॉट और ट्रिक शूट किए:
शॉट 1: श्री निवास बांस के जंगल से बाहर आता है।
शॉट 2 (नया कलाकार): श्री निवास ने कैमरे की ओर अपनी पीठ घुमाई और मुखर्जी के घर के गेट से प्रवेश किया।
बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ?
पैसे की कमी के कारण बारिश के दृश्य को चित्रित करना बहुत मुश्किल था। बारिश के दिन आए और गए, लेकिन पास में पैसे नहीं थे, जिसके कारण शूटिंग रोक दी गई। पैसे का इंतज़ाम करते करते अक्टूबर का महीना आ गया। अक्टूबर का महीना शरद् ऋतु का होता है, जिसमे में बारिश का होना तो बहुत कम ही होता है। लेकिन फिर भी सत्यजीत रे अपू और दुर्गा की भूमिका करने वाले बाल कलाकारों, कैमरा और तकनीशियन को साथ लेकर प्रतिदिन देहात में जाकर बैठे रहते थे और इंतज़ार करते थे की, सायद आज बरसात हो जाये । एक दिन मूसलाधार बारिश शुरू हुई और दृश्य को फिल्माया गया। यह दृश्य बहुत ही सुन्दर चित्रित हुआ है।
किसी फ़िल्म की शूटिंग करते समय फ़िल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सूचीबद्ध कीजिए ।
किसी भी फ़िल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है
पशु-पात्रों के दृश्य की समस्या |
कलाकारों के स्वास्थ और मृत्यु की स्थिति आने पर चुनौती का सामना |
प्राकृतिक दृश्यों हेतु मौसम पर निर्भरता |
स्थानीय लोगों का हस्तक्षेप और असहयोग |
आर्थिक समस्या |
कलाकारों का चयन ।
बाहरी दृश्यों हेतु लोकेशन ढूंढना ।
दृश्यों की निरंतरता बनाये रखने के लिए प्रकृति मौसम और पात्रों के लिए भटकना / प्रतीक्षा करना।
तीन प्रसंगों में राय ने कुछ इस तरह की टिप्पणियाँ की हैं कि दर्शक पहचान नहीं पाते कि.. या फ़िल्म देखते हुए इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया कि... इत्यादि। ये प्रसंग कौन से हैं, चर्चा करें और इसपर भी विचार करें कि शूटिंग के समय की असलियत फ़िल्म को देखते समय कैसे छिप जाती है।
"पथेर पांचाली" फ़िल्म की शूटिंग के समय के तीन प्रमुख प्रसंग निम्नलिखित हैं:
(क) 'भूलो' कुत्ते की मृत्यु के कारण, दूसरे कुत्ते के साथ दृश्य फिल्माया जाना ।
(ख) फ़िल्म में रेलगाड़ी का दृश्य बड़ा था। धुआँ उठाने के दृश्य को फिल्माने के लिए तीन रेलगाड़ियों के साथ, वह दृश्य फिल्माया गया।
(ग) श्री निवास का किरदार निभा रहे व्यक्ति की मृत्यु हो जाने के बाद उसी की कद काठी वाले व्यक्ति के साथ मात्र उसकी पीठ दिखाकर मिठाई वाले का दृश्य पूरा किया गया।
फिल्म की शूटिंग के दौरान, कई समस्याएं आती हैं, जिनके कारण दृश्य की निरंतरता को बनाए रखना बहुत मुश्किल होता है। कभी-कभी उस निरंतरता को बनाए रखने के लिए कुछ चाल और कुछ तकनीक का उपयोग करना आवश्यक होता है, दृश्य को थोड़ा बनावटी भी बनाया जाता है। क्योंकि दर्शक फिल्म की कहानी के साथ-साथ उसकी भावनाओं और घटनाओं में भी डूबा हुआ है, इसलिए उसे छोटी-छोटी बारीकियों का पता नहीं चल पाता।
मान लीजिए कि आपको अपने विद्यालय पर एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनानी है। इस तरह की फ़िल्म में आप किस तरह के दृश्यों को चित्रित करेंगे? फ़िल्म बनाने से पहले और बना समय किन बातों पर ध्यान देंगे?
विद्यालय पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने के लिए मैं निम्नलिखित प्रकार के दृश्य चित्रित करूँगा/ करूंगी :
(क) विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ पुस्तकालय, प्रांगण, खेल का मैदान, संगीत कक्ष, कला कक्ष, प्रयोगशाला, कैंटीन, स्पोर्ट्स-रूम, कंप्यूटर रूम आदि ।
(ख) संस्थापक और प्रधानाचार्य की जुबानी विद्यालय की जीवनी और कहानी।
(ग) दिनभर की दैनिक और विशेष गतिविधियाँ और कुछ विद्यार्थियों से सम्बंधित बातचीत।
(घ) खेल के मैदान में खेल शिक्षक की निगरानी में खेलते बच्चे।
(ङ) विद्यालय की आधारभूत संरचना उसका बाह्य और आतंरिक परिसर, दूसरे विद्यालयों से अलग सुविधाएं (यदि हैं तो)
(च) विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ विद्यालय की कक्षाएं।
(छ) सभागृह में प्रधानाचार्य द्वारा बच्चों को संबोधित करना, आस-पास तमाम शिक्षकों की उपस्थिति।
एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म में कल्पना और घटनाओं का कोई स्थान नहीं है, जिसमें वास्तविकता को वास्तविक रूप में दिखाया जाता है। यही कारण है कि, ऐसी फिल्मों के लिए लोगों, स्थानों और वास्तविक घटनाओं को विषय बनाया जाता है, इसलिए फिल्म बनाने से पहले इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि, वास्तविकता के साथ कोई छेड़छाड़ न हो और विषय को रोमांचक बनाने के लिए अतिरंजित होने के लिए कुछ भी बढ़ा चढ़ा के नही दिखाया जाना चाहिए।
पथेर पांचाली फ़िल्म में इंदिरा ठकुराइन की भूमिका निभाने वाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी ढाई साल तक काम कर सकीं। यदि आधी फ़िल्म बनने के बाद चुन्नीबाला देवी की अचानक मृत्यु हो जाती तो सत्यजित रे क्या करते? चर्चा करें।
अस्सी वर्षीय चुन्नीबाला देवी, जो फिल्म "पथेर पांचाली" में इंदिरा ठकुराइन का किरदार निभाती हैं, यदि उनकी मृत्यु हो जाती है तो, पहला विकल्प यह है कि सत्यजीत रे को चुनिबाला देवी की तरह एक और कलाकार की तलाश होती, जिसे ढूंढना लगभग असंभव होता। क्यूंकि अस्सी वर्ष की उम्र में कद-काठी प्राप्त करना आसान नहीं होता है। फिल्म के सभी दृश्यों को क्रमिक रूप से शूट किया जाता तो एकाध दृश्य काट-छांट कर उनकी सांकेतिक मृत्यु को चित्रित कर देते। मगर ऐसा करने पर कहानी ही पूरी बदलनी पड़ती और सत्यजीत रे जैसे फिल्मकार के लिए फ़िल्म की कहानी ही उसकी आत्मा होती है, इसलिए उनके लिए ये विकल्प भी असम्भव ही था। ऐसे में नए कलाकार के साथ पूरा सीन शूट करना। इस विकल्प में अतिरिक्त पैसा और समय खर्च होता है परन्तु सत्यजीत रे अपनी रचनात्मकता बचाए और बनाए रखने के लिए यही रास्ता अपनाते।
पठित पाठ के आधार पर यह कह पाना कहाँ तक उचित है कि फ़िल्म को सत्यजित रे एक कला माध्यम के रूप में देखते हैं, व्यावसायिक माध्यम के रूप में नहीं?
सत्यजीत रे फ़िल्म को एक कला माध्यम के रूप में देखते हैं, न कि एक व्यावसायिक माध्यम के रूप में।वो अपना कार्य ख़त्म करने के बाद बचा हुआ समय फ़िल्मों में लगाते थे। वह सदैव कलाकार को अहमियत देते थे।यदि किसी कलाकार को कभी फ़िल्म शूट में दिक़्क़त होती थी, तो वो कलाकार बदलते नहीं थे बल्कि वह इंतज़ार करते थेऔर स्थिति सामान्य होने के बाद कार्य आगे बढ़ाते थे। वे पूरे मन और एकाग्रता के साथ किसी दृश्य को शूट करते थे।वे आधुनिकता और बदलाव पर अधिक ध्यान न देकर वास्तविकता पर ध्यान देते थे इसलिए उन्होंने महंगे और भारी भरकम स्टूडियों की जगह प्राकृतिक जगहों पर दृश्य फिल्माया जिसने मानो फ़िल्मों में जान डाल दी है।
पाठ में कई स्थानों पर तत्सम, तद्भव, क्षेत्रीय सभी प्रकार के शब्द एक साथ सहज भाव से आए हैं। ऐसी भाषा का प्रयोग करते हुए अपनी प्रिय फ़िल्म पर एक अनुच्छेद लिखें।
मेरी पसंदीदा फिल्म बागबान है। इस फिल्म में, जब उन माता-पिता की जिम्मेदारी आती है, जो अपने बच्चों को यथासंभव जीवन की सभी सुख-सुविधाएँ प्रदान करते हैं, तो इस फ़िल्म में, जब उन बच्चों की बात आती है, तो उन्हें अपने माता-पिता का बोझ कैसा लगता है? फिल्म का निर्देशन सर्वकालिक सत्य के आधार पर किया गया है। यह फिल्म आज की युवा पीढ़ी को उनके माता-पिता के प्रति उनके कर्तव्य की याद दिलाने का प्रयास करती है।
हर क्षेत्र में कार्य करने या व्यवहार करने की अपनी निजी या विशिष्ट प्रकार की शब्दावली होती है। जैसे अपू के साथ ढाई साल पाठ में फ़िल्म से जुड़े शब्द शूटिंग, शॉट, सीन आदि । फ़िल्म से जुड़ी शब्दावली में से किन्हीं दस की सूची बनाइए।
सीन,
कंटीन्यूटी,
रिकॉर्डिंग,
प्ले-बैक सिंगर,
लाइट साउंड- कैमरा-स्टार्ट,
रोल,
ककट
मेकअप मैन,
ग्लैमर,
लोकेशन।
नीचे दिए गए शब्दों के पर्याय इस पाठ में ढूँढ़िए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-इश्तहार, खुशकिस्मती, सीन, वृष्टि, जमा
इश्तहार; विज्ञापन - नमक का विज्ञापन पसंद आया।
खुशकिस्मती; सौभाग्य - इतने पुरस्कार मिलना मेरा सौभाग्य है ।
सीन; दृश्य - घाटियों का दृश्य अद्भुत है।
वृष्टि; बारिश - बारिश में मिटटी खुसबू बहुत अच्छी लगती है।
जमा; इकट्ठा - जल को जमा करना आवश्यक है।
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