NCERT Solution for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 28: Rambriksh Benipuri

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Rambriksh Benipuri

Question 1 :

खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?

 

Answer :

बालगोबिन भगत एक गृहस्थ थे परन्तु उनमें साधु कहलाने वाले गुण भी थे –
(1) कबीर के आर्दशों पर चलते थे, उन्हीं के गीत गाते थे। वे शरीर को नश्वर तथा आत्मा को परमात्मा का अंश मानते थे।
(2) कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे।
(3) किसी से भी सीधी बात करने में संकोच नहीं करते थे,न किसी से झगड़ा करते थे।
(4) किसी की चीज़ नहीं छूते थे न ही बिना पूछे व्यवहार में लाते थे। वे किसी दूसरे की चीज़ नहीं लेते थे।
(5) उनके खेत में जो कुछ पैदा होता उसे एक कबीरपंथी मठ में ले जाते और उसमें से जो हिस्सा ‘प्रसाद’ रूप में वापस मिलता, वे उसी से गुज़ारा करते।
(6) उनमें लालच बिल्कुल भी नहीं था। इस प्रकार वे अपना सब कुछ इश्वर को समर्पित कर देते थे।

 


Question 2 :

भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?

Answer :

भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहती थी क्योंकि भगत के बुढ़ापे का वह एकमात्र सहारा थी। पुत्रवधू को इस बात की चिंता थी कि यदि वह भी चली गयी, तो भगत के लिए भोजन कौन बनाएगा। यदि भगत बीमार हो गए, तो उनकी सेवा-शुश्रूषा कौन करेगा। उसके चले जाने के बाद भगत की देखभाल करने वाला और कोई नहीं था।

 


Question 3 :

भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?

Answer :

बेटे की मृत्यु पर भगत ने पुत्र के शरीर को एक चटाई पर लिटा दिया, उसे सफेद चादर से ढक दिया तथा वे कबीर के भक्ति गीत गाकर अपनी भावनाएँ व्यक्त करने लगे। उनके अनुसार आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहनि अपने प्रेमी से जा मिली। उन दोनों के मिलन से बड़ा आनंद और कुछ नहीं हो सकता। इस प्रकार भगत ने शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता का भाव व्यक्त किया।

 


Question 4 :

भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।

Answer :

बालगोबिन भगत का व्यक्तित्व :
भगतजी गृहस्थ होते हुए भी सीधे-साधे भगत थे। उनका अचार-व्यवहार इतना पवित्र और आदर्शपूर्ण था कि वे गृहस्थ होते हुए भी वास्तव में संन्यासी थे। वे अपने किसी काम के लिए दूसरों को कष्ट नहीं देना चाहते थे। बिना अनुमति के किसी की वस्तु को हाथ नहीं लगाते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और खरा व्यवहार रखते। कबीर के आर्दशों का पालन करते थे। वे तो अलौकिक संगीत के ऐसे गायक थे कि कबीर के पद उनके कंठ से निकलकर सजीव हो उठते थे। आत्मा परमात्मा पर उनका इतना अटल विश्वास था भगतजी का वैराग्य तथा निःस्वार्थ व्यक्तित्व का परिचय इस बात से भी मिलता है जब वे अपने बेटे के श्राद्ध की अवधी पूरी होते ही अपने पुत्रवधू को उसकी पिता के घर भेज दिया तथा उसका दूसरा विवाह कर देने का आदेश दिया।
बालगोबिन भगत की वेशभूषा : बालगाबिन भगत मँझोले कद के गारेचिट्टे आदमी थे। साठ से ऊपर के ही होंगे। बाल पक गए थे। लंबी दाढी या जटाजूट तो नहीं रखते थे, किंतु हमेशा उनका चेहरा सफ़ेद बालों से ही जगमग किए रहता। कपड़े बिलकुल कम पहनते। कमर में एक लंगोटी-मात्र और सिर में कबीरपंथियों की-सी कनफटी टोपी। जब जाड़ा आता, एक काली कमली ऊपर से ओढे रहते। मस्तक पर हमेशा चमकता हुआ रामानंदी चंदन, जो नाक के एक छोर से ही, औरतों के टीके की तरह, शुरू होता। गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बाँधे रहते।

 


Question 5 :

बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?

Answer :

बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण इसलिए बन गई थी क्योंकि वे जीवन के सिद्धांतों और आदर्शों का अत्यंत गहराई से पालन करते हुए उन्हें अपनेआचरण में उतारते थे। वृद्ध होते हुए भी उनकी स्फूर्ति में कोई कमी नहीं थी। सर्दी के मौसम में भी, भरे बादलों वाले भादों की आधी रात में भी वे भोर में सबसे पहले उठकर गाँव से दो मील दूर स्थित गंगा स्नान करने जाते थे, खेतों में अकेले ही खेती करते तथा गीत गाते रहते। विपरीत परिस्थिति होने के बाद भी उनकी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आता था। एक वृद्ध में अपने कार्य के प्रति इतनी सजगता को देखकर लोग दंग रह जाते थे।

 


Question 6 :

पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।

Answer :

बालगोबिन भगत के गीतों में एक विशेष प्रकार का आकर्षण था। कबीर के पद उनके कंठ से निकलकर सजीव हो उठते थे। खेतों में जब वे गाना गाते तो स्त्रियों के होंठ बिना गुनगुनाए नहीं रह पाते थे। गर्मियों की शाम में उनके गीत वातावरण में शीतलता भर देते थे। उनके गीतों में जादुई प्रभाव था संध्या समय जब वे अपनी मंडली समेत गाने बैठते तो उनके द्वारा गाए पदों को उनकी मंडली दोहराया करती थी, भगत के स्वर के आरोह के साथ श्रोताओं का मन भी ऊपर उठता चला जाता और लोग अपने तन-मन की सुध-बुध खोकर संगीत की स्वर लहरी में ही तल्लीन हो जाते।


Question 7 :

कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।

Answer :

बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे ये बातें निम्न उदहारण द्वारा पता चलती है –
1) बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु हो गई, तो उन्होंने सामाजिक परंपराओं के अनुरूप अपने पुत्र का क्रिया-कर्म नहीं किया। उन्होंने कोई तूल न करते हुए बिना कर्मकांड के श्राद्ध-संस्कार कर दिया।
2) बेटे की मृत्यु के समय सामान्य लोगों की तरह शोक करने की बजाए भगत ने उसकी शैया के समक्ष गीत गाकर अपने भाव प्रकट किए।
3) बेटे के क्रिया-कर्म में भी उन्होंने सामाजिक रीति-रिवाजों की परवाह न करते हुए अपनी पुत्रवधू से ही दाह संस्कार संपन्न कराया।
4) समाज में विधवा विवाह का प्रचलन न होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी पुत्रवधू के भाई को बुलाकर उसकी दूसरी शादी कर देने को कहा।
5) अन्य साधुओं की तरह भिक्षा माँगकर खाने के विरोधी थे।

 


Question 8 :

धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं ? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।

Answer :

आषाढ़ की रिमझिम फुहारों के बीच खेतों में धान की रोपाई चल रही थी। बादल से घिरे आसमान में, ठंडी हवाओं के चलने के समय अचानक खेतों में से किसी के मीठे स्वर गाते हुए सुनाई देते हैं। बालगोबिन भगत के कंठ से निकला मधुर संगीत वहाँ खेतों में काम कर रहे लोगों के मन में झंकार उत्पन्न करने लगा। स्वर के आरोह के साथ एक-एक शब्द जैसे स्वर्ग की ओर भेजा जा रहा हो। उनकी मधुर वाणी को सुनते ही लोग झूमने लगते हैं, स्त्रियाँ स्वयं को रोक नहीं पाती है तथा अपने आप उनके होंठ काँपकर गुनगुनाते लगते हैं। हलवाहों के पैर गीत के ताल के साथ उठने लगे। रोपाई करने वाले लोगों की उँगलियाँ गीत की स्वरलहरी के अनुरूप एक विशेष क्रम से चलने लगीं बालगोबिन भगत के गाने से संपूर्ण सृष्टि मिठास में खो जाती है।


रचना और अभिव्यक्ति

Question 1 :

पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?

Answer :

बालगोबिन भगत द्वारा कबीर पर श्रद्धा निम्नलिखित रुपों में प्रकट हुई है –
(1) कबीर गृहस्थ होकर भी सांसारिक मोह-माया से मुक्त थे। उसी प्रकार बाल गोबिन भगत ने भी गृहस्थ जीवन में बँधकर भी साधु समान जीवन व्यतीत किया।
(2) कबीर के अनुसार मृत्यु के पश्चात् जीवात्मा का परमात्मा से मिलन होता है। बेटे की मृत्यु के बाद बाल गोबिन भगत ने भी यही कहा था। उन्होंने बेटे की मृत्यु पर शोक मानने की बजाए आनंद मनाने के लिए कहा था।
(3) भगतजी ने अपनी फसलों को भी ईश्वर की सम्पत्ति माना। वे फसलों को कबीरमठ में अर्पित करके प्रसाद रूप में पाई फसलों का ही उपभोग करते थे। कबीर के विचार भी कुछ इस प्रकार के ही थे –
“साई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाए।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाए।
(4) पहनावे में भी वे कबीर का ही अनुसरण करते थे।
(5) कबीर गाँव-गाँव, गली-गली घूमकर गाना गाते थे, भजन गाते थे। बाल गोबिन भगत भी इससे प्रभावित हुए। कबीर के पदों को वे गाते फिरते थे।
(6) बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को कबीर की तरह ही नहीं मानते थे।


Question 2 :

आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?

Answer :

बालगोबिन भगत कबीर पर अगाध श्रद्धा रखते थे क्योंकि कबीर ने सामाजिक कुप्रथाओं का विरोध कर समाज को एक नई दृष्टि प्रदान की, उन्होंने मूर्तिपूजा का खंडन किया तथा समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव का विरोध कर समाज को एक नई दिशा की ओर अग्रसर किया। उन्हें कबीर की साफ़ आव़ाज और कबीर का आडम्बरों से रहित सादा जीवन में सच्चाई नज़र आई होगी यही सच्चाई उनके ह्रदय में बैठ गई होगी। कबीर की इन्हीं विशेषताओं ने बालगोबिन भगत के मन को प्रभावित किया होगा। दोनों के विचार भी एक दूसरे से मिलते थे।


Question 3 :

गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?

Answer :

भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ के गाँव कृषि पर आधारित हैं। वर्षा भी आषाढ़ मास में ही शुरू होती है। आषाढ़ की रिमझिम बारिश में भगत जी अपने मधुर गीतों को गुनगुनाकर खेती करते हैं। उनके इन गीतों के प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि रम जाती है, स्त्रियाँ भी इससे प्रभावित होकर गाने लगती हैं। बच्चे भी वर्षा का आनन्द लेते हैं। किसान भी अच्छी फसल की आशा में हर्ष से भर उठते हैं। इसी लिए गाँव का परिवेश उल्लास से भर जाता है।


Question 4 :

“ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किनआधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?

Answer :

मेरे अनुसार एक साधु की पहचान उसके पहनावे के साथ-साथ उसके आचार-व्यवहार तथा इसकी जीवन प्रणाली पर भी आधारित होती है। सच्चा साधु हमेशा, मोह माया, आडम्बरयुक्त जीवन, लालच आदि दुर्गुणों से दूर रहता है। साधु को हमेशा दूसरों की सहायता करता है। साधु का जीवन सादगीपूर्ण तथा सात्विक होता है। उसके मन में केवल ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति होती है।


Question 5 :

मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?

Answer :

मोह और प्रेम में निश्चित अंतर होता है मोह में मनुष्य केवल अपने स्वार्थ की चिंता करता प्रेम में वह अपने प्रियजनों का हित देखता है भगत को अपने पुत्र तथा अपनी पुत्रवधू से अगाध प्रेम था। परन्तु उसके इस प्रेम ने प्रेम की सीमा को पार कर कभी मोह का रुप धारण नहीं किया। दूसरी तरफ़ वह चाहते तो मोह वश अपनी पुत्रवधू को अपने पास रोकसकते थे परन्तु उन्होंने अपनी पुत्रवधू को ज़बरदस्ती उसके भाई के साथ भेजकर उसके दूसरे विवाह का निर्णय किया।इस घटना द्वरा उनका प्रेम प्रकट होता है। बालगोबिन भगत ने भी सच्चे प्रेम का परिचय देकर अपने पुत्र और पुत्रवधू की खुशी को ही उचित माना।।

 


भाषा-अध्ययन

Question 1 :

इस पाठ में आए कोई दस क्रिया विशेषण छाँटकर लिखिए और उसके भेद भी बताइए

Answer :

(1) धीरे-धीरे – धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगा। (रीतिवाचक क्रियाविशेषण)
(2) जब-जब – वह जब-जब सामने आता। (कालवाचक क्रियाविशेषण)
(3) थोडा – थोडा बुखार आने लगा। (परिमाणवाचक क्रियाविशेषण)
(4) उस दिन भी संध्या – उस दिन भी संध्या में गीत गाए। (कालवाचक क्रियाविशेषण)
(5) बिल्कुल कम – कपडे बिल्कुल कम पहनते थे। (परिमाणवाचक क्रियाविशेषण)
(6) सवेरे ही – इन दिनों सवेरे ही उठते थे। (कालवाचक क्रियाविशेषण)
(7) हरवर्ष – हरवर्ष गंगा स्नान करने के लिए जाते। (कालवाचक क्रियाविशेषण)
(8) दिन-दिन – वे दिन-दिन छिजने लगे। (कालवाचक क्रियाविशेषण)
(9) हँसकर -हँसकर टाल देते थे। (रीतिवाचक क्रियाविशेषण)
(10) जमीन पर – जमीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं। (स्थानवाचक क्रियाविशेषण)

 


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