NCERT Class 11 Hindi Antara Chapter 11, "Hasi ki Chot Sapna Darbar" by Sapna Darbar, are one of those means to learn about the minute details of this intriguing chapter. The solutions are given in the form of easily accessible PDFs that help walk the student through the text and master the main themes and literary techniques.
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हँसी की चोट सवैये में कवि ने किन पंच तत्वों का वर्णन किया है तथा वियोग में वे किस प्रकार विदा होते हैं?
हँसी की चोट सवैये में कवि ने वायु, जल, अग्नि, आकाश और पृथ्वी आदि पांच तत्वों का वर्णन किया है। कृष्ण वियोग में गोपियों से ये सभी तत्व विदा हो जाते है। जब गोपियां कृष्ण के दूर हो जाने के कारण रोटी हैं तो आंसुओं के द्वारा उनका जल तत्व दूर हो जाता है, जब वे तेज तेज गति से सांस लेती है तो उनका वायु तत्व विदा हो जाता है। गर्मी में पसीने के आने के कारण अग्नि तत्व चला जाता है और जब वे कृष्ण वियोग में होती है तो हर पल सिर्फ कृष्ण को याद करती है, जिससे वे कमजोर हो जाती है उनका शरीर केवल कंकाल मात्र रह गया है जिस कारण पृथ्वी तत्व भी वियोग के कारण उनसे विदा ले लेता है। वे सिर्फ कृष्ण से एक बार मिलने की आशा करती हैं। इस प्रकार पांचों तत्व वियोग में विदा ले लेते है।
नायिका सपने में क्यों प्रसन्न थी और वह सपना कैसे टूट गया?
नायिका सो रही होती है तभी वह एक सपना देखती है की आकाश में बादलों से हल्की हल्की बूंदे गिर रही है। वहाँ पर अचानक कृष्ण आते है और उससे झूला झूलने के लिए कहते है। नायिका कृष्ण को देखकर आनंद विभोर हो जाती है। वह मन ही मन बहुत खुश होती है। उसकी प्रसन्नता चरम पर होती है। जैसे ही वह कृष्ण के साथ झूला झूलने के लिए खड़ी होती है उसकी नींद खुल जाती है। जिससे उसका सपना भी टूट जाता है।
‘सपना’ कवित्त का भाव सौंदर्य लिखिए।
सपना कवित्त में नायिका का कृष्ण से मिलन पर उत्पन्न भावों का वर्णन किया है। कृष्ण से मिलने की आशा में कवित्त्त में वियोग से योग का भाव स्पष्ट किया है। कवि ने नायिका की कृष्ण से मिलने की व्याकुलता और उससे मिलना की खुश का अद्भुत वर्णन किया। वह अपनी इस आशा को अपने सपने के माध्यम से पूरा करती है। लेकिन उस सपने के टूट जाने के बाद वह फिर से दुखी हो जाती है।
‘दरबार’ सवैये में किस प्रकार के वातावरण का वर्णन किया है?
दरबार सवैये में राजा के दरबार का वर्णन किया गया है। कवि कहता है की राजा के दरबार में सभी दरबारी मौन बैठे हुए है। केवल भोग– विलास ही उस दरबार की पहचान बन गई है। वहां का राजा अंधा और दरबारी मौन बने हुए हैं। प्रजा की जरूरतों को अनदेखा किया जा रहा है।
दरबार में गुणग्राहकता और कला की परख को किस प्रकार अनदेखा किया जाता है?
दरबार में राजा और उसके दरबारी केवल सुंदर और भोग विलास की चीजों को ही एहमियत देते हैं। उनके लिए कला का कोई महत्व नहीं हैं। उन्हें कला की पहचान करना भी नहीं आता है। उनके लिए चुटकुले ही कला है। जिससे उनको आनंद मिलता है। वह सभी राजा की चापलूसी को ही अपना कार्य मानते है। उसी की चाटुकारिता करते है।वह सभी अंधे और गूंगे बने हुए है। इसलिए दरबार गुणग्रहकता और कला की परख को अनदेखा किया जाता है।
देव ने दरबारी चाटुकारिता और दंभपूर्ण वातावरण पर किस प्रकार व्यंग्य किया है?
देव ने दरबारी चाटुकारिता और दंबपूर्ण वातावरण पर व्यंग्य करते हुए कहा है की दरबार में सभी अपनी इच्छा के मालिक बन हुए है। हर समय वे सभी भोग–विलास में डूबे हुए है। राजा भी केवल नाममात्र ही है। वह भी उनके तरह ही है। वह सभी अपने विलासिता में इतने लीन हो चुके हैं की उन्हें कला और गुणों की परख का भी कोई अंदाजा नहीं है। सभी पर उनका अहंकार अधिक प्रभावी हो गया है।
देव के अलंकार प्रयोग और भाषा प्रयोग के कुछ उदाहरण पठित पदों से लिखिए।
देव के अलंकार प्रयोग और भाषा प्रयोग के कुछ उदाहरण इस प्रकार है–
1.जा दिन तै मुख फेरी, हरे हँसी, हेरी हियो जु लियो में ‘ह’ की आवृति बार बार हुई है। इसमें अनुप्रास का प्रयोग किया गया है।
2.झहरी – झहरी, गहरी– गहरी आदि में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3.झहरी – झहरी, झीनी झीनी बूंद है परती मानो में उपमा अलंकार का प्रयोग किया है।
4.कवि ने इसमें ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। वह ब्रज भाषा के प्रमुख कवियों में माने जाते है। इस पारकर देव ने विभिन्न अलंकारों और भाषा का प्रयोग अपनी रचना में किया है।
दरबार सवैये को भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक अंधेर नगरी के समकक्ष रखकर विवेचना कीजिए।
दरबार सवैये में और अंधेर नगरी नाटक दोनों काफी हद तक समान है। उनके दरबार की स्थिति भी एक जैसी ही है। लेकिन अंतर सिर्फ इतना है की दरबार में राजा और दरबारी सभी भोग विलास का शिकार हुए है और अकर्मण्य बने हुए है। लेकिन अंधेर नगरी में राजा की मूर्खता के कारण सभी अकर्मण्य बने हुए है। उन्हें केवल राजा की चापलूसी करने का ही शोक हो गया है। जिसके आगे वे प्रजा की इच्छा और उनकी जरूरतों को अनदेखा कर देते है। वे अपने कर्तव्य से बिलकुल अनभिज्ञ हो चुके हैं।
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