"Mata ka Anchal" is a poignant chapter in the Class 10 Hindi curriculum, focusing on the themes of maternal love, sacrifice, and the deep emotional bond between a mother and her child. The story often emphasizes the protective nature of a mother, symbolized through her "anchal" (the pallu of a saree), which represents her warmth, care, and nurturing spirit.
Students can access the NCERT Solutions for Class 10 Hindi chapter 15 – Mata ka Anchal. Curated by experts according to the CBSE syllabus for 2023–2024, these step-by-step solutions make Hindi much easier to understand and learn for the students. These solutions can be used in practice by students to attain skills in solving problems, reinforce important learning objectives, and be well-prepared for tests.
पाठ पढ़ते-पढ़तेआपको भी अपनेमाता-कपता का लाड-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओोंको डायरी मेंअोंककत कीकजए।
मुझेभी मेरेबचपन की एक घटना याद आ रही ांहै।
मैंआाँगन मेंखेल रहा था कु छ बच्चेंपत्थर सेपेड पर फाँ सी पतांग वनकालनेका प्रयास कर रहेथे। एक पत्थर मुझेआाँख पर लगा। मैंजोरोांसेरोनेलगा। मुझेपीडा सेरोता हुआ देखकर मााँभी रोने लगी वफर मााँऔर वपता जी मुझेडॉक्टर के पास लेगए। डॉक्टर नेजब कहा डरनेकी बात नही ांहै तब दोनोांकी जान मेंजान आई।
प्रस्तुत पाठ केआधार पर यह कहा जा सकता हैकक बच्चेका अपनेकपता सेअकधक जुडाव था, किर भी कवपदा के समय वह कपता केपास न जाकर मााँकी शरण लेता है। आपकी समझ सेइसकी क्या वजह हो सकती है?
बच्चेको हृदयस्पर्शी स्नेह की पहचान होती है। बच्चेको विपदा के समय अत्याविक ममता और स्नेह की आिश्यकता थी। भोलानाथ का अपनेवपता सेअपार स्नेह था पर जब उस पर विपदा आई तो उसेजो र्शाांवत ि प्रेम की छाया अपनी मााँकी गोद मेंजाकर वमली िह र्शायद उसेवपता से प्राप्त नही ांहो पाती। मााँके आाँचल मेंबच्चा स्वयां को सुरवित महसूस करताहै।
आपके कवचार सेभोलनाथ अपनेसाकथयोोंको देखकर कससकना क्यो ोंभूल जाता है?
भोलानाथ भी बच्चेकी स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चोांके साथ खेलनेमें रूवच लेता है। उसेअपनी वमत्र मांडली के साथ तरह-तरह की क्रीडा करना अच्छा लगता है। िे उसके हर खेल ि हुदगड के साथी हैं। अपनेवमत्रोांको मजा करतेदेख िह स्वयां को रोक नही ांपाता। इसवलए रोना भूलकर िह दुबारा अपनी वमत्र मांडली मेंखेल का मजा उठानेलगता है। उसी मग्नािस्था मेंिह वससकना भी भूल जाता है।
आपनेदेखा होगा कक भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खातेसमय ककसी न ककसी प्रकार की तुकबोंदी करतेहैं। आपको यकद अपनेखेलो ोंआकद सेजुडी तुकबोंदी याद हो तो कलखखए।
मुझेभी अपनेबचपन के कु छ खेल और एक – आि तुकबन्दियााँयाद हैं:-
1. १ अटकन – बटकन दही चटाके ।
2. बनफू ल बांगाले।
3. २ अक्कड – बक्कड बम्बेबो,
4. अस्सी नब्बेपूरेसौ।
भोलनाथ और उसके साकथयो ोंकेखेल और खेलनेकी सामग्री आपके खेल और खेलनेकी सामग्री सेककस प्रकार कभन्न है?
भोलानाथ ि उसके साथी खेल केवलए आाँगन ि खेतोांपर पडी चीजोांको ही अपनेखेल का आिार बनातेहैं। उनके वलए वमट्टी के बततन, पत्थर, पेडोांके पत्ते, गीली वमट्टी, घर के समान आवद िस्तुएाँहोती थी वजनसेिह खेलतेि खुर्श होते। आज जमाना बदल चुका है। आज माता-वपता अपने बच्चोांका बहुत ध्यान रखतेहैं। िेबच्चोांको बेवफक्र खेलने-घूमनेकी अनुमवत नही ांदेते। हमारेखेलने केवलए आज वक्रके ट का सामान, वभन्न-वभन्न तरह के िीवडयो गेम ि कम्प्यूटर गेम आवद बहुत सी चीजेंहैंजो इनकी तुलना मेंबहुत अलग हैं। भोलानाथ जैसेबच्चोांकी िस्तुएाँसुलभता सेि वबना मूल्य खचतवकए ही प्राप्त हो जाती हैंपरन्तुआज खेल सामग्री स्ववनवमतत न होकर बाजार सेखरीदनी पडती है। आज के युग मेंखेलनेकी समय-सीमा भी तय कर ली जाती है। अतः आज खेल में स्वच्छां दता नही ांहोती है।
पाठ मेंआए ऐसेप्रसोंगो ोंका वणणन कीकजए जो आपके कदल को छूगए हो ों?
पाठ मेंऐसेकई प्रसांग आए हैंवजन्ोांनेमेरेवदल को छूवलए –
1. रामायण पाठ कर रहेअपनेवपता के पास बैठा हुआ भोलानाथ का आईनेमेंअपनेको देखकर खुर्श होना और जब उसके वपताजी उसेदेखतेहैंतो लजाकर उसका आईना रख देनेकी अदा बडी यारी लगती है।
2. बच्चेका अपनेवपता के साथ कु श्ती लडना। वर्शवथल होकर बच्चेके बल को बढािा देना और पछाड खा कर वगर जाना। बच्चेका अपनेवपता की मूांछ खी ांचना और वपता का इसमेंप्रसन्न होना बडा ही आनिमयी प्रसांग है।
3. बच्चोांद्वारा बारात का स्वाांग रचतेहुए समिी का बकरेपर सिार होना। दुल्हन को वलिा लाना ि वपता द्वारा दुल्हन का घूाँघट उठानेनेपर सब बच्चोांका भाग जाना, बच्चोांके खेल में समाज के प्रवत उनका रूझान झलकता हैतो दू सरी और उनकी नाटकीयता, स्वाांग उनका बचपना।
4. कहानी के अन्त मेंभोलानाथ का मााँके आाँचल मेंवछपना, वससकना, मााँकी वचांता, हल्दी लगाना, बाबूजी के बुलानेपर भी मन की गोद न छोडना ममतस्पर्शी दृश्य उपन्दस्थत करता है; अनायास मााँकी याद वदला देता है।
इस उपन्यास अोंश मेंतीस के दशक की ग्राम्य सोंस्कृ कत का कचत्रण है। आज की ग्रामीण सोंस्कृ कत मेंआपको ककस तरह केपररवतणन कदखाई देतेहैं।
१. गााँिोांमेंहरेभरेखेतोांके बीच िृिोांके झुरमुट और ठां डी छाांिोांसेवघरा कच्ची वमट्टी एिां छान का घर हुआ करता था आज ज्यादा तर गााँिोांमेंपक्के मकान ही देखनेवमलतेहै।
२. पहलेगााँिोांमेंभरेपूरेपररिार होतेथे। आज एकल सांस्कृ वत नेजन्म वलया है।
३. अब गााँि मेंभी विज्ञान का प्रभाि बढता जा रहा है; जैसे– लालटेन के स्थान पर वबजली, बैल के स्थान पर टरैक्टर का प्रयोग, घरेलूखाद के
स्थान पर बाजार मेंउपलब्ध कृ वत्रम खाद का प्रयोग तथा विदेर्शी दिाइयोांका प्रयोग वकया जा रहा है।
४. पहलेकी तुलना मेंअब वकसानोां(खेवतहर मजदू रोां) की सांख्या घट रही है।
५. पहलेगााँि मेंलोग बहुत ही सीिा-सादा जीिन व्यतीत करतेथे। आज बनािटीपन देखनेवमलता है।
यहााँमाता-कपता का बच्चेकेप्रकत जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसेअपनेशब्ो ोंमेंकलखखए।
माता का अाँचल मेंमाता-वपता के िात्सल्य का बहुत सरस और मनमोहक िणतन हुआ है। इसमेंलेखक नेअपनेर्शैर्शि काल का िणतन वकया है।
भोलानाथ केवपता के वदन का आरम्भ ही भोलानाथ के साथ र्शुरू होता है। उसेनहलाकर पूजा पाठ कराना, उसको अपनेसाथ घूमानेलेजाना, उसके साथ खेलना ि उसकी बालसुलभ क्रीडा सेप्रसन्न होना, उनके स्नेह ि प्रेम को व्यक्त करता है।
भोलानाथ की माता िात्सल्य ि ममत्व सेभरपूर माता है। भोलानाथ को भोजन करानेकेवलए उनका वभन्न-वभन्न तरह सेस्वाांग रचना एक स्नेही माता की ओर सांके त करता है। जो अपनेपुत्र के भोजन को लेकर वचन्दन्तत है।
दू सरी ओर उसको लहुलुहान ि भय सेकााँपता देखकर मााँभी स्वयां रोनेि वचल्लानेलगती है। अपने पुत्र की ऐसी दर्शा देखकर मााँकाह्रदय भी दुखी हो जाता है। मााँका ममतालुमन इतना भािुक हैवक
िह बच्चेको डर के मारेकााँपता देखकर रोनेलगती है। उसकी ममता पाठक को बहुत प्रभावित करती है।
माता का अाँचल शीर्णक की उपयुक्तता बतातेहुए कोई अन्य शीर्णक सुझाइए।
लेखक नेइस कहानी के आरम्भ मेंवदखाया हैवक भोलानाथ का ज्यादा सेज्यादा समय वपता के साथ बीतता है। कहानी का र्शीर्तक पहलेतो पाठक को कु छ अटपटा-सा लगता हैपर जैसे- जैसेकहानी आगेबढती हैबात समझ मेंआनेलगती है। इस कहानी मेंमााँके आाँचल की साथतकता को समझानेका प्रयास वकया गया है। भोलानाथ को माता ि वपता दोनोांसेबहुत प्रेम वमला है। उसका वदन वपता की छत्रछाया मेंही र्शुरू होता है। वपता उसकी हर क्रीडा मेंसदैि साथ रहतेहैं, विपदा होनेपर उसकी रिा करतेहैं।
परन्तुजब िह सााँप सेडरकर माता की गोद मेंआता हैऔर माता की जो प्रवतवक्रया होती है, िैसी प्रवतवक्रया या उतनी तडप एक वपता मेंनही ांहो सकती।माता उसके भय सेभयभीत है, उसके दु:ख सेदुखी है, उसके आाँसूसेन्दखन्न है। िह अपनेपुत्र की पीडा को देखकर अपनी सुिबुि खो देती है। िह बस इसी प्रयास मेंहैवक िह अपनेपुत्र की पीडा को समाप्त कर सके । मााँका यही प्रयास उसके बच्चेको आत्मीय सुख ि प्रेम का अनुभि कराता है। उसके बाद तो बात र्शीर्शेकी तरह साफ़ हो जाती हैवक पाठ का र्शीर्तक ‘माता का आाँचल’ क्ोांउवचत है। पूरेपाठ मेंमााँकी ममता ही प्रिान वदखती है, इसवलए कहा जा सकता हैवक पाठ का र्शीर्तक सितथा उवचत है। इसका अन्य र्शीर्तक हो सकता है– ‘मााँकी ममता’।
बच्चेमाता-कपता के प्रकत अपनेप्रेम को कै सेअकभव्यक्त करतेहैं?
बच्चेमाता-वपता के प्रवत अपनेप्रेम की अवभव्यन्दक्त कई तरह सेकरतेहैं– १. माता-वपता के साथ विवभन्न प्रकार की बातेंकरके अपना यार व्यक्त करतेहैं। २. माता-वपता को कहानी सुनानेया कही ांघुमानेलेजानेकी या अपनेसाथ खेलनेको कहकर।
३. िेअपनेमाता-वपता सेरो-िोकर या वजद करके कु छ मााँगतेहैंऔर वमल जानेपर उनको विवभन्न तरह सेयार करतेहैं।
४. माता-वपता के साथ नाना-प्रकार के खेल खेलकर।
५. माता-वपता की गोद मेंबैठकर या पीठ पर सिार होकर।
६. माता-वपता के साथ रहकर उनसेअपना यार व्यक्त करतेहैं।
इस पाठ मेंबच्चो ोंकी जो दुकनया रची गई हैवह आपकेबचपन की दुकनया सेककस तरह कभन्न है?
प्रस्तुत पाठ मेंबच्चोांकी जो दुवनया रची गई हैउसकी पृष्ठभूवम पूणततया ग्रामीण जीिन पर आिाररत है। प्रस्तुत कहानी तीस के दर्शक की है। तत्कालीन समय मेंबच्चोांके पास खेलन-कू दने का अविक समय हुआ करता था। उनपर पढाई करनेका आज वजतना दबाि नही ांथा। येअलग बात हैवक उस समय उनके पास खेलनेके अविक सािन नही ांथे। िेलोग अपनेखेल प्रकृ वत सेही प्राप्त करतेथेऔर उसी प्रकृ वत के साथ खेलतेथे। उनके वलए वमट्टी, खेत, पानी, पेड, वमट्टी के बततन आवद सािन थे। आज तीन िर्तकी उम्र होतेही बच्चोांको नसतरी मेंभती करा वदया जाता है। आज के बच्चेविवडयो गेम, टी.िी., कम्प्यूटर, र्शतरांज आवद खेलनेमेंलगेरहतेहैंया वफर वक्रके ट, फु टबॉल, हॉकी, बेडवमण्टन या काटूतन आवद मेंही अपना समय बीता देतेहैं।
िणीश्वरनाथ रेणुऔर नागाजुणन की आाँचकलक रचनाओोंको पकढ़ए।
१ फणीश्वरनाथ रेणुका उपन्यास ‘मैला आाँचल’ पठनीय है।
२ नागाजुतन का उपन्यास ‘बलचनमा’ आाँचवलक है।
‘माता का अाँचल’ पाठ मेंभोलानाथ के कपता की कदनचयाणका वणणन करतेहुए आज के एक सामान्य व्यखक्त की कदनचयाणसेउसकी तुलना कीकजए।
‘माता का अाँचल’ पाठ मेंिवणतत भोलानाथ के वपता की वदनचयातके बारेमेंयह पता चलता हैवक िेसुबह जल्दी उठतेऔर नहा-िोकर पूजा-पाठ पर बैठ जातेथे। िेअकसर बालक भोलानाथ (अपनेपुत्र) को भी अपनेसाथ वबठा वलया करतेथे। िेप्रवतवदन रामायण का पाठ करतेथे। पूजा के समय िेभोलानाथ को भभूत सेवतलक लगा देतेथे। पूजा-पाठ के उपराांत िेरामनामी बही पर एक हजार बार राम-राम वलखतेथेऔर अपनी पाठ करनेकी पोथी मेंरख लेतेथे। इसके उपराांत िेपााँच सौ बार कागज के टुकडेपर राम-राम वलखतेऔर उन्ी ांकागजोांपर आटेकी छोटी-छोटी गोवलयााँ रखकर लपेटते। उन गोवलयोांको लेकर िेगांगा जी के तट पर जातेऔर अपनेहाथोांसेमछवलयोांको न्दखला देतेथे। इस समय भी भोलानाथ उनके साथ ही हुआ करता था। आज के आम आदमी की सुबह इस सुबह की वदनचयातसेइसवलए वभन्न हैक्ोांवक आज इस भौवतकिादी युग मेंिन-दौलत के पीछेलगी भागम-भाग के कारण आम आदमी के पास इतना समय ही नही ांहै।
कचकडया उडाते-उडातेभोलानाथ और उसके साकथयो ोंनेचूहेके कबल मेंपानी डालना शुरू ककया। इस घटना का केया पररणाम कनकला?
खेल सेवचवडयोांको उडानेके बाद भोलानाथ और उसके साथी को चूहोांके वबल मेंपानी डालनेका ध्यान आया। सभी नेएक टीलेपर जाकर चूहोांके वबल मेंपानी उलीचनी र्शुरू वकया। पानी नीचेसेऊपर फें कना था। यह कायतकरतेहुए सभी थक गए थे। तभी उनकी आर्शा केविपरीत चूहेके स्थान पर सााँप वनकल आया, सााँप सेभयभीत होकर सभी रोतेवचल्लातेबेतहार्शा भागनेलगे। कोई औिा वगरा, कोई सीिा। वकसी का वसर फू टा, वकसी का दााँत टू टा। सभी भागतेही जा रहेथे। भोलानाथ की देह लहू-लुहान हो गई। पैरोांके तलिेमेंअनेक कााँटेचुभ गए थे।
‘माता का अाँचल’ पाठ मेंवकणणत समय मेंगााँवो ोंकी खिकत और वतणमान समय मेंगााँवो ोंकी खिकत मेंआए पररवतणन को स्पष्ट कीकजए।
पहलेगााँिोांकी न्दस्थवत बहुत अच्छी न थी। िहााँवबजली, पानी, पररिहन जैसी सुवििाएाँनाम मात्र की थी। लोगोांकी आजीविका का सािन कृ वर् थी। आज गााँिोांमेंटेलीविजन के प्रचार-प्रसार से लोगोांमेंएकाकी प्रिृवत्त बढी है। बच्चेपरांपरागत खेलोांसेविमुख होकर िीवडयोगेम, टेलीविजन आवद के साथ अपना समय वबताना चाहतेहैं। इस बढती आिुवनकता नेग्रामीण सांस्कृ वत को पतन की ओर उन्मुख कर वदया है।
कपता भलेही बच्चेसेककतना लगाव रखेपर मााँअपनेहाथ सेबच्चेको खखलाए कबना सोंतुष्ट नही ोंहोती है- ‘माता का अाँचल’ पाठ केआधार पर स्पष्ट कीकजए।
भोलानाथ केवपता भोलानाथ को अपनेसाथ रखते, घुमाते-वफराते, गांगा जी लेजाते। िे भोलानाथ को अपनेसाथ चौके मेंवबठाकर न्दखलातेथे। उनके हाथ सेभोजनकर जब भोलानाथ का पेट भर जाता तब उनकी मााँथोडा और न्दखलानेका हठ करती। िेबाबूजी सेपेट भर न न्दखलानेकी वर्शकायत करती और कहती-देन्दखए मैंन्दखलाती हूाँ। मााँके हाथ सेखानेपर बच्चोांका पेट भरता है। यह कहकर िह थाली मेंदही-भात वमलाती थी और अलग-अलग तोता-मैना, हांस-कबूतर आवद पवियोांके बनािटी नाम लेकर भोजन का कौर बनाती तथा उसेन्दखलातेहुए यह कहती वक खालो नही ांतो येपिी उड जाएाँ गे। इस तरह भोजन जल्दी सेभरपेट खा वलया करता था।
बच्चेरोना-धोना, पीडा, आपसी झगडेज्यादा देर तक अपनेसाथ नही ोंरख सकतेहैं। माता के अाँचल’ पाठ केआधार पर बच्चोोंकी स्वाभाकवक कवशेर्ताएाँकलखखए।
बच्चेमन के सच्चेहोतेहैं। िेआपसी झगडे, रोना-िोना, कष्ट की अनुभूवत आवद वजतनी जल्दी करतेहैंउतनी ही जल्दी भूल जातेहैं। िेआपस मेंवफर इस तरह घुल-वमल जातेहैं, जैसेकु छ हुआ ही न हो। ‘माता का अाँचल’ पाठ मेंबच्चोांके सरल तथा वनश्छल स्वभाि का पता चलता है। िे लडाई-झगडेकी कटुता को अविक देर तक अपनेमन मेंनही ांरख सकतेहैं। खेल-खेल मेंरो देना या हाँस देना उनकेवलए आम बात है। अपनेमनोरांजन केवलए िेवकसी को वचढानेसे। भी नही ां चूकतेहैं। सुख-दुख सेबेपरिाह हो िेअपनी ही दुवनया मेंमगन रहतेहैं।
मूसन कतवारी को बैजूनेकचढ़ाया था, पर उसकी सजा भोलानाथ को भुगतनी पडी, ‘माता का अाँचल’ पाठ केआधार पर स्पष्ट कीकजए।
एक वदन भोलानाथ और उसके साथी बाग सेआ रहेथेवक उन्ेंमूसन वतिारी (गुरु जी) वदखाई वदए। उन्ेंकम वदखई पडता था। सावथयोांमेंसेढीठ बैजूनेउन्ेंवचढातेहुए कहा ‘बुढिा बेईमान मााँगेकरेला का चोखा ।’ गुरु जी को वचढाकर सभी बच्चेघर की ओर भागनेलगे। गुरु जी बच्चोांको पकडनेकेवलए भागेपर बच्चेहाथ न आए। िेपाठर्शाला चलेगए। पाठर्शाला सेचार बच्चे भोलानाथ और बैजूको पकडनेके वलए घर आ गए। र्शरारती बैजूतथा अन्य बच्चेभाग गए पर भोलानाथ को गुरु जी केवर्शष्य पकडकर पाठर्शाला लेगए। वजन बच्चोांनेगुरु जी को वचढाया था, उनके साथ रहनेके कारण उन्ोांनेभोलानाथ को दांवडत वकया।
भोलानाथ और उसके साथी खेल ही खेल मेंदावत की योजना ककस तरह बना लेतेथे?
भोलानाथ और उसके साथी खेलते-खेलतेभोजन बनानेकी योजना बना लेते। वफर िेसब भोजन बनानेके उपक्रम मेंजुट जातेघडेके मुाँह का चूल्हा बनाया जाता। दीये(दीपक के पात्र) की कडाही और पूजा की आचमनी की कलछी बनाते। िेपानी को घी, िूल को आटा, बालूको चीनी बनाकर भोजन बनातेतथा सभी भोजन के वलए पांगत मेंबैठ जाते। उसी समय बाबूजी भी आकर पांगत के अांत मेंबैठ जाते। उनको देखतेही बच्चेहाँसते-न्दखलन्दखलातेहुए भाग जाते।
भोलानाथ और उसके साथी खेल-खेल मेंफ़सल कै सेउगाया करतेथे?
खेलते-खेलतेभोलानाथ और उसके साथी खेती करनेऔर फ़सल उगानेकी योजना बनाते चबूतरेके छोर पर वघरनी गाडकर बाल्टी को कु आाँबना लेतेपूाँज की पतली रस्सी सेचुक्कड बााँिकर कु एाँमेंलटका वदया जाता। दो लडके बैलोांकी भााँवत मोट खी ांचनेलगते। चबूतरा, खेत, कां कड, बीज बनता और िेखेती करते। फ़सल तैयार होनेमेंदेर न लगती। िेजल्दी सेफ़सल काटकर पैरोांसेरौांदकर ओसाई कर लेते।
भोलानाथ की मााँउसेककस तरह कन्हैया बना देती?
भोलानाथ जब अपनेसावथयोांके साथ गली मेंखेल रहा होता तभी भोलानाथ की मााँउसे अचानक ही पकड लेती और भोलानाथ के लाख ना-नुकर करनेपर भी चुल्लूभर कडिा तेल वसर पर डालकर सराबोर कर देती। उसकी नावभ और। वललार पर काजल की वबांदी लगा देती। बालोांमें चोटी गूांथकर उसमेंफू लदार लट्टूबााँिती और रांगीन कु रता-टोपी पहनाकर ‘कन्ैया’ बना देती
आजणकल बच्चेघरो ोंमेंअके लेखेलतेहैं, पर भोलानाथ और उसके साथी कमल-जुलकर खेलतेथे। इनमेंसेआप भावी जीवन के कलए ककसेउपयुक्त मानतेहैंऔर क्यो ों?
यह सत्य हैवक आजकल के बच्चेकां यूटर पर गेम, िीवडयो गेम, टेलीविजन पर काटूतन देखतेहुए अके लेसमय वबतातेहैं, परांतुभोलानाथ का समय सावथयोांके साथ खेलतेहुए बीतता था। खेत मेंवचवडयााँउडाना हो या चूहेकेवबल मेंपानी डालना या खेती करना, बारात वनकालना आवद खेल ऐसेथेवजनमेंबच्चोांका एक साथ खेलना आिश्यक था। मैंवमलजुलकर खेलनेको भािी जीिन केवलए उपयुक्त मानता हूाँ, क्ोांवक-
• इससेसामूवहकता की भािना मजबूत बनती है।
• इस प्रकार के खेलोांसेसहयोग की भािना विकवसत होती है।
• वमल-जुलकर खेलनेसेसभी बच्चेअपना-अपना योगदान देतेहैं, वजससेसवक्रय सहभावगता की भािना का उदय होता है।
• वमल-जुलकर खेलनेसेबच्चोांमेंहार-जीत को समान रूप सेअपनानेकी प्रेरणा वमलती हैवजनका भािी जीिन मेंबडी उपयोवगता होती है।
भोलानाथ के कपता भोलानाथ को पूजा-पाठ मेंशाकमल करते, उसेगोंगा तट पर लेजातेतथा लौटतेहुए पेड की डाल पर झुलाते। उनका ऐसा करना ककन-ककन मूल्यो ोंको उभारनेमें सहायक है?
भोलानाथ केवपता उसको अपनेसाथ पूजा पर बैठाते। पूजा के बाद आटेकी गोवलयााँवलए हुए गांगातट जाते। मछवलयोांको आटेकी गोवलयााँन्दखलाते, िहााँसेलौटतेहुए उसेपेड की झुकी डाल पर झुलाते। उनके इस कायतव्यिहार सेभोलानाथ मेंकई मानिीय मूल्योांका उदय एिां विकास होगा। येमानिीय मूल्य हैं-
1. भोलानाथ द्वारा अपनेवपता के साथ पूजा-पाठ मेंर्शावमल होनेसेउसमेंिावमतक भािना का उदय होगा।
2. प्रकृ वत सेलगाि उत्पन्न होनेकेवलए प्रकृ वत का सावन्नध्य आिश्यक है। भोलानाथ को अपनेवपता के साथ प्रकृ वत केवनकट आनेका अिसर वमलता है। ऐसेमेंउसमेंप्रकृ वत सेलगाि की भािना उत्पन्न होगी।
3.मछवलयोांको वनकट सेदेखनेएिां उन्ेंआटेकी गोवलयााँन्दखलानेसेभोलानाथ मेंजीि-जन्तुओांके प्रवत लगाि एिां दया भाि उत्पन्न होगा।
4.नवदयोांकेवनकट जानेसेभोलानाथ के मन मेंनवदयोांको प्रदू र्ण मुक्त रखनेकी भािना का उदय एिां विकास होगा।
5.िृिोांसेवनकटता होनेतथा उनकी र्शाखाओांपर झूला झूलनेसेभोलानाथ मेंपेडोांके सांरिण की भािना विकवसत होगी।
वतणमान समय मेंसोंतान द्वारा मााँ-बाप केप्रकत उपेक्षा का भाव दशाणया जानेलगा हैकजससे वृद्ो ोंकी समस्याएाँबढ़ी हैंतथा समाज मेंवृद्ाश्रमो ोंकी जरूरत बढ़ गई है। माता का अाँचल’ पाठ उन मूल्यो ोंको उभारनेमेंककतना सहायक हैकजससेइस समस्या पर कनयोंत्रण करनेमें मदद कमलती हो।
िततमान समय मेंभौवतकिाद का प्रभाि है। अविकाविकथन कमानेएिां सुख पानेकी चाहत नेमनुष्य को मर्शीन बनाकर रख वदया है। ऐसेमेंसांतान के पास बैठने, उसके साथ खेलनेऔर घूमने-वफरनेका माता-वपता के पास समय नही ांहैं। इस कारण एक ओर माता-वपता बूढेहोनेपर उपेिा का वर्शकार होतेहैंतो दू सरी ओर िृद्धाश्रमोांकी सांख्या बढ रही है। ‘माता का अांचल’ पाठ में भोलानाथ का अविकाांर्श समय अपनेवपता के साथ बीतता था। िह अपनेवपता के साथ पूजा में र्शावमल होता था तो वपता जी भी मनोविनोद केवलए उसके साथ खेलोांमेंर्शावमल होतेथे। इससे भोलानाथ मेंअपनेमाता-वपता सेअत्यविक लगाि, सहानुभूवत, वमल-जुलकर साथ रहनेकी भािना, माता-वपता के प्रवत दृवष्टकोण मेंव्यापकता, माता-वपता के प्रवत उत्तरदावयत्व, सामावजक सरोकारोांमें प्रगाढता, आएगी वजससेिृद्धोांकी उपेिा एिां िृद्धाश्रम की बढती आिश्यकता पर रोक लगानेमें सहायता वमलेगी।
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