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‘रैदास’ ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है?
रैदास ने अपने स्वामी को गुसईया, गरीब, निवाजु, लाल, गोबिंद, हरि, प्रभु आदि नामों से पुकारा है।
पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
पहले पद में भगवान और भक्त की तुलना चंदन-पानी, घन-वन-मोर, चन्द्र-चकोर, दीपक-बाती, मोती-धागा, सोना-सुहागा आदि से की गई है।
पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे – पानी, समानी आदि। इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकरलिखिए।
तुकांत शब्द – पानी-समानी, मोरा-चकोरा, बाती-राती, धागा-सुहागा, दासा-रैदासा।
पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरण : दीपक बाती
दीपक-बाती, मोती-धागा, स्वामी-दासा, चन्द्र-चकोरा, चंदन-पानी।
दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
दूसरे पद में ‘गरीब निवाजु’ ईश्वर को कहा गया है। ईश्वर को ‘निवाजु ईश्वर’ कहने का कारण यह है कि वे निम्न जाति के भक्तों को भी समभाव स्थान देते हैं, गरीबों का उद्धार करते हैं,उन्हें सम्मान दिलाते हैं, सबके कष्ट हरते हैं और भवसागर से पार उतारते हैं।
दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
इस पंक्ति का आशय यह है कि गरीब और निम्नवर्ग के लोगों को समाज सम्मान नहीं देता। उनसे दूर रहता है। परन्तु ईश्वर कोई भेदभाव न करके उन पर दया करते हैं, उनकीसहायता करते हैं, उनकी पीड़ा हरते हैं।
निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए –
मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति, तुहीं, गुसइआ
मोरा – मोर
चंद – चन्द्रमा
बाती – बत्ती
बरै – जले
राती – रात
छत्रु – छत्र
धरै – रखे
छोति – छुआछूत
तुहीं – तुम्हीं
राती – रात
गुसइआ – गौसाई
नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –
1. जाकी अँग-अँग बास समानी
2. जैसे चितवत चंद चकोरा
3. जाकी जोति बरै दिन राती
4. ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
5. नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
1.इस पंक्ति का भाव यह है कि जैसे चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार एक भक्त के तन मन में ईश्वर भक्ति की सुगंध व्याप्त हो गई है।
2.इस पंक्ति का भाव यह है कि जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चन्द्रमा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं (भक्त) भी सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूँ।
3.इस पंक्ति का भाव यह है कि कवि स्वयं को दिए की बाती और ईश्वर को दीपक मानते है। ऐसा दीपक जो दिन-रात जलता रहता है।
4. इस पंक्ति का भाव यह है कि ईश्वर से बढ़कर इस संसार में निम्न लोगों को सम्मान देनेवाला कोई नहीं है। समाज के निम्न वर्ग को उचित सम्मान नहीं दिया जाता है परन्तु ईश्वर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते हैं। अछूतों को समभाव से देखते हुए उच्च पद पर आसीन करते हैं ।
5.इस पंक्ति का भाव यह है कि ईश्वर हर कार्य को करने में समर्थ हैं। वे नीच को भी ऊँचा बना लेता है। उनकी कृपा से निम्न जाति में जन्म लेने के उपरांत भी उच्च जाति जैसा सम्मान मिल जाता है।
रैदास के इन पदों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
पहला पद – रैदास के पहले पद का केंद्रीय भाव यह है कि वे उनके प्रभु के अनन्य भक्त हैं। वे अपने ईश्वर से कुछ इस प्रकार से घुलमिल गए हैं कि उन्हें अपने प्रभु से अलग करके देखा ही नहीं जा सकता।
दूसरा पद – रैदास के दूसरे पद का केंद्रीय भाव यह है कि उसके प्रभु सर्वगुण संपन्न, दयालु और समदर्शी हैं। वे निडर है तथा गरीबों के रखवाले हैं। ईश्वर अछूतों के उद्धारक हैं तथा नीच को भी ऊँचा बनाने की क्षमता रखनेवाले सर्वशक्तिमान हैं।
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