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संध्या के समय प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, कविता के आधार पर लिखिए।
संध्या के समय सूर्य की किरणें लाल रंग की हो जाती हैं। ये किरणें जब पीपल के पत्तों से होकर गुजरती हैं तो ऐसा लगता है जैसे पीपल के पत्ते ताँबे के रंग के हो गए हो। जब संध्या के समय पेड़ के पत्ते झरते है तो वह किसी झरने के समान शोभा देते हैं। संध्या के समय सूर्य के ढलने की गति इतनी तेज हो जाती है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि सूर्य पृथ्वी के भीतर ही समा गया हो। सूर्य के ढल जाने के बाद गंगा नदी का जल चितकबरा लगने लगता है।
पंत जी ने नदी के तट का जो वर्णन किया है, उसे अपने शब्दो में लिखिए।
पंत जी ने अपनी कविता में नदी के किनारे बैठी वृद्ध महिलाओं का वर्णन किया है। उन्होंने बताया है कि वे वृद्ध महिलाएँ जो नदी के किनारे बैठी हैं, वह किसी बगुले जैसी लग रही है जो शिकार के इंतजार में बैठा हो। पंत जी कहते हैं कि उन वृद्ध महिलाओं का दुख बिल्कुल नदी की बहती धारा के जैसा है। पंत जी की इस कविता में हमें बगुले और वृद्ध महिलाएँ दोनों ही देखने को मिलते है। कवि को बगुले और वृद्ध महिलाएँ इसलिए समान दिखाई पड़ते हैं क्योंकि दोनों का ही रंग सफेद होता है।
बस्ती के छोटे से गाँव के अवसाद को किन-किन उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है?
बस्ती के छोटे से गाँव के अवसाद को निम्नलिखत उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है-
(क) गाँव के घरों में रोशनी पाने के लिए डिबरी का उपयोग किया जाता है, इससे रोशनी से ज्यादा धुआँ प्राप्त होता है।
(ख) लोगों के मन का अवसाद उनकी आँखों में जालों के रूप में रहता है।
(ग) गाँव के लोगों की निराशा दीपक की लौ जैसी होती है।
(घ) गाँव के बनिया ग्राहकों का इंतज़ार करते रह जाते हैं।
लाला के मन में उठनेवाली दुविधा को अपने शब्दों में लिखिए।
लाला हमेशा यही सोचता रहता है कि उसे ही इतने दुख क्यों मिलते हैं? वह खुशी और आराम के साथ अपनी जिंदगी क्यों नहीं व्यतीत कर पाता है? उसके पास अपने परिवार वालों को देने के लिए एक अच्छा घर भी नहीं है ऐसा क्यों? वह शहरों के बनियों कि तरह सफल क्यों नहीं है? वह सोचता है कि आखिर किसने उसकी सफलता को रोक रखा है? लाला को यह लगता है कि उसकी उन्नति को रोकने वाला कोई कारण जरूर है। वह यह भी सोचता है कि उसका समय और भाग्य ही उसका साथ नहीं देते हैं। यही सब लाला के मन की दुविधाएं हैं।
सामाजिक समानता की छवि की कल्पना किस तरह अभिव्यक्त हुई है?
सामाजिक समानता की छवि की कल्पना निम्नलिखित तरह अभिव्यक्त हुई है-
1. कर्म और गुण के जैसे ही सकल आय-व्यय का वितरण होना चाहिए।
2. सामूहिक जीवन का निर्माण किया जाए।
3. समाज को धन का उत्तराधिकारी बनाया जाए।
4. सभी व्याप्त वस्त्र, भोजन तथा आवास के अधिकारी हो।
5. श्रम सब में समान रूप से बंटे।
‘कर्म और गुण के समान……….. हो वितरण’ पंक्ति के माध्यम से कवि कैसे समाज की ओर संकेत कर रहा है?
प्रस्तुत पंक्ति में, कवि समाज में समानता के अधिकार की कल्पना कर रहा है जहाँ किसी भी प्रकार का वितरण मनुष्य के कार्यों और गुणों पर आधारित होना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को उसके काम करने की क्षमता के आधार पर काम दिया जाए। जिसे वो भली भाँति कर सके और खुद के लिए अच्छी आमदनी कर सके। इससे समाज में गरीबी दूर होगी और समाज मजबूत बनेगा। समाजवाद के मूल गुण वो होते है जिसमें किसी एक वर्ग को आय व्यय का अधिकार नहीं हो। समान अधिकार से सभी को रोजगार के अवसर प्राप्त कराया जाए।
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